
Panchatantra Stories in Hindi-सवारी का मजा
बहुत समय पहले की बात है। किसी पहाड़ पर एक बूढ़ा सांप रहता था। वह इतना बूढ़ा हो गया था कि अब उससे अपना शिकार भी नहीं किया जाता था। पर उसे अपना पेट तो भरना ही था। ‘वह क्या करे,’ इसके बारे में वह कोई उपाय सोचने लगा। एक तरकीब उसकी समझ में आ गई। इस चाल के कामयाब होने पर उसके भोजन का प्रबंध बड़े आराम से हो सकता था।
वह पहाड़ के पास बने तालाब के पास गया। वह तालाब मेंढकों से भरा हुआ था। वहां उसने एक संत होने का दिखावा किया। किनारे पर वह अपनी आंखें बंद करके बैठ गया। एक मेंढ़क ने उसे देखा तो उसे हैरानी हुई कि सांप उस दिन शिकार नहीं कर रहा था। मेंढक ने जब इसका कारण पूछा, तो सांप बोला, “मैंने शिकार नहीं करना छोड़ दिया है।” उसने आगे बताया, “मैं दिन-रात शिकार करता था। कल रात मैं एक मेंढ़क का पीछा करते-करते आश्रम में चला। गया, जिससे वहां के साधुओं की पूजा में विघ्न पड़ा। मेंढ़क तो चले गए, पर साधुओं को बहुत गुस्सा आया। और इसी हडबड़ाहट के बीच मैंने एक साधु के बेटे को काट लिया। वह मर गया। दुखी साधु ने मुझे शाप दे दिया कि अब से मुझे हमेशा मेंढकों की सेवा में रहना होगा। वे मेरी सवारी करेंगे। वे सवारी का मजा लेंगे और मैं केवल वही खा सकूँगा, जो वे मुझे खाने को देंगे। इसलिए मैं यहां तुम लोगों की सेवा करने आया हूं।”
मेंढ़क ने यह कहानी। दूसरे दोस्तों को बताई और यह बात उनके राजा तक भी जा पहुंची। मेंढकों का राजा सांप से मिलने आया और उसे यकीन हो गया कि सांप झूठ नहीं बोल रहा। सांप ने उसे अपनी पीठ पर बिठा कर पहाड़ की सैर करवाई। फिर कुछ दूसरे मेंढ़क भी सवारी करने आ गए।
इस तरह अगले कुछ दिन बहुत आराम से बीते। मेंढ़क रोज शाम को सवारी का मजा लेते। एक दिन राजा ने देखा कि सांप बहुत धीरे-धीरे चल रहा था। जब उसने कारण पूछा तो पता चला कि सांप ने कई दिन से कुछ नहीं खाया और वह भूखा था।
राजा ने उसे इजाजत दे दी कि वह छोटे मेंढकों को खा सकता है। सांप ने उसे धन्यवाद दिया और फिर वह छोटे मेंढकों से अपना पेट भरने लगा। शेष सबकी सवारी भी जारी रही।
एक दिन मेंढकों के राजा ने सांप और उसके मित्र की बातचीत सुन ली। सांप अपने मित्र को बता रहा था कि उसने कैसे मेंढकों को मूर्ख बनाया और अब वह मजे से अपना पेट भर रहा है। यह सुन कर मेंढ़कों के राजा को बहुत गुस्सा आया। उसने सांप से इस बारे में पूछा तो सांप ने उसे अपने मीठे शब्दों के जाल में उलझा लिया। राजा और बाकी मेंढक सवारी का आनंद लेते रहे। ___ जल्द ही सांप सारे छोटे मेंढक खा गया। अब वह क्या करे? मेंढकों के राजा से बात का कोई लाभ नहीं था। वह अपने साथियों अर्थात् बड़े मेंढकों का खाने का आदेश तो दे नहीं सकता था इसलिए वह उसे बिना पूछे ही बड़े मेंढकों को खाने लगा। मेंढक राजा को अपनी सवारी के चक्कर में अपने तालाब में कम हो रहे मेंढकों का पता ही नहीं चला।
