
Panchatantra Stories with Pictures-बिन मांगी सलाह
किसी पहाड़ पर एक घना जंगल था। उस जंगल में कई तरह के पहाड़ी पशु और पक्षी रहते थे। जंगल बहुत सुंदर था पर वहां बहुत सर्दी पड़ती थी। एक बार अचानक तेज बारिश होने के कारण सर्दी बहुत ज्यादा बढ़ गई। पहाड़ पर रहने वाले जानवरों की जान आफत में आ गई। जानवरों के पास जंगल में ठंड से बचने के कोई साधन नहीं थे।
उन्हें पेड़ की खोखल, किसी बड़े पेड़ की शाखा, किसी गुफा, घोंसले या बिल आदि में ही शरण लेनी होती थी, लेकिन इसके बावजूद ठंड से पूरी तरह बचाव नहीं हो पा रहा था। वे भगवान से रोज यही प्रार्थना करते कि सूरज निकल आए और वे धूप सेंक कर ठंड से बचाव कर सकें।
उसी जंगल में बंदरों का एक झुंड रहता था। वैसे तो सभी जानवर इस सर्दी और बारिश से परेशान थे पर बंदरों की हालत और भी ज्यादा खराब थी। उनके पास अपना सिर छिपाने को कोई घोंसला, गुफा या बिल नहीं था। वे पेड़ों की शाखाओं पर बैठे ठंड से कांप रहे थे। मारे ठंड के उनके दांत किटकिटा रहे थे। उनकी हालत सचमुच बहुत दयनीय थी।
उन बंदरों में से एक बंदर को लगता था कि वह बहुत समझदार है। वह एक गांव से हो कर आया था, उसने वहां देखा था कि सर्दियों में किस तरह गांव वाले एक साथ मिल कर आग तापते हैं। वे सब लाल अंगारों के सेंक से अपने-आप को गरमाहट देते हैं।
उसने यह बात दूसरे बंदरों को बताई। उसी पेड़ के पास गुंजा फलों का पेड़ था। गुंजा का फल लाल और चमकीला होता है। बंदरों को लगा कि पेड़ पर लगे हुए गुंजा फल ही अंगारे होते हैं। वे कुछ गुंजा फल ले आए और उन्हें एक साथ रख कर उन पर हाथ तापने लगे।
उन्हें लगा कि ऐसा करने से उनके हाथों को गरमाहट मिलेगी। पर लाख कोशिशों के बाद भी उनसे आग की एक चिंगारी तक नहीं निकली।
वहीं पास में, पेड़ पर बने घोंसले में एक पक्षी बहुत ही आराम से गरमाहट के बीच बैठा था। उसे यह सब देख कर बहुत हंसी आई।
उसने कहा, “अरे सुनो! तुम लोग तो बहुत पागल हो। ये अंगारे नहीं, ये तो गुंजा के फल हैं। इनसे तुम्हें सेंक नहीं मिलेगा।”
बंदर चिल्लाया, “तुम इस बारे में क्या जानो। मैंने गांव में लोगों को ऐसा ही करते देखा है। तुम अपने काम से काम रखो और शांत बैठो।”
तब तक पक्षी को बंदरों के मूर्खतापूर्ण प्रयास देखकर और भी मजा आने लगा था। वह अपने घोंसले से निकल कर बंदरों के और पास पहुंच गया। वह उन्हें लगातार ऐसा ही करते देखता रहा और जोर-जोर से हंसते हुए बोला, “अरे! तुम लोगों के लिए यही बेहतर होगा कि तुम किसी पेड़ की खोखल या गुफा में जा कर ठंड से अपना बचाव करो। ऐसे तो कुछ नहीं बनने वाला। वहां चले जाओगे तो बारिश और ठंडी हवा से बच जाओगे। तुम सब बहुत मूर्ख हो जो गुंजा के फलों से आग जलाने की बेकार कोशिश कर रहे हो।”
बंदरों ने कई बार उस पक्षी की सलाह को अनसुना किया, लेकिन पक्षी पर तो मानो उन्हें समझाने का भूत सवार था। ऐसे में बंदरों का चिढ़ना स्वाभाविक था।
फिर से जब पक्षी ने बंदरों को सलाह दी, तो उनका गुस्सा सातवें आसमान पर पहुंच गया। वे भीगे हुए थे, सर्दी से कांप रहे थे और फिर आग भी जल नहीं पा रही थी, ऊपर से यह पक्षी उन्हें बिन मांगे सलाहें दिए जा रहा था। एक बंदर गुस्से में बोला, “तेरी इतनी हिम्मत! हमें मूर्ख कह रहा है, ठहर जा! अभी मजा चखाता हूं।”
उसने पक्षी को झपट्टा मार कर पकड़ा और धरती पर पटक कर जान से मार दिया। बेचारे पक्षी का काम तमाम होने में देर नहीं लगी।
इसीलिए कहते हैं कि कभी किसी को बिना मांगे सलाह नहीं देनी चाहिए। कई बार किसी मूर्ख को सलाह देना बहुत महंगा पड़ सकता है। पक्षी बेचारा इसी दोष के कारण ही तो मारा गया।