
Smart study tips in hindi-सामान्य अध्ययन पर अपनी पकड़ मजबूत रखें
कहा जाता है कि एक सुसंस्कृत व्यक्ति वह है, जो सब वस्तुओं एवं प-विषयों के बारे में कुछ-न-कुछ जानता है और किसी एक विषय के सम्बन्ध में सब कुछ जानता है-Acultured man is he who knows something of everything and everything of something सुसंस्कृत शब्द के स्थान पर हम शिक्षित, विकसित, श्रेष्ठ आदि शब्दों का भी प्रयोग कर सकते हैं.
अपने आपको इस कोटि का व्यक्ति किस प्रकार बनाया जा सकता है? उत्तर है-निरन्तर कुछ न कुछ सीखता रहे अपने विषय के सम्बन्ध में भी तथा विभिन्न विषयों एवं वस्तुओं के बारे में भी किसी विषय का विशेषज्ञ होना तब सार्थक होता है जब हम अन्य विषयों की जानकारी द्वारा उसे पोषण प्रदान करते रहें.
प्रतियोगिता परीक्षा में सामान्य ज्ञान के प्रश्न-पत्र में प्रायः ऐसे प्रश्न शामिल कर लिए जाते हैं जिन्हें हम नगण्य एवं बचकाना समझते हैं, परन्तु आश्चर्य की बात यह होती है कि इन प्रश्नों के उचित उत्तर देने में हम असमर्थ रहते हैं. इसी प्रकार साक्षात्कार के अवसर पर भी प्रायः ऐसे प्रश्न किए जाते हैं, जो यह स्पष्ट घोषणा करते हैं कि जीवन में सफल होने के लिए यह आवश्यक है कि प्रतियोगी प्रत्येक वस्तु के विषय में अधिकारिक अथवा प्रामाणिक जानकारी रखे, उदाहरण के लिए एक प्रतियोगी से साक्षात्कार मण्डल के एक सदस्य ने प्रश्न कर दिया-आपको कौनसी टॉफी अच्छी लगती है? टॉफी का नाम बताते ही उसके बारे में प्रत्याशी पर प्रश्नों की बौछार कर दी गई यह कहाँ से आती है, यह कहाँ बनती है, इसको बनाने वाले कारखाने का नाम बताइए,
इसके कारखाने का मालिक कौन है? आदि, कहने का तात्पर्य यह है कि एक श्रेष्ठ प्रतियोगी से यह आशा की जाती है कि वह पुस्तक ज्ञान या अक्षर ज्ञान में निष्णात होने के अतिरिक्त सामान्य ज्ञान में भी पारंगत हो. नित्य प्रति व्यवहार में आने वाली वस्तुओं के बारे में भी उसको पूरी जानकारी होनी चाहिए. हमारे एक मित्र के शब्दों में उसको प्रत्येक वस्तु के बारे में अंतिम रूप से ज्ञान होना चाहिए-He should know the last word on everything.
इस प्रकार विपुल ज्ञान का संचय करना सहज कार्य नहीं है. इसके लिए प्रतियोगी को कठिन श्रम करना होता है. यह कार्य श्रम साध्य है और समय साध्य भी है, यह सम्भव नहीं है कि कोई भी श्रमशील व्यक्ति सामान्य परीक्षार्थी की भाँति दो-चार दिन पूरी शर्ते जानकार बाजारू नोट्स रट डाले और परीक्षा में किसी प्रकार किसी भी श्रेणी में उत्तीर्ण हो जाए प्रतियोगिता में सफल होने के लिए अनवरत् कठिन श्रम करना पड़ता है, जॉन गायल नामक विद्वान् ने एक संवाद में लिखा है कि एक साधक विद्वान् होने का प्रमाण-पत्र चाहने वाले से सम्बन्धित अधिकारी प्रश्न करता है-Whence is thy learning ? Hath thy toiled O’er the books ? Hath thy consumed the midnight oil ? क्या तुमने अपनी पुस्तकों से ज्ञान प्राप्त करने में कठोर श्रम किया है? क्या आधी रात तक दीपक की रोशनी में तुमने अध्ययन किया है?
