
गुटनिरपेक्ष आंदोलन और भारत |गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर निबंध लिखिए| गुटनिरपेक्ष आंदोलन पर निबंध pdf |Non-Aligned Movement and India
द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जो विश्व उभरा, वह पहले के विश्व से काफी भिन्न था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के रूप में दो महाशक्तियों का आविर्भाव हुआ जिसमें से एक पूंजीवादी तो दूसरी समाजवादी व्यवस्था की समर्थक थी। दोनों महाशक्तियों ने संपूर्ण विश्व को अपने-अपने पक्ष में लाने का प्रयास किया। इस प्रकार पूरी दुनिया को दो भागों में बांटने का प्रयास ही नहीं हुआ वरन् इस प्रयास से तनाव भी उपजे।
परंतु इन दोनों गुटों से भिन्न एक अलग आंदोलन भी उभरा जिसे तृतीय विश्व या गुट निरपेक्ष आंदोलन का आविर्भाव माना जाता है। गुट निरपेक्षता का अर्थ है “किसी भी विशेष देश के साथ सैनिक गुटबंदी में सम्मिलित न होना या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहना, राष्ट्रीय हित का ध्यान रखते हुए न्यायोचित पक्ष में अपनी विदेश नीति का संचालन करना।”
परंतु गुट निरपेक्षता, तटस्थता नहीं है जैसा कि जार्ज लिस्का ने लिखा है, “किसी विवाद के संदर्भ में यह जानते हुए कि कौन सही है, कौन गलत है, किसी का पक्ष न लेना तटस्थता है, किन्तु गुटनिरपेक्षता का अर्थ है सही और गलत में विभेद करते हुए सदैव सही का समर्थन करना।” अमेरिका के जॉन फालेन्स डलेन्स, जिन्होंने आइजन हॉवर सिद्धांत विकसित किया था, की प्रसिद्ध युक्ति थी ‘तटस्थता अनैतिक है।’ परंतु गुट निरपेक्षता न तो तटस्थता है और न निष्क्रियता। जैसा कि जवाहरलाल नेहरू कहते हैं- गुट निरपेक्षता है राष्ट्रों की विविध मुद्दों पर अपने विवेक से निर्णय लेने की स्वतंत्रता। अर्थात् गुट निरपेक्षता किसी अन्य देश के प्रभाव में निर्णय लेने के बजाय अपने ऐतिहासिक निर्णय लेने की स्वतंत्रता है। इससे दो बातें स्पष्ट हो जाती हैं—प्रथम कि गुटनिरपेक्षता का यह मतलब नहीं है कि हर मुद्दे पर NAM (Non-Aligned Movement) के सारे सदस्य राष्ट्र एक ही निर्णय लें अर्थात् NAM एक गुट है, यह मान्य नहीं है। दूसरा कुछ सैद्धांतिक बातों को छोड़कर हर देश अपने हितों को देखते हए उपयुक्त निर्णय ले सकता था, अर्थात् गुट निरपेक्षता का निर्धारक गुट नहीं है, इसका निर्धारक देश हित है। देशहित की गति के आधार पर हर देश को स्वतंत्र निर्णय लेने की स्वायत्तता है। यद्यपि यह देशहित संकीर्ण स्वार्थों पर आधारित नहीं थे।
गुट निरपेक्षता की नीति के प्रणेताओं में से एक पं. जवाहर लाल नेहरू ने गुट निरपेक्षता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि हमारी तटस्थता का अर्थ है निष्पक्षता, जिसके अनुसार हम उन शक्तियों और कार्यों का समर्थन करते हैं, जिन्हें हम उचित समझते हैं और उनकी निंदा करते हैं जिन्हें हम अनुचित समझते हैं, चाहे वे किसी भी विचारधारा के पोषक हों।’
