
सड़क सुरक्षा पर निबंध | Road Safety Essay in Hindi अथवा भारत में सड़क सुरक्षा अथवा संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा दशक : 2011-2020
भारत में बराबर बढ़ रही सड़क दुर्घटनाओं और इनसे होने वाली मौतों ने ‘सड़क सुरक्षा’ को प्रश्नगत कर दिया है। भारत की सड़कें, हादसों की सड़कें बन गई हैं, फिर चाहे वे बारहमासी सड़कें हों अथवा राष्ट्रीय राजमार्ग। स्थिति इतनी विकट है कि कब, कहां कोई हादसे का शिकार हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। भारत की सड़कें इतनी असुरक्षित हैं कि वे मौत की सड़कें बन गई हैं। सड़क हादसों में सिर्फ मौतें ही नहीं होतीं, लोग घायल भी होते हैं, जिनकी जिंदगी घायल होने के कारण पटरी से उतर जाती है, जीवन बोझ बन जाता है। इन हालात पर कितना मौजूं है यह शेर-
घर से निकलो तो पता जेब में रख कर निकलो
हादसे चेहरे की पहचान भुला देते हैं।
भारत में सड़क दुर्घटना की भयावहता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रतिवर्ष सड़क दुर्घटना से लगभग डेढ़ लाख लोगों की मृत्यु हो जाती है। सड़क दुर्घटनाओं को गंभीरता से लेते हुए भारत ने वर्ष 2015 में ब्राजीलिया घोषणापत्र पर हस्ताक्षर किया। यह घोषणापत्र विश्व स्वास्थ्य संगठन के तत्वावधान में ब्राजील में आयोजित किया गया था। जिसका उद्देश्य सडक दुर्घटनाओं में कमी लाना है।
भारत की सड़कों पर नाच रही मौत थम नहीं रही है, वह भी तब, जबकि मौजूदा दौर ‘संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा दशक’ (2011 2020) का है। भारत सहित विश्व के 100 देशों में संयुक्त राष्ट्र की पहल पर ‘संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा दशक-2011-2020′ (UN Decade ofAction forRoad Safety-2011-2020) की न सिर्फ शुरुआत हो चुकी है, बल्कि इसका लगभग पूरा चरण व्यतीत भी हो चुका है। तथापि इस पहल का अभी तक कोई संतोषजनक परिणाम व प्रभाव परिलक्षित नहीं हुआ है, जबकि इसके तहत सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को 50 प्रतिशत तक कम करने का लक्ष्य रखा गया था। स्थिति यह है कि मौतों की संख्या में बजाय कमी आने के, उनमें इजाफा हुआ है। सड़क सुरक्षा, जो कि संयुक्त राष्ट्र के सड़क सुरक्षा दशक का मूल विषय है, को अमली जामा पहना पाने में हम अब तक असफल रहे हैं। यह कहना असंगत न होगा कि अभी तक भारत सड़क सुरक्षा में फिसड्डी साबित हुआ है और वह संयुक्त राष्ट्र सड़क सुरक्षा दशक’ के लक्ष्य से कोसों दूर है।
यह एक विचित्र विरोधाभास है कि भारत में पूरी दुनिया के वाहन तो मात्र 4% हैं, जबकि विश्व में होने वाली कुल सड़क दुर्घटनाओं में से 10% सड़क दुर्घटनाएं अकेले भारत में होती हैं। इस प्रकार भारत सड़क दुर्घटनाओं के मामले में विश्व में पहले पायदान पर है, जहां सालाना औसतन डेढ़ लोग सड़क दुर्घटनाओं के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं। प्रश्न यह उठता है कि आखिर भारत ‘सड़क दुर्घटनाओं का देश’ क्यों बना हुआ है? विषय के संदर्भ में इस प्रश्न का जवाब तलाशना समीचीन रहेगा।