एक दिन जब सारे मेंढ़क मारे गए तो केवल उनका राजा ही तालाब में अकेला रह गया। उस दिन सांप ने उसे भी अपना भोजन बना लिया। इस प्रकार मूर्ख राजा को अपनी मूर्खता का फल मिल गया।
Panchtantra ki kahaniyan-बंदर का कलेजा
नदी के किनारे एक पेड़ था, जो वर्षभर मीठे जामुनों से लदा रहता था। उस पर लाल मुंह वाला एक समझदार बंदर रहता था। वह उन मीठे जामुन फलों का स्वाद लेता।
एक दिन एक बड़ा-सा मगरमच्छ किनारे पर आया और पेड़ के नीचे सुस्ताने लगा। वह बहुत दूर से तैर कर आया था इसलिए ठंडी हवा लगते ही उसे नींद आ गई।
जब बंदर ने उसे देखा तो उसने उसका स्वागत किया और अपने पेड़ से टूटे फल भी खिलाए। मगरमच्छ को वो जामुन के फल स्वाद लगे। कुछ ही देर में बंदर और मगरमच्छ अच्छे दोस्त बन गए।
अब वे दोनों रोज मिलने लगे। बंदर पेड़ से तोड़ कर जामुनों को अपने दोस्त के मुंह में डालता जाता। मगरमच्छ भी जी भर कर मीठे जामुन खाता। दोनों एक-दूसरे को कहानियां सुनाते और खूब हंसते।
एक बार मगरमच्छ अपनी पत्नी के लिए भी कुछ फल ले गया। उसकी पत्नी ने जामुन खाने के बाद पूछा कि वह उन्हें कहां से लाया है। मगरमच्छ ने उसे अपने दोस्त बंदर के बारे में बताया। मगरमच्छ की पत्नी मक्कार थी।
वह मीठे सुर में बोली, “यह तो बहुत अच्छी बात है कि तुम्हें ऐसा दोस्त मिला है। वह तो हर रोज यही मीठे फल खाता होगा। जरा सोचो कि उसका कलेजा कितना रसीला और स्वादिष्ट होगा! अगर तुम मुझे बंदर का कलेजा ला कर दे सको तो मुझे बहुत खुशी होगी।” ___ “मैं उसका कलेजा कैसे ला सकता हूं। वह बहुत दयालु और सच्चा मित्र है, इसलिए मैं उसकी जान नहीं ले सकता,” मगरमच्छ बोला। लेकिन उसकी पत्नी अपनी जिद पर अड़ गई।
मगरमच्छ आनाकानी करता रहा, पर उसकी पत्नी ने उसे अपनी मीठी बातों से राजी कर लिया। वह मान गया कि उसे खाने के लिए वह बंदर का कलेजा ला कर देगा। मगरमच्छ की पत्नी ने सलाह दी कि वह बंदर को अपने घर खाने का न्यौता दे और पीठ पर बैठा कर ले आए। जब वह आएगा तो वे उसे मार कर, उसका कलेजा निकाल कर खा लेंगे।
अगले ही दिन जब दोनों दोस्त मिले तो मगरमच्छ ने अपने दोस्त को खाने का न्यौता दिया और घर चलने को कहा। बंदर मान तो गया, पर फिर बोला, “मैं कैसे आ सकता हूं? मुझे तो तैरना नहीं आता।”
“मैं तुम्हें अपनी पीठ पर बैठा कर ले चलूंगा,” मगरमच्छ ने मार्ग सुझाया।
अब बंदर को भला क्या दिक्कत हो सकती थी। वह अपने दोस्त की पीठ पर बैठ गया। आधे रास्ते में जाने के बाद, मगरमच्छ ने उसे सच बता दिया। उसने बंदर को बताया कि उसकी पत्नी उसका मीठा कलेजा खाना चाहती है इसलिए वह उसे अपने घर ले जा रहा है।
बंदर फंस चुका था। लेकिन उसने युक्ति ढूंढ़ ली। वह बोला, “दोस्त! तुम्हें यह बात पहले बतानी चाहिए थी क्योंकि मेरा कलेजा तो पेड़ पर रखा है। क्या हम वापस जा कर उसे ला सकते हैं?”