“गुट निरपेक्षता का अर्थ है किसी भी विशेष देश के साथ सैनिक गुटबंदी में सम्मिलित न होना या किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय सैनिक समझौते से दूर रहना, राष्ट्रीय हित का ध्यान रखते हुए न्यायोचित पक्ष में अपनी विदेश नीति का संचालन करना।”
सन् 1961 में बेलग्रेड में आयोजित गुट निरपेक्ष देशों के प्रथम शिखर सम्मेलन में गुट निरपेक्ष की नीतियों के कर्णधारों- नेहरू, नासिर और टीटो ने इस नीति के 5 आवश्यक तत्व माने थे जो इस प्रकार हैं
- सम्बद्ध देश स्वतंत्र नीति पर चलता हो।
- वह उपनिवेशवाद का विरोध करता हो।
- वह किसी भी सैनिक गुट का सदस्य न हो।
- उसने किसी भी महाशक्ति के साथ द्विपक्षीय समझौता न किया हो।
- उसने किसी भी महाशक्ति को अपने क्षेत्र में सैनिक अड्डा बनाने की स्वीकृति न दी हो।
इस प्रकार स्पष्ट हो जाता है कि गुट निरपेक्षता एक गुट नहीं, वरन् एक आंदोलन है, जो विश्व के राष्ट्रों के बीच स्वैच्छिक सहयोग चाहता है, उनमें प्रतिद्वन्द्विता या टकराव नहीं।
गुट निरपेक्ष आंदोलन का प्रथम सम्मेलन सितंबर 1961 में यूगोस्लाविया की राजधानी बेलग्रेड में हुआ। इस शिखर सम्मेलन में 25 देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। अगर गुट निरपेक्ष आंदोलन का मूल्यांकन किया जाए तो इस आंदोलन की कई उपलब्धियां रही हैं। प्रथम तो यह कि इस आंदोलन के उभरने से औपनिवेशिक शासन से मुक्त हुए कई नव स्वतंत्र राष्ट्र अमेरिका या सोवियत संघ द्वारा बनाए गए गुटों के चंगुल में जाने और पिछलग्गू बनने से बच गए।
दूसरा यह कि गुट निरपेक्ष आंदोलन ही उपनिवेशवाद, नस्लवाद आदि के विरोध में सबसे मुखर आवाज उठाई। ___ इसके बढ़ते प्रभाव एवं इसके बढ़ते महत्त्व के कारण ही गुट निरपेक्ष देशों के सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों की संख्या और गुट निरपेक्ष आंदोलन की सदस्यता दोनों ही बढ़ती जा रही है।
गुट निरपेक्ष राष्ट्रों के प्रयास स्वरूप ही विश्व के दो प्रतिस्पर्धी गुटों में संतुलन तथा विश्व शांति प्रयासों की इच्छा पैदा की जा सकी है।
वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में गुट निरपेक्ष आंदोलन ही विश्व में शांति स्थापित करने और उसे स्थायी बनाए रखने में योगदान दे सकता है। यह आंदोलन निर्धन और पिछड़े हुए देशों के आर्थिक विकास पर भी अत्यधिक जोर दे रहा है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन वैश्विक आर्थिक विषमता के विरुद्ध भी निरंतर संघर्ष करता रहा है इसकी मान्यता है कि “आर्थिक शोषण का अंत किये बिना विश्व शांति संभव नहीं है।” लेकिन कई कारणों से गुट निरपेक्ष आंदोलन उतना प्रभावशाली नहीं हो सका जैसी कि अपेक्षा थी और धीरे-धीरे यह आंदोलन कमजोर होता चला गया यद्यपि इसके अनेक कारण थे जैसे-
NAM के सदस्य देश विविध मामलों में असमान थे। इनमें से कुछ जनतांत्रिक थे तो कुछ तानाशाही, कुछ तेजी से विकास करने वाले देश जैसे भारत तो कुछ विकास से अछूते देश। इनमें जो विषमता थी उसके कारण इनमें दरार पड़ती चली गई।