भारत में विश्व का तीसरा सबसे बड़ा सड़क नेटवर्क तो है, किंतु सड़क सुरक्षा के मानकों के संदर्भ में हम विश्व के दूसरे देशों से बहुत पिछड़े हुए हैं। हमारे यहां सड़कों का जाल तो निरंतर घना होता गया, किंतु बेहतर सुरक्षा मानकों एवं सड़क नेटवर्क की बेहतर गुणवत्ता पर जिस तरह से ध्यान दिया जाना चाहिए था, नहीं दिया गया। फलतः सड़कों पर दुर्घटनाएं भी बढ़ीं और स्थिति दिनों-दिन विकराल होती चली गई। बढ़ती हुई आबादी एवं वाहनों की बढ़ती संख्या ने स्थिति को और बिगाड़ने का काम किया। भारत में हर प्रकार के वाहनों की संख्या में व्यापक वृद्धि देखने को मिल रही है। आंकड़ों से पता चलता है कि भारत में वाहनों की संख्या में चक्रवृद्धि आधार पर 10% वार्षिक दर से भी कुछ अधिक दर से वृद्धि हो रही है। बढ़ती आबादी के अनुरूप वाहनों की संख्या में वृद्धि तो स्वाभाविक है, किंतु इसके अनुरूप जिस तरह सड़कों की क्षमता और गुणवत्ता बढ़ाई जानी चाहिए थी, नहीं बढ़ाई गई। फलतः स्थिति बिगड़ी और सड़कें चरमरा उठीं।
“बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के लिए देश में लागू लोचदार कानून भी कम जिम्मेदार नहीं हैं। सच तो यह है कि सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए हमारे यहां असरदार कानून बनाए ही नहीं गए। सड़क दुर्घटनाओं की जांच भी महज एक औपचारिकता भर बन कर रह गई है।
भारत में सड़क सुरक्षा के प्रति प्रायः सरकारों द्वारा भी सुस्ती और उदासीनता का परिचय दिया गया। इसका पता इसी से चलता है कि समय की मांग के अनुरूप राज्य सरकारों द्वारा लाइसेंसिंग प्रणाली, ट्रैफिक नियमों का पालन करवाने संबंधी उपकरणों एवं सड़क अभियांत्रिकी आदि का न तो नवीनीकरण किया गया और न ही इन क्षेत्रों में पर्याप्त निवेश ही किया गया। वाहनों की संख्या और वाहनों की रफ्तार तो बढ़ती रही, किंतु हम पाने ढर्रे पर ही चलते रहे। हमारे यहां ‘यातायात पुलिस तो है, किंतु इसमें कर्मचारियों का अभाव हमेशा बना रहता है। यातायात पुलिस के पास जहां सुरक्षित आवागमन संबंधी कोई ठोस रणनीति नहीं है, वहीं संसाधनों का भी अभाव है।
सच तो यह है कि सड़क दुर्घटनाओं की रोकथाम के लिए हमारे यहां असरदार कानून अभी तक नहीं बनाए गए थे। सड़क दुर्घटनाओं की जांच भी महज एक औपचारिकता भर बन कर रह गई है। शहरीकरण तो तेज हुआ है, मगर इस प्रक्रिया में यातायात की सुगमता को हमेशा हाशिए पर रखा गया। हमारे यहां ‘ट्रैफिक सेंस’ का तो अभाव है ही, नशे की हालत में वाहन चलाने से भी दुर्घटनाएं होती हैं। इस हालत में अक्सर वाहन चालक यातायात नियमों की अनदेखी करते हैं, लापरवाही बरतते हैं, तो ड्राइविंग संबंधी गलतियां भी खूब करते हैं। आंकड़ों से पता चलता है कि सर्वाधिक 75% मार्ग दुर्घटनाएं ड्राइविंग संबंधी गलतियों से, 2.5% मार्ग दुर्घटनाएं पैदल चलने वालों की गलतियों से तथा 1.5% मार्ग दुर्घटनाएं साइकिल सवारों की गलतियों से होती हैं। मार्ग दुर्घटनाओं में खराब मौसम का भी योगदान रहता है तथा 1.0% मार्ग दुर्घटनाएं खराब मौसम के कारण होती हैं, जिसमें कोहरा और बारिश प्रमुख कारक हैं। जहां 1.5% मार्ग दुर्घटनाओं में खराब सड़कों का योगदान रहता है, वहीं 1.6% दुर्घटनाएं वाहनों की खराब दशाओं के कारण होती हैं। 