मगरमच्छ बंदर को उसके पेड़ के पास ले आया और बोला, “तुम अपने कलेजा ले लो। फिर हम चलें।” बंदर उछल कर पेड़ पर चढ़ा और बोला, “मूर्ख मगरमच्छ! कोई अपना कलेजा पेड़ पर निकाल कर कैसे रख सकता है। धोखेबाज दोस्त, यहां से चला जा और फिर कभी वापस मत आना।” मगरमच्छ अपना-सा मुंह ले कर लौट गया। उसने अपनी मक्कार पत्नी की बातों में आकर एक अच्छा दोस्त खो दिया था।
Panchatantra stories with pictures-मेंढ़क राजा की भूल
किसी कुएं में अपने रिश्तेदारों के साथ मेंढक रहता था। मेंढकों के राजा को अपने रिश्तेदारों से बहुत परेशानी थी। वे उसे हमेशा तंग करते थे। वह उनसे छुटकारा पाना चाहता था। इसलिए वह चाहता था कि वो सब किसी न किसी तरह वहां से भाग जाएं।
एक दिन कुएं के बाहर एक सांप को देखकर उसे एक उपाय सूझा ‘मैं इसकी मदद से अपने दुष्ट रिश्तेदारों से छुटकारा पा सकता हूं,’ उसने सोचा। उसने सांप से कहा कि वह उससे दोस्ती करना चाहता है।
“मुझसे दोस्ती, पर हमारे बीच तो दुश्मनी का नाता है। तुम मेरे दोस्त क्यों बनना चाहते हो?” सांप ने हैरानी से पूछा
“मैं चाहता हूं कि तुम मेरे साथ चल कर हमारे कुएं में रहो और मेरे उन सभी रिश्तेदारों को खत्म कर दो, जो मुझे हैरान-परेशान करते हैं, जिनके कारण मेरा जीना दूभर हो गया है,” मेंढकों के राजा ने कहा।
“तुम्हें कौन तंग कर रहा है?” सांप ने पूछा। “मेरे दोस्त और रिश्तेदार,” मेंढ़क बोला।
सांप बहुत बूढ़ा हो गया था। उसने सोचा कि अगर वह कुएं में रहने चला गया तो भोजन का हमेशा के लिए इंतजाम हो जाएगा।
मेंढक राजा ने उसे कुएं में आने का रास्ता बताया और कुएं की ईंटों के बीच एक बड़ा-सा बिल भी दिखाया, जहां वह आराम से रह सकता था। सांप बड़े मजे से वहां रहने आ गया।
उसने मेंढक राजा के सभी दुष्ट रिश्तेदारों को खा लिया तथा बाद में वह राज-परिवार के सदस्यों को भी खाने लगा। जब मेंढक राजा ने उसे ऐसा करने को मना किया और कुएं से वापस जाने को कहा तो वह बोला, “तुमने ही तो मुझे यहां बुलाया था। मैं तुम्हारा मेहमान हूं। तुम्हारा फर्ज बनता है कि तुम मेरी देखरेख करो। अगर तुमने ऐसा नहीं किया तो मैं तुम्हें भी मार कर खा जाऊंगा।”
मेंढकों के राजा के पास सांप के कहे का कोई जवाब न था। लेकिन एक दिन तो उसने अति कर दी। सांप ने मेंढ़क के बेटे को भी अपना आहार बना लिया।
यह देखकर महारानी रोने लगी और उसने मेंढक राजा पर इल्जाम लगाया कि उसके कारण ही उन पर ऐसा संकट आया है। “तुम ही उस दुष्ट सांप को कुएं में लाए थे। देखो, आज वह हमारे ही बेटे को खा गया,” क्रोध और दुख में अपने पति को फटकारते हुए उसने कहा।
सांप की हरकतों से दुखी होकर एक दिन मेंढक राजा ने वह स्थान छोड़ दिया। बाकी सभी मारे जा चुके थे परंतु सांप चाहता था कि मेंढ़क राजा उसके लिए भोजन का जुगाड़ करता रहे। मेंढक राजा बहुत उदास था। अब वह सोच रहा था कि उसे अपनी जाति के दुश्मन को कुएं में नहीं लाना चाहिए था। उसने सांप से कहा कि वह भोजन की तलाश में बाहर जा रहा है।
इसके बाद वह किसी दूसरे कुएं में जा कर रहने लगा। जब सांप को कई दिन के इंतजार के बाद भी मेंढक राजा नहीं दिखा तो उसने छिपकली को उसे खोजने के लिए भेजा।
छिपकली ने उसे मेंढ़क का नया पता बताया। सांप ने छिपकली के हाथ मेंढ़क राजा को संदेश भिजवाया कि वह अपने कुएं में वापस आ जाए क्योंकि सांप को उसकी बहुत याद आ रही है। पर अब तक मेंढक राजा को अक्ल आ गई थी। उसने छिपकली से कहा कि वह कभी उस कुएं में वापस नहीं जाएगा, जहां सांप उसका खाने के लिए इंतजार कर रहा था। मेंढक राजा को अपने किए का फल मिल गया था।