NAM की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी और यह पश्चिमी देशों की सहायता के बिना नहीं रह सकते थे। इसलिए ये पश्चिम समर्थक रहे और इस आंदोलन पर यह आरोप लगाया जाता रहा कि वास्तव में कोई पूरी तरह गुट निरपेक्ष नहीं है।
गुट निरपेक्ष आंदोलन की एक प्रतिष्ठा यह बनी थी कि यह साम्राज्यवाद विरोधी, शांति समर्थक, न्याय समर्थक आंदोलन है, इन देशों के अपने किन्तु पड़ोसियों से संघर्ष के कारण गलत संदेश गया।
NAM का आधार आंदोलन के नेताओं की व्यक्तिगत प्रतिष्ठा पर टिका था। मृत्यु एवं अन्य कारणों से जब ये नेता अलग होने लगे तब यह आंदोलन कमजोर होने लगा। अरबों, अफ्रीकियों एवं एशियाइयों में फूट पड़ गई एवं सर्व स्वीकृत नेता का अभाव हो गया।
शीत युद्ध के कमजोर पड़ने से भी NAM प्रभावित हुआ। सोवियत नेता खुश्चेव ने पूंजीवाद एवं समाजवाद के सहअस्तित्व की बात मान ली और गुटों के बीच समझौते से NAM कमजोर पड़ गया।
“भारत के संदर्भ में भी NAM की प्रासंगिकता है। NAM के पुनर्जीवन से एक बार पुनः भारत को अगुवाई का अवसर मिलेगा।’
सोवियत संघ के विघटन से यह बात सामने आई कि जब गुट | ही नहीं तो गुट निरपेक्षता अर्थहीन है। 1989-90 में यह कहा गया कि या तो इसे समाप्त करने की औपचारिक घोषणा कर दी जाए या | इसे स्वयं ही मर जाने दिया जाये। परंतु 21वीं सदी के प्रारंभ में NAM के पुनरुद्धार की बात की जाने लगी क्योंकि-
जब नाटो जैसे संगठन नहीं समाप्त हुए तो इसे क्यों समाप्त किया जाए। साथ ही सोवियत संघ के विघटन के बाद भी विश्व में विवाद व्याप्त है। NAM नैतिकता तथा अंतर्राष्ट्रीय न्याय एवं शांति पथ-प्रदर्शक रहा है जैसे उपनिवेशवाद विराधे, विश्व शांति जो अभी भी आवश्यक है।
सोवियत संघ के विघटन के बाद संयुक्त राष्ट्र धीरे-धीरे अमेरिका परस्त होने लगा है। ऐसी स्थिति में यह एक वैकल्पिक मंच बन सकता है। इसलिए इसकी प्रासंगिकता है। यह वंचित एवं विकासशील देशों का एक मंच है इसलिए इसमें अपनी एक अंतरंगता है। यह एक अनौपचारिक संगठन है। जिसकी आवश्यकता आज भी है।
यदि देखा जाए तो NAM के स्थापना के समय जो चुनौतियां थीं, आज की चुनौतियां उससे बड़ी हैं उदाहरण के लिए भूमण्डलीकरण से उत्पन्न प्रतिस्पर्धी एवं विषमता की चुनौतियां, पर्यावरण संरक्षण की चुनौतियां, आतंकवाद से निपटने की चुनौतियां।
आज युद्ध पीड़ित विश्व में शांति और सह-अस्तित्व की स्थापना, उपनिवेशवाद और रंगभेद को समाप्त करना, नाभिकीय मुक्त विश्व की संकल्पना को मूर्त करना, मानवाधिकार हनन के खिलाफ आवाज उठाना, विकासशील देशों के मध्य प्रत्येक क्षेत्र में पारस्परिक संबंधों में सहयोग करना आदि ऐसे आधारभूत लक्ष्य हैं जो अभी भी पूरे नहीं हुए हैं। इन चुनौतियों ने यह आवश्यक बना दिया है कि गुट निरपेक्ष आंदोलन अपनी शक्ति का संचय कर पुनः खड़ा हो। चूंकि संयुक्त राष्ट्र के बाद यह सबसे अधिक सदस्य संख्या वाला संगठन है इसलिए किसी समस्या से निपटने में इतने देशों की भागदारी महत्त्वपूर्ण होगी। हाल ही में उभरने वाली विश्व आर्थिक मंदी से भी उबरने में NAM की महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है।
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