
राजकुमार की कहानी-तीन राजकुमार
बहुत समय पहले की बात है। भारत में एक सुलतान का राज था। उसके तीन समझदार बेटे थे-हुसैन, अली और अहमद।
सुलतान की एक सुंदर भानजी नूर-उन-निहार भी थी। वह बचपन में ही अनाथ हो गई थी। सुलतान ने उसे बड़े प्यार-दुलार से पाला था। तीनों राजकुमार नूर को पसंद करते थे और उससे शादी करना चाहते थे, जबकि सुलतान का इरादा था कि उसकी शादी किसी दूसरे राजकुमार से की जाए, ताकि तीनों भाइयों के बीच लड़ाई न हो।
एक दिन तीनों राजकुमार सुलतान को सारी बात बताकर बोले, “अब आप तय करें कि नूर की शादी किसके साथ होनी चाहिए।”
सुलतान ने तीनों राजकुमारों की परख करने का फैसला किया। सुलतान ने उन्हें अलग-अलग देशों में जाकर उनके लिए कोई अनूठा उपहार लाने को कहा। वह बोले कि जिसका उपहार सबसे अनूठा होगा, उसके साथ नूर की शादी कर दी जाएगी।
अगली सुबह तीनों राजकुमारों ने व्यापारियों का वेश धारण किया और अपने-अपने घोड़ों पर सवार होकर चल दिए। सबके साथ नौकर के वेश में एक-एक भरोसेमंद अधिकारी भी था। वे शहर के बाहर सराय में रात बिताने के लिए ठहरे। अगली सुबह वे अलग-अलग दिशाओं में चल दिए और तय किया कि वे एक साल बाद उसी सराय में भेंट करेंगे।
राजकुमार हुसैन अपने साथी के साथ भारतीय तट पर स्थित बिसनगर राज्य की ओर चल दिया। हुसैन ने वहां की दौलत, ताकत और संस्कृति के बारे में बहुत कुछ सुना था। वे रेगिस्तानों, पहाड़ों, मैदानों और खेतों को पार करते हुए तीन महीने बाद वहां पहुंचे।
वे एक सराय में रुके और फिर शहर देखने निकले। वह जगह बहुत सुंदर थी। राजा का महल तो देखने लायक था। बाजार में रेशम, गहने तथा इत्र बेचने वालों और व्यापारियों की भरमार थी।
तभी हुसैन ने देखा कि एक आदमी पुराना कालीन बेच रहा है। कालीन नया या बड़ा नहीं था, लेकिन वह आदमी उसका बहुत दाम मांग रहा था। यह देखकर हुसैन को बड़ी हैरानी हुई।
“पुराने कालीन का इतना दाम क्यों मांग रहे हो?” उसने पूछा। “अब मैं इसे दुगने दाम पर बेचूंगा।” वह आदमी बोला।
यह सुनकर हुसैन को बहुत आश्चर्य हुआ, अतः उसने उस कालीन की खूबी के बारे में पूछा।
“इस पर बैठें, यह आपको मनचाही जगह उड़ा ले जाएगा।”
जब हुसैन कालीन पर बैठा, तो वह उसे उड़ाकर सराय में ले गया। हुसैन ने सोचा कि यह कालीन पिता जी के लिए एक अनूठा उपहार होगा। उसने वह कालीन खरीद लिया और कुछ समय वहीं बिताने का विचार किया। उसने उस दौरान वहां की इमारतों, मंदिरों, सजे हुए हाथियों और शहर की रौनक का आनंद लिया।
उस शहर की हर बात निराली थी। वहां अनगिनत छोटे-बड़े भवन बने थे। अनेक स्थानों पर काफी सुंदर मंदिर भी थे। मंदिरों में सुबह-शाम आरती होती थी तथा घंटे-घडियाल बजाए जाते थे। हाथियों के सजे हुए हौदों पर भगवान की शोभा यात्रा निकाली जाती थी। हर मंदिर में बिना पैसों के भोजन मिलता था, जिसे वे लोग प्रसाद कहते थे। हुसैन को वह जगह बहुत पसंद आई।
उसने सोचा कि जब उसका विवाह नूर से हो जाएगा, तो वह अपनी पत्नी को भी इन्हीं स्थानों की सैर कराने लाएगा।
राजकुमार अली फारस जाने वाले कारवां के साथ चल पड़ा। वे लोग शिराज पहुंचे। वहां उसने कई व्यापारियों से दोस्ती कर ली और उनके साथ रहने लगा। उसने उन्हें बताया था कि वह भारत का एक सुनार है।
अगली सुबह अली शहर के उस हिस्से में गया, जहां सोने-चांदी का सामान और जवाहरात आदि मिलते थे। उसने एक फेरी वाले को हाथी-दांत की नली बेचते हुए देखा। एक फुट लंबी और एक इंच मोटी नली के लिए वह आदमी सोने के सिक्कों की तीस थैलियां मांग रहा था।
“इसका इतना दाम क्यों? क्या यह कोई खास चीज है? आप लोगों को लगता है कि किसी अनजान विदेशी को मूर्ख बनाकर लूटा जा सकता है। एक छोटी-सी नली के लिए आप इतने दाम मांग रहे हैं। आप हमारे यहां आएं, तो हम एक से एक बेशकीमती और नायाब चीजें दिखा दें। लेकिन उनके दाम अनुचित नहीं होंगे। अब आप यह बताएं कि इस नली की क्या खूबी है?” अली ने पूछा।
