
सावित्री और सत्यवान की कथा | The story of Savitri and Satyavan
बहुत समय पहले भारत में एक राजा था, जिसकी कोई सन्तान नहीं थी । उसे अक्सर इस बात की चिंता होती थी कि उसके मरने के बाद उसके राज्य का क्या होगा। उसने कई देवताओं की पूजा की और बच्चे के लिए कई सारे बलि संस्कार भी किये । लेकिन यह सब व्यर्थ हो गया । परन्तु एक दिन, देवी सावित्री उसके सपने में आई और कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हुई हूं और तुम्हें उपहार स्वरूप एक बेटी दूंगी।”
जल्द ही राजा और उसकी रानी को आशीर्वाद के रूप में एक बेटी हुई । राजा की प्रसन्नता की कोई सीमा नहीं थी । उन्होने देवी के नाम पर ही उसका नाम सावित्री रखा । सावित्री एक बहुत ही सुंदर और बुद्धिमान युवती के रूप में बड़ी हो गयी।
उसके माता – पिता ने एक उपयुक्त राजकुमार से उसका विवाह करने का निर्णय किया । लेकिन उनकी पुत्री के योग्य उपयुक्त वर खोजना कठिन था । इसलिए सावित्री ने कहा, “पिताजी, मुझे पूरे राज्य में यात्रा करने दीजिए और अपने लिए पति खोजने दीजिए ।” फिर उसने एक साधारण युवती का वेश धारण कर महल छोड़ दिया और नगर – नगर यात्रा शुरू कर दी।
वह कई महीनों तक यात्रा करती रही और अंत में एक आश्रम में पहुंच गयी । सावित्री ने वहां कुछ दिन बिताने का फैसला किया। एक दिन वह अपना दैनिक कामकाज कर रही थी, तभी सावित्री ने एक नौजवान युवक को एक बूढ़े व्यक्ति की सेवा करते हुए देखा । सावित्री ने आश्रम के ज्येष्ठ ऋषि से उनके बारे में पूछा । तब उस वृद्ध ज्ञानी ऋषि ने कहा, “तुम जिस नौजवान को देख रही हो, वह एक राजकुमार है । उसका नाम सत्यवान है । वह अंधे बूढ़े व्यक्ति उसके पिता हैं । वह अपना राज्य एक दूसरे राजा से हार गए हैं और अब इस आश्रम में रहने को मजबूत हैं । राजा ने उम्र के साथ अपनी दृष्टि भी खो दी है । राजकुमार अपने पिता की देखभाल कर रहा है।”
सावित्री ने सत्यवान से शादी करने का फैसला कर लिया । वह अपने महल वापस आ गई और उसके बारे में अपने माता-पिता को बताया । राजा और रानी दोनो बहुत ही खुश हुए। वह विवाह का प्रस्ताव लेकर आश्रम में गए।
वह अंधे राजा सावित्री के पिता से मिलकर बहुत खुश हुए । सत्यवान ने भी खुशी से प्रस्ताव स्वीकार कर लिया । लेकिन जब उनकी कुंडली का मिलान किया गया तब, ऋषियों ने चेतावनी दी कि सत्यवान की मृत्यु एक वर्ष में हो जाएगी। इसके बावजूद सावित्री सत्यवान से ही विवाह करना चाहती थी।
कुछ महीनों बाद सत्यवान और सावित्री ने शादी कर ली । सावित्री ने राजकुमारी जैसा विलासितापूर्ण जीवन छोड़ दिया और सत्यवान के साथ आश्रम में रहने आ गई । हालांकि वह बहुत खुश थी, परन्तु उसे वर्ष का अन्त होने पर पति के जीवन का डर लग रहा था।
अपने उम्र के आखिरी दिन, जब सत्यवान जंगल से लकड़ी काटने के लिए गया, तो वहां उसे चक्कर आने लगे और वह जमीन पर गिर गया । जब सावित्री ने उसे देखा तो वह उसकी तरफ भागी और उसका सिर अपनी गोद में लेकर बैठ गई।