मन्तव्य स्पष्ट है. इच्छित और अपेक्षित ज्ञान की प्राप्ति एक दिन का काम नहीं है, आवश्यक यह है कि हम नियमित रूप से पढ़ें और यह लक्ष्य सामने रखें कि हमको नित्य कोई-न-कोई नई जानकारी प्राप्त करनी है. पुस्तक पढ़ते समय भी यही लक्ष्य सामने रखें कि हम केवल पढ़ें ही नहीं-मनन एवं चिन्तन भी करें, तभी यह सम्भव है कि हम उससे नवनीत प्राप्त कर सकेंगे. अंग्रेजी के चिन्तक निबन्धकार बेकन ने पुस्तकों के अध्येताओं को परामर्श दिया है कि “अध्ययन-मनन और परिशीलन के लिए किया जाना चाहिए.” आप स्वयं अनुभव करने लगेंगे कि चिन्तन-मनन गर्मित अध्ययन, योग्यता के अतिरिक्त उल्लास एवं वाणी का अलंकार भी प्राप्त करता है,
अध्ययन की एक बड़ी विशेषता यह होती है कि हम जितना ही अधिक अध्ययन करते हैं, उतना ही अधिक हम यह अनुभव करने लगते हैं कि हम से कुछ नहीं आता है. हमें अपने अज्ञान का जितना ही अधिक आभास होता है, अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए हम उतने ही अधिक अध्ययनशील बनते जाते हैं. इस प्रकार की मानसिक स्थिति हमारी दृष्टि को अधिक व्यापक बना देगी. हमारा लक्ष्य नित्य एक नई जानकारी प्राप्त करके अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना हो जाएगा, इस संदर्भ में यह निवेदन करना आवश्यक प्रतीत होता है कि श्रेष्ठजन ने अध्ययन के कतिपय सूत्रों का उल्लेख किया है, यथा-महात्मा गांधी ने लिखा है-‘अच्छे विचारों की प्राप्ति अध्ययन को सार्थक बनाती है और अच्छे काम करने से ही अच्छे विचार आते हैं.” हिन्दी के साहित्यकार रामधारी सिंह ‘दिनकर’ने परामर्श दिया है कि
साहित्य का सम्यक् ज्ञान प्राप्त करने के लिए पहले प्राचीन ग्रन्थ पढ़ो जिससे आपको अपनी परम्परा की जानकारी मिले और अतीत के प्रति आपका लगाव हो जाए तथा विज्ञान विषयक ज्ञान के लिए नवीन ग्रंथ पढ़ो जिससे यह विदित हो कि दुनिया किधर जा रही है तथा हमारे भविष्य का स्वरूप क्या हो सकता है? तात्पर्य यह है कि हमारा अध्ययन नियमित होने के साथ सोद्देश्य एवं व्यवस्थित हो.
जिस प्रकार बूंद-बूंद से घड़ा भर जाता है, उसी प्रकार नियमित रूप से प्राप्त स्वल्प जानकारी विपुल बन जाती है और हमारे ज्ञान का भण्डार कर देती है. कहा भी गया है कि यदि लक्ष्मी भाग्यानुसारिणी है, तो विद्या अभ्यासानुसारिणी है.
जिस प्रकार नियमित रूप से प्रयोग में आने वाली चाबी चमकदार बनी रहती है और काम में न ली जाने वाली चाबी पर काई या जंग लग जाती है, उसी प्रकार नित्य कुछ न-कुछ जानकारी प्राप्त होने पर प्रस्तुत ज्ञान पर सान रखने का कार्य होता रहता है, अन्यथा उसमें जंग लगना, उसका क्षरण आरम्भ हो जाता है. कहा भी गया है-He who adds not to his learning, deminishes it, अर्थात् जो व्यक्ति अपने ज्ञान में वृद्धि नहीं करता है, वह उसको कम करता है अपने ज्ञान का क्षरण अपनी सम्पत्ति को स्वयं नष्ट करना है. इसको हम यदि आत्मिक हत्या कह दें, तो आपको कैसा लगेगा? इस संदर्भ में यूनानी भाषा की एक कहावत का स्मरण हो रहा है-A good man is always a learner, अर्थात् एक अच्छा आदमी हमेशा कुछ न कुछ सीखता रहता है अथवा हम यदि इसी बात को इस प्रकार कहें, तो अनुचित न होगा कि एक श्रेष्ठ व्यक्ति बनने के लिए सदैव एवन ज्ञानार्थी बना रहना चाहिए. टॉमस फुलर नामक एक विद्वान् का कथन ध्यातव्य है- Learning makes a good man better अर्थात् ज्ञानार्जन एक श्रेष्ठ व्यक्ति को श्रेष्ठतर बना देता है. वास्तविकता तो यह है कि प्रत्येक व्यक्ति विद्वान् एवं ज्ञानवान बनना एवं कहलाना चाहता है, परन्तु उसका मूल्य चुकाने के लिए कोई तैयार नहीं रहता है-All want to be learned, but no one is willing to pay the price.