फेरी वाले ने कहा, “इस नली के दोनों ओर कांच लगे हैं। अगर इसे आंख से लगा लें, तो वही देख सकते हैं, जिसे आप देखना चाहते हैं।” ।
अली को नली के कांच में अपने पिता दिखाई दिए। उसने यह भी देखा कि नूर अपनी सहेलियों के साथ हंस-बोल रही थी। अली ने सोचा कि यह तो बड़े काम की चीज है। उसने उस अनूठी नली को तुरंत खरीद लिया। इसके बाद वह तब तक शिराज में ही रहा, जब तक भारत आने वाला अगला कारवां नहीं मिल गया।
फिर वह सराय में पहुंचकर अपने भाइयों का इंतजार करने लगा।
अली के लिए वह नली किसी अजूबे से कम नहीं थी। वह अक्सर उसमें नूर को देखा करता था। कभी वह उसे बाग में खेलती दिखाई देती, तो कभी अपनी सहेलियों के साथ बैठकर हंसी-मजाक करते हुए दिखती। नूर को देखकर अली बहुत खुश होता था। वह उससे बेपनाह प्यार करता था। वह उस नली को पाकर निहाल हो गया था।
अब उसे उस दिन का इंतजार था, जब उसके पिता उस अनमोल उपहार को पाकर उसकी शादी नूर से कर देंगे।
इधर अहमद समरकंद गया, तो उसे भी अपने भाइयों जैसे तजुर्बे हुए। उसने वहां के एक बाजार में एक व्यक्ति को सेब बेचते हुए देखा। वह उस सेब के लिए सोने के सिक्कों की पैंतीस थैलियां मांग रहा था। वह एक खुशबूदार नकली सेब था।
“यह सेब किसी भी आदमी की कोई भी बीमारी दूर करके उसे सेहतमंद बना सकता है। मरता हुआ इन्सान भी इसे सूंघकर जिंदा हो जाता है।” उस व्यक्ति ने अहमद को बताया। यह सुनकर अहमद आश्चर्य में पड़ गया।
अहमद ने वह सेब अपने पिता के लिए खरीद लिया और भारत वापस आने से पहले उसने समरकंद के सभी सुंदर स्थान देखे। फिर वह सराय में जाकर अपने भाइयों से मिला। तीनों भाई अपने पिता से मिलने के लिए चल दिए। सबके पास उनके लिए अनूठा उपहार था।
तीनों भाइयों ने आपस में पूछा कि वे क्या लाए थे। हुसैन को नली दिखाते समय अली मायूस हो गया। पूछने पर पता चला कि उसने नली में नूर को मरा हुआ देखा था। अली बोला, “मैंने अभी देखा कि नूर मरी पड़ी है तथा हकीम और सारा परिवार उसे घेरे खड़ा है। सभी लोग रो रहे हैं।”
फिर तीनों भाई झट से कालीन पर बैठे और उड़कर महल में पहुंच गए। अहमद ने नूर को सेब सुंघा दिया और वह जीवित होकर बैठ गई।
इसके बाद तीनों भाइयों ने अपने-अपने उपहार पिता को दिखाए। सुलतान के लिए यह तय करना कठिन हो गया कि कौन-सा उपहार खास था, क्योंकि सबने मिलकर नूर की जान बचाई थी।
अली ने उसे मरता हुआ देखा, सभी कालीन पर बैठकर आए और अहमद ने सेब सुंघाकर उसे जिंदा कर दिया। सुलतान ने कहा कि नूर के लिए दूल्हा चुनने का कोई दूसरा तरीका खोजना होगा।
अनूठे उपहारों सहित तीनों भाइयों का वापस लौट आना सुलतान के लिए मुसीबत बन गया था। उन्होंने सोचा था कि उनके बेटे कोई खास उपहार नहीं ला सकेंगे और वे इसी बहाने नूर का विवाह किसी दूसरे राजकुमार से कर देंगे, ताकि बेटों में फूट न पड़े। लेकिन यहां तो बाजी ही पलट गई थी।
अंततः उन्होंने दूसरा उपाय सोच लिया।
सुलतान ने तीनों बेटों से कहा कि वे अपने धनुष-बाण लेकर शहर के बाहर मैदान में चलें। जिसका चलाया हुआ तीर सबसे दूर जाएगा, उसे ही नूर का दूल्हा चुन लिया जाएगा।
हुसैन का तीर दूर तो गया, लेकिन अली का तीर उससे भी दूर गया। अहमद के तीर का पता ही नहीं चल रहा था। सुलतान ने कहा कि अहमद का तीर नहीं मिल रहा है, इसलिए उसे विजेता नहीं चुना जा सकता। उन्होंने राजकुमार अली को नूर का दूल्हा चुन लिया।
तीनों राजकुमारों ने सुलतान का निर्णय मान लिया, लेकिन हुसैन ने शादी में हिस्सा नहीं लिया। वह शहर छोड़कर चला गया और किसी सूफी-संत का शिष्य बन गया था।
राजकुमार अहमद ने सोच लिया था कि वह कुछ ही दिनों में उस जगह को छोड़कर चला जाएगा। अब वह सारी दुनिया में घूमना और उसे देखना चाहता था। उसे नूर को भुलाना था, क्योंकि अब वह उसके भाई अली की पत्नी बन चुकी थी।
इधर राजकुमार अली और नूर खुशी-खुशी रहने लगे। उन्हें हुसैन और अहमद के चले जाने का बहुत दुख था।