14% सड़क दुर्घटनाएं अन्य कारणों से होती हैं।
एक तरफ तो हमारे देश में सर्वाधिक (75%) सड़क दुर्घटनाएं ड्राइविंग संबंधी गलतियों से होती हैं, तो दूसरी तरफ ड्राइविंग लाइसेंस देने वाले आरटीओ ऑफिसों का बुरा हाल है। इसे विडंबना ही कहेंगे कि इनके द्वारा बिना किसी परीक्षण एवं प्रशिक्षण के ड्राइविंग लाइसेंस जारी कर हादसों को अंजाम देने की खुली छूट दी जाती है। इन कार्यालयों में जहां भ्रष्टाचार चरम पर है, वहीं दलालों का कब्जा भी बदस्तूर बना हुआ है। स्थिति यह है कि बगैर किसी वैज्ञानिक-मनोवैज्ञानिक परीक्षण के दलालों की मदद से लोग आसानी से ड्राइविंग लाइसेंस बनवा लेते हैं। इन निकायों में वाहन चलाने का प्रशिक्षण दिए जाने की भी कोई सुविधा नहीं है। तरीका तो यह होना चाहिए कि पहले प्रशिक्षण दिया जाए, फिर परीक्षण किया जाए और उसके बाद वाहन चलाने का लाइसेंस दिया जाए। नगर निगमों, नगर पालिकाओं एवं इस तरह के अन्य निकायों का हाल यह है कि इनके द्वारा पैदल पथों के रख-रखाव एवं मार्गों पर से अतिक्रमण हटाने पर तनिक भी ध्यान नहीं दिया जाता है। फलतः सड़क दुर्घटनाएं बढ़ती
विदित हो कि केंद्र सरकार द्वारा ‘राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा परिषद’ का गठन तो किया गया, किंतु यह परिषद अभी तक सड़क सुरक्षा से जुड़ी कोई ठोस रणनीति प्रस्तुत नहीं कर सकी है। यहां यह रेखांकित करना उचित रहेगा कि केंद्र सरकार द्वारा ‘सड़क सुरक्षा, यातायात प्रबंधन’ पर गठित की गई ‘सुंदर समिति’ ने वर्ष 2007 में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया था कि सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों के बढ़ते हुए आंकड़ों के बावजूद ऐसी कोई बड़ी राष्ट्रीय नियंत्रण योजना मौजूद नहीं है, जैसी डेंगू और मलेरिया जैसे रोगों का सामना करने के लिए बनाई गई है। यह विडंबनीय है कि दर्घटनाओं के रूप में सड़कों पर नाचती मौत पर सरकारों की बस इतनी प्रतिक्रिया रहती है कि सुरक्षा उपायों में अधिकतम वृद्धि की जा रही है। व्यावहारिक धरातल पर कुछ नहीं किया जाता। यही कारण है कि बढ़ती सड़क दुर्घटनाओं के कारण भारत विश्व में पहले पायदान पर पहुंच चुका है।
वर्तमान केंद्र सरकार भारत में हो रही सड़क दुर्घटनाओं को गंभीरता से ले रही है। इसी प्रक्रिया में भारत सरकार जुलाई, 2019 में मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लेकर आई जिसको कि भारतीय संसद द्वारा पारित कर दिया गया।