अचानक मृत्यु के देवता भगवान यम उनके पास आए । सत्यवान की आत्मा को उन्होंने अपने फंदे से पकड़ा और जाने लगे । सावित्री ने उनसे प्रार्थना की, “मैं आप से विनती करती हूं कि मेरे पति को छोड़ दीजिए ।” भगवान यम ने सावित्री को सांत्वना देने की कोशिश की। उन्होंने कहा,”पुत्री, सत्यवान महान पुण्य वाला इसान था और मेरे राज्य में खुशियां उसका इंतजार कर रही हैं । ”
सावित्री ने कुछ नहीं कहा बल्कि उठी उनके पीछे चलने लगी। यम ने कहा, “तुम यमलोक तक मेरे पीछे नहीं आ सकती हो ।” सावित्री ने कहा, “प्रभु मैं जानती हूं कि आप मेरे पति की आत्मा को समय आने पर दूर ले जाकर अपना कर्तव्य पूरा कर रहे हैं । परन्तु उनकी पत्नी के रूप में मेरा कर्तव्य है कि मैं उनके बगल में खड़ी रहूं।”
यम ने कहा, “तुम्हारे कर्तव्य पूरे हो गए हैं, क्योंकि तुम्हारे पति कि मृत्यु हो गई है। लेकिन मैं तुम्हारी निष्ठा की प्रशंसा करता हूं। इसलिए मैं तुम्हारी इच्छा का एक वरदान देता हूं । लेकिन अपने पति का जीवन मत मांगना । ” सावित्री ने कहा, “कृपया मेरे पति का राज्य वापस कर दीजिए और मेरे ससुर की दृष्टि वापस कर दीजिए।”
भगवान यम ने सावित्री की इच्छा पूरी कर दी और चल पड़े । सावित्री ने उनका पीछा करना जारी रखा । यम ने कहा, पुत्री तुम वापस चली जाओ, तुम्हें मेरे पीछे नहीं आना चाहिए। ” सावित्री ने कहा, “प्रभु, मेरे पति को आपके राज्य में खुशियां मिल जाएगी,लेकिन आप मुझसे मेरी खुशियां दूर ले जा रहे हैं।”
यम ने कहा, “मैं तुम्हारी भक्ति की प्रशंसा करता हूं । मैं तुम्हें एक और इच्छा का वरदान देता हूं । ” सावित्री ने कहा, “मैं अपने पिता की इकलौती संतान हूं । जबसे मैंने विवाह किया है और उन्हें छोड़ा है, वह बहुत दुखी रहने लगे हैं । मैं आपसे प्रार्थना करती हूं कि आप उन्हे कई पुत्र दे दें।” भगवान यम ने सावित्री की यह इच्छा भी पूरी कर दी । फिर उन्होने खड़ी ढलान पर चढ़ना शुरू कर दिया । सावित्री उनके पीछे चल रही थी। इससे वह बहुत थक गई परन्तु वह फिर भी नहीं रुकी।
यम ने कहा, मैं तुम्हें आगे आने के लिए मना करता हूं । मैं तुम्हें आखिरी बार कह रहा हूं कि तुम बहुत आगे तक आ गई हो । मैं तुम्हारे साहस और दृढ़ता की प्रशंसा करता हूं। मैं तुम्हें अंतिम वरदान देता हूं, अपने पति के जीवन के अलावा कुछ भी मांग लो।”
सावित्री ने कहा, “प्रभु मुझे आशीर्वाद दीजिए कि मैं अपने पति के बहुत से बच्चों की मां बर्नु ।” उसकी इस इच्छा को सुन कर यम हैरान रह गए । सावित्री ने अपने पति का जीवन नहीं मांगा था, परन्तु उसको दिए वरदान के लिए वे सत्यवान की आत्मा को छोड़ने को मजबूर हो गए थे। तभी सावित्री ने देखा कि वह अपने पति का सिर अपने गोद में लिए जंगल में बैठी है । सत्यवान ने अपनी आंखे खोल लीं । सावित्री की आंखो में आंसू देखकर उसने पूछा, “क्या हुआ ?” सावित्री ने उसके सिर को सहलाया और मुस्कुरा दी । इसके बाद वह बहुत लम्बे समय तक खुशी से साथ रहे।