कुछ-न-कुछ जानकारी नियमपूर्वक नित्य एकत्र कीजिए. कुछ ही समय में आपका ज्ञान-भण्डार भरता हुआ दिखाई देने लगेगा.
आज अध्ययन करना सब जानते हैं, पर क्या अध्ययन करना चाहिए, यह कोई नहीं जानता. -जॉर्ज बर्नार्ड शॉ
लग्न से ज्ञान की प्राप्ति होती है, लग्न के अभाव में ज्ञान खो जाता है, पाने और खोने के इस दोहरी राह के परिचित को चाहिए कि वह अपने को ऐसा रखे कि ज्ञान बढ़ता जाए. -महात्मा बुद्ध
मानव का सच्चा जीवन-साथी विद्या ही है जिसके कारण वह विद्वान् कहलाता है. – स्वामी विवेकानन्द
हमारी अपनी अज्ञानता का ज्ञान ही बुद्धिमानी के मंदिर का स्वर्ण सोपान है. -स्पर्जन
क्रमबद्ध पुनरावृत्ति : सुगम व शक्तिशाली- तकनीक अपने अध्ययन को क्रमबद्ध पुनरावृत्ति का आधार प्रदान कीजिए और विषय वस्तु को स्मृति में दर्पण के समान स्पष्ट बनाइये. क्रमबद्ध पुनरावृत्ति के प्रभावशाली चरण
- पहला चरण अध्ययन के 15 मिनट बाद पुनरावृत्ति.
- दूसरा चरण अध्ययन के 24 घण्टे बाद पुनरावृत्ति.
- तीसरा चरण अध्ययन के । सप्ताह बाद पुनरावृत्ति
- चौथा चरण अध्ययन के | माह बाद पुनरावृत्ति.
- पाँचवा चरण अध्ययन के 3 माह बाद पुनरावृत्ति.
- छठा चरण आवश्यकता होने पर 6 माह बाद
याद रखिए बिना क्रमबद्ध पुनरावृत्ति के अध्ययन की गई विषय-वस्तु शीघ्र ही विस्तृत (80%) हो जाती है.
सुराहीनुमा बर्तन कभी मोटी धार से नहीं भरे जा सकते, उसी तरह सामान्य ज्ञान के विपुल भण्डार का आप कुछ दिनों में संचय नहीं कर सकते है.
स्मरण-शक्तिवर्द्धक तकनीक
जब आपको किन्हीं तथ्यों को याद करने में असुविधा हो, तो उस तथ्य को अन्य वस्तुओं के साथ सह-सम्बन्ध स्थापित करके आप उसे याद करने लायक बना सकते हैं, इस तकनीक में आप तथ्यों का पहले अक्षर चुनकर कोई सार्थक/निरर्थक शब्द बनाकर उसे याद कर लीजिए जैसे आपको इन्द्रधनुषी रंगों को याद करना है तो इसके पहले अक्षर चुनकर शब्द बनता है. “बैहनापीआनीला”. अब आपको बस यही शब्द याद करना है फिर जब आप इस शब्द का विस्तारण करेंगे. तो निम्नलिखित परिणाम प्राप्त होगा बैंगनी, हरा, नारंगी, पीला, आसमानी, नीला और लाल,