हालांकि सड़क सुरक्षा के संदर्भ में कुछ अच्छी पहलें होती अवश्य दिख रही हैं। मसलन, केंद्र सरकार द्वारा शुरू की गई एक योजना में यह प्रावधान है कि जो व्यक्ति या संस्था सड़क सुरक्षा कार्यक्रमों में अनदान या चंदा देंगे, उनको आयकर अधिनियम की धारा 80-जी के तहत आयकर में 50% की छूट मिलेगी। अनुदान के रूप में प्राप्त यह पैसा सड़क सुरक्षा उपायों, लोगों को जागरूक करने तथा अधोसंरचना को मजबूत बनाने में खर्च किया जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में यह जान लेना उचित रहेगा कि भारत में सड़क दुर्घटनाओं के कारण हमें सालाना दो लाख करोड़ रुपये की आर्थिक हानि उठानी पड़ती है।
वर्तमान केंद्र सरकार भारत में हो रही सड़क दुर्घटनाओं को गंभीरता से ले रही है। इसी प्रक्रिया में भारत सरकार जुलाई, 2019 में मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक लेकर आई जिसको कि भारतीय संसद द्वारा पारित कर दिया गया। इस संशोधन के तहत मोटर वाहनों से संबंधित दंड शुल्क में प्रतिवर्ष 10% बढ़ोत्तरी करने, पुराने वाहनों को बंद करने, सड़क सुरक्षा बोर्ड की स्थापना करने आदि का प्रावधान है।
उल्लेखनीय है कि सरकार द्वारा लाए गए कानून से सड़क हादसों एवं उससे होने वाली जान-माल की क्षति में 50% कमी आने की संभावना है। भारत सरकार सड़क सुरक्षा संबंधी खामियों से निपटने हेतु इस समय लगभग 12 हजार करोड़ रुपये खर्च कर रही है |
सड़क दुर्घटनाएं बहुत भयावह होती हैं। इनमें जहां तमाम लोग मारे जाते हैं, वहीं बहुतेरे अपाहिज हो जाते हैं। इनमें घर के घर उजड़ जाते हैं। देश और समाज के प्रतिभावान लोग जब सड़क दुर्घटनाओं के कारण मौत के मुंह में समा जाते हैं, तो इससे समाज और राष्ट्र को व्यापक क्षति होती है। ऐसे में यह नितांत आवश्यक है कि भारत में सड़क सुरक्षा को बढ़ाने एवं सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली मौतों को कम करने के लिए सुचिंतित ढंग से काम किया जाए। आवश्यकता इस बात की भी है कि इस दिशा में जो भी प्रयास किए जाएं, उन्हें पूरी सख्ती एवं पारदर्शिता के साथ अमली जामा पहनाया जाए। साथ ही अब तक उठाए गए कदमों की समीक्षा की जाए।
सड़क सुरक्षा की दृष्टि से व्यावहारिक पहलों की आवश्यकता है। पहली जरूरत तो यह है कि हम बेहतर सुरक्षा मानकों को अपनाएं तथा सड़क नेटवर्क की बेहतर गुणवत्ता पर विशेष जोर दिया जाए। चूंकि सर्वाधिक दुर्घटनाएं ड्राइविंग संबंधी गलतियों के कारण होती हैं, अतः यह व्यवस्था अनिवार्य बनानी चाहिए कि प्रशिक्षण एवं परीक्षण के बाद ही स्थायी (Permanent) ड्राइविंग लाइसेंस दिए जाएं। इसके लिए बाकायदा मान्यता प्राप्त ‘वाहन चालन प्रशिक्षण संस्थानों की स्थापना की जाए। निरोधात्मक प्रयासों के तहत यह भी जी राष्टीय राजमार्गों पर से शराब की दुकानें हटवाई जाएं तथा नशे में वाहन चलाने वालों से सख्ती से निपटा जाए। उन वाहनों के विरुद्ध सल कार्रवाई किए जाने की भी आवश्यकता है, जो निर्धारित सीमा से अधिक भार लाद कर चलते हैं।