Panchtantra ki kahani-मूर्ख गधा
बहुत समय पहले की बात है। किसी जंगल में एक शेर रहता था। वह उस जंगल का राजा था। सारे जानवर उसकी आज्ञा का पालन करते थे, लेकिन कुछ तो हमेशा उसकी सेवा में हाजिर रहते थे। एक गीदड़ उसके साथ हमेशा रहता था। शेर जब भी शिकार करता तो उसका पेट भरने के बाद जो भी बचता, उससे गीदड़ का पेट भर जाता था। इस तरह शेर की चापलूसी और सेवा करके गीदड़ का जीवन मजे से बीत रहा था। इस प्रकार उसे किसी तरह की मेहनत किए बिना अपना पेट भरने के लिए भोजन मिल जाता था।
एक दिन शेर जंगल में हाथी का शिकार करने लगा, पर हाथी बहुत ताकतवर था। उसने शेर को घायल कर दिया। बड़ी मुश्किल से वह अपनी जान बचा पाया। उस दिन के बाद शेर इतना कमजोर हो गया कि अब वह शिकार के लिए भी नहीं जा पाता था। इससे गीदड़ की हालत भी बहुत बुरी हो गई। उसे भी खाने के लिए कुछ नहीं मिल । रहा था। दिक्कत की बात तो यह थी कि शेर के भरोसे जिंदा रहने वाले गीदड़ को शिकार करना भी नहीं आता था। शेर ने उससे कहा कि वह जा कर उसके लिए खाने को कुछ ले आए।
गीदड़ को जंगल में कुछ नहीं मिला। उसमें इतनी ताकत भी नहीं थी कि वह स्वयं शिकार कर सके। जानवर उसे देख कर ही वहां से भाग जाते। वह शिकार की तलाश में एक गांव में चला गया। उसे नदी के किनारे एक मरियल-सा गधा घास खाता हुआ दिखाई दिया।
उसने तय किया कि वह उसे बहला कर शेर के पास ले जाएगा। उसने उसे इस तरह पुकारा मानो उसका बहुत पुराना दोस्त हो, “कैसे हो दोस्त? इतने दुबले क्यों दिख रहे हो?”
बूढा मरियल गधा बोला, “धोबी मुझसे बहुत काम करवाता है पर वह मुझे खाना नहीं देता। तभी तो मैं इतना दुबला होता जा रहा हूं।”
“तो तुम हमारे साथ चल कर क्यों नहीं रहते? जंगल में मजे से हरी-हरी घास खाना और ठंडा पानी पीना। वहां तुम्हें किसी तरह का कोई बोझ भी नहीं ढोना पड़ेगा।”
“जंगल में क्या होगा? वहां भी मैं ऐसे ही रहूंगा?” गधे ने पूछा
“अरे नहीं, वहां तो पेड़ों की पत्तियां भी बहुत स्वाद होती हैं। तुम्हें बहुत से दोस्त मिल जाएंगे। वहां एक बहुत सुंदर गधी भी रहती है। मुझे पूरा यकीन है कि तुम्हारी उससे दोस्ती हो जाएगी।” चतुर गीदड़ ने गधे को कई प्रलोभन दिए।
उसने गधे को जंगल में जाने के लिए बहला ही लिया। जब वे जंगल में पहुंचे तो रात हो गई थी। गीदड़ उसे वहीं ले गया जहां शेर उसकी इंतजार कर रहा था। शेर बहुत भूखा था। वह गधे को देखते ही अपना आपा खो बैठा। उसने गधे पर अपने पंजे से तेज वार किया।
गधा ढेंचू-ढेंचू करते हुए, अपनी जान बचा कर भागा। गीदड़ उसके पीछे-पीछे गया। उसने उसे जंगल के छोर पर जा कर रोका, “ठहरो, ठहरो! तुम भाग क्यों रहे हो?”
“क्या तुमने देखा नहीं कि उस प्राणी ने मुझ पर हमला किया था,” गधे ने शिकायत भरे स्वर में कहा।
“हमला, अरे नहीं। तुमने देखा नहीं, वह तो गधी थी, जो तुमसे हाथ मिलाने आई थी। तुम अंधेरे में यूं ही डर गए… डरपोक कहीं के। चलो, वह तुम्हें बुला रही है,” गीदड़ ने बात बनाई।
“क्या तुम्हें पक्का यकीन है?” गधा अब भी उलझन में था। “बेशक! तुम खुद ही चल कर देख लो,” गीदड़ ने भरोसा दिलाया।
इस तरह बेचारा गधा एक बार फिर से गीदड़ की मीठी बातों में आ गया। इस बार शेर ने पहले वाली भूल नहीं की। उसने गधे को पकड़ा और एक ही झटके में उसका काम तमाम कर दिया। गधा अपनी मूर्खता के कारण मारा गया। सुंदर गधी से मित्रता और जंगल की ताजी घास के लालच में उसने अपने प्राण गंवा दिए।