
शक युद्ध (Shaka War) (395-380 ई०पू०)
प्राचीन भारत के इतिहास में शक युद्ध भी एक प्रमुख युद्ध है। इस युद्ध को चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य ने शकों के विरुद्ध 375 ई० से 380 ई० के बीच लड़ा।
शकों के विरुद्ध युद्ध से पूर्व आइए इस बात पर संक्षिप्त प्रकाश डाल लें कि चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य कौन था? चन्द्रगुप्त, गुप्त साम्राज्य का एक प्रसिद्ध राजा था। वह गुप्त वंश के प्रथम राजा चन्द्रुगप्त का परपौत्र समुन्द्रगुप्त का पौत्र और राम गुप्त का पुत्र था।
समुन्द्रगुप्त प्राचीन भारत के इतिहास का ऐसा यशस्वी राजा है, जिसका काल स्वर्ण काल कहलाता है। समुन्द्र गुप्त ने अश्वमेघ यज्ञ भी किया था। उसके काल में पाये गए अभिलेखों में उसे ‘कविराज’ कहा गया है। इसके अलावा संगीत की कला में वह निपुण था। उसके इस गुण को प्रदर्शित करने के लिए एक स्वर्ण सिक्के पर भद्रपीठ पर बैठी, वीणा बजाती आकृति खुदी हुई पायी गयी है-जो उसकी इस कला पर प्रकाश डालती है। इसके अलावा प्रयाग स्तम्भ लेख में वर्णित है- “अपनी तीव्र और कुशाग्र बुद्धि द्वारा देवराज के गुरु (वृहस्पति) को और गायन में तुम्बरु और नारद तक को लज्जित कर दिया था।” ।
ऐसे समुन्द्रगुप्त का पौत्र चन्द्रगुप्त मगध के विशाल सिंहासन पर बैठा तो उसे शकों की ओर ध्यान देना पड़ा। मगध के आस-पास और दूर-दराज तक के राजा गुप्त साम्राज्य के आधीन थे, परन्तु शक स्वतन्त्र थे और वे जब भी चाहते थे कहीं भी राज्य में अराजकता, विप्लव और विद्रोह भड़का देते थे।
शक कौन थे?
शक को घुमक्कड़ जातियां बताया गया है। इनके बारे में इतिहासकारों ने लिखा है कि 165-160 ई०पू० में उत्तर-पश्चिम चीन से युरुचि जाति पर आक्रमण करते हुए भारत भूमि पर आ गए थे। इनकी संख्या विशाल थी। यह लड़ाकू, असभ्य जाति थी। भारत में उतर आने के बाद इन्होंने भारत में ही रहना पसन्द कर लिया था उन्होंने 140-120 ई०पू० के समय, गृहकलह से बिखर गए वनी राज्य को जीत लिया था। ये फैलते हुए सीइस्तान अथवा शकस्तान काबुल
घाटी, एराकोसिया (कंदहार) बलोचिस्तान पर अधिकार करते हुए सिन्धु की निचली घाटी में जा पहुंचे थे और वहीं बस गए थे।
इनके क्षेत्र को शकद्वीप, ग्रीक लेखकों ने इण्लोसीथिया नाम दिया है। चन्द्रगुप्त का काल आते-आते इन्होंने भारत में अनेकों राज्य खड़े कर लिए थे।
चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य 375 से 380 ई० के बीच जब राज्यसिंहासन पर बैठा तो उसके सामने शकों की विकसित होती शक्तियाँ बेहद चिन्ताजनक थीं। उन्होंने उत्तर-पश्चिम के स्वतन्त्र राज्यों को अपने आधीन कर लिया था। उन्होंने वाकाटकों को भी अपने प्रभाव में ले लिया था।
शकों की विशाल, संगठित शक्ति से लोहा लेने के लिए चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने कूटनीति से काम लेते हुए उसने वाकाटकों से विवाह सम्बन्ध स्थापित करते हुए अपनी कन्या का विवाह रुद्रसेन द्वितीय वाकाटव के साथ कर दिया। इस कूटनीति के साथ उसने शकों के विरुद्ध वाकाटकों की सहायता प्राप्त कर ली।
चन्द्रगुप्त एक विशाल सेना संगठित करके पश्चिमी भारत के शकों के विरुद्ध युद्ध के लिए बढ़ा।
उस समय के प्राप्त अभिलेखों और सिक्कों की सहायता से प्रमाण सामने आते हैं कि 395 ई०पू० से 380 ई० के बीच शकों से चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य का युद्ध चलता रहा।
संस्कृत के प्रसिद्ध कवि ‘बाण’ के ‘हर्षचरित्र’ में लिखा गया है कि शकराज का वध चन्द्रगुप्त द्वितीय द्वारा षड्यन्त्र से हुआ। विवरण है-“शत्रु के नगर में दूसरे की पत्नी के प्रति कामुक शकराज नारी वेश में चन्द्रगुप्त द्वारा मारा गया।”
उपरोक्त विवरण से ज्ञात होता है कि लगातार युद्ध करते रहते चन्द्रगुप्त को शकों से सफलता न मिल पा रही थी। शक उसके राज्य सीमा तक आ घुसे थे। (शत्रु के नगर से यही अर्थ सामने आता है।) तब चन्द्रगुप्त ने सुन्दर स्त्री का वेश धारण किया। उसे इस बात की अवश्य ही जानकारी मिल गयी थी कि शकराज कामुक स्वभाव का है। शत्रु की इस कमजोरी का लाभ उठाते हुए चन्द्रगुप्त नारी वेश में शकराज के शयनकक्ष तक पहुंच जाने में सफल हुआ था। ज्यों ही शकराज ने उसे भोग्य-योग्य पाकर उसकी ओर हाथ बढ़ाया, चन्द्रगुप्त ने असावधान शत्रु पर आक्रमण करके उसकी हत्या कर दी।
इस षड्यन्त्र पूर्ण शत्रु राजा की हत्या के बाद युद्ध का परिणाम जिस रूप में सामने आना था-उसी रूप में आया। शत्रु की राजा विहीन सेना पर, चन्द्रगुप्त की सेना ने हमला कर उसका संहार कर डाला। जो शक भागकर अपनी जान बचा सके, वही बचे रह गए, शेष युद्धभूमि में वध कर दिए गए।