
नीति आयोग और उसकी पहले
नीति आयोग की स्थापना के लिए तर्काधार है कि लोगों को उनकी सहभागिता के माध्यम से शासन से विकास तथा सुधार के लिए बहुत बड़ी उम्मीदें हैं। इसके लिए शासन में संस्थागत सुधारों तथा गत्यात्मक नीति-विस्थापनों की आवश्यकता है, जो वृहत-स्तर के परिवर्तनों का बीजारोपण कर सके व उसका पोषणकर सके। हमारे देशका भाग्य, जबसे हमने स्वतंत्रता प्राप्त की है, अब एक उच्चतर प्रक्षेप पथ पर है।
केन्द्रीकृत नियोजन अवधारणा बदली हुई परिस्थितियों में कार्य नहीं कर सकती क्योंकि आयोग अपनी प्रासंगिकता खोता जा रहा था। समय बदल चुका है और मुद्दे बदल चुके हैं, तथा नेहरू ही यह कहने वाले प्रथम व्यक्ति थे कि आयोग पर पुनर्दृष्टि डालने की आवश्यकता है। जब निजी निवेश सार्वजनिक निवेश से बहुत आगे निकल गया है और केन्द्र-राज्य संबंध उल्लेखनीय रूप से बदल गए हैं तो बाजार अर्थव्यवस्था में, नियोजन प्रक्रिया को एक अलग दिशा-निर्धारण व दृष्टिकोण की आवश्यकता है। यह, निस्संदेह, ऐसा कहने का दूसरा तरीका है कि वह बाजार है जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए प्राथमिकताओं तथा संसाधनों के आवंटन को निर्धारित करेगा, ना कि कोई योजना प्राधिकरण।
योजना आयोग अत्यधिक निरंकुश हो गया था और विशिष्ट रूप से उसने अपना फरमान विभिन्न राज्यों पर लागू किया। पंच-वर्षीय योजनाओं में राज्य निवेश मनमाने हो गए थे। दूसरा समान रूप से गंभीर आरोप है कि आयोग केन्द्र में सत्तारूढ़ राजनैतिक दल अथवा गठनबंधन का एजेंट बन गया था। इस संदर्भ में, भास्कर दत्ता ने अवलोकन किया कि जबरदस्त साक्ष्य हैं कि योजना आयोग ने स्वयं को केन्द्र में सत्तारूढ़ राजनैतिक दल अथवा गठबंधन की एजेंसी (संस्था) बन जाने की अनुमति दे दी, क्योंकि अनुपातहीन रूप से ऐसे विवेकाधीन अनुदानों का बड़ा भाग राजनैतिक रूप से केन्द्र में शासन करने वाली पार्टी के साथ संरेखित था।
बदले हुए परिदृश्य में, महासंघीय संरचना में राज्य अपनी राय का अधिक महत्व चाहते हैं। एक राष्ट्र के लिए विकास करना तब तक संभव नहीं है जब तक कि उसके राज्य विकास नहीं करते। नीति आयोग की प्रक्रिया भी ऊपर से नीचे” से लेकर “नीचे से ऊपर” तक परिवर्तित हुई है। नया निकाय “आधार ऊपर (प्रथम)” का दृष्टिकोण अपनाएगा, जहां
स्थानीय स्तर पर निर्णय लिए जाएंगे, तत्पश्चात् केन्द्रीय स्तर पर उनकी पुष्टि की जाएगी। नए निकाय की परिकल्पना ‘सहकारी संघवाद” के आदर्शों का अनुसरण करने के लिए की गई है, जिसमें राज्यों को उनकी अद्वितीय आवश्यकताओं के लिए योजनाओं के निर्माण के लिए छूट दी गई है, बजाए इसके कि उनका (योजनाओं को) केन्द्र द्वारा निर्धारण किया जाए। यह देश की विविधता की पहचान को बनाने के लिए है। एक राज्य की आवश्यकताएं जैसे कि अपने अत्यधिक विकसित सामाजिक संकेतकों के साथ केरल की आवश्यकताएं झारखंड के समान नहीं हो सकतीं, जिसके प्राप्तांक इस आधार पर अपेक्षाकृत कम हैं। यदि वास्तव में निकाय उसी प्रकार कार्य करता है, जिस प्रकार इसकी परिकल्पना की गई है, तो पहली बार राज्यों को अपनी विकास प्राथमिकताएं स्थापित करने में बोलने का अवसर प्राप्त होगा। यह अनेक प्रस्तावों में से एक में प्रतिबंबित भी हुआ है, जो कहता है, ‘ग्राम स्तर पर विश्वसनीय योजना तैयार करने के लिए तंत्र विकसित करना तथा सरकार के उच्च स्तरों पर उत्तरोत्तर इनका समुच्चय करना।’ अन्तर्राज्यीय विवादों को संबोधित करने के लिए प्रभावी तंत्र के साथ, नए निकाए में राज्यों की प्रमुख भूमिका होगी। नीति आयोग का लक्ष्य, निरंतर आधार पर संरचित सहयोग पहल एवं तंत्र के माध्यम से राज्यों के साथ “सहकारी संघवाद” को पोषित करना है, यह जानते हुए कि सशक्त राज्य ही एक सशक्त राष्ट्र का निर्माण करते हैं। यह, नियोजन तथा केन्द्र द्वारा राज्यों को निधियों के आवंटन, दोनों में संघवाद की भावना को बढ़ावा देने का वचन देता है।
यदि एक नई संघीय प्रकृति को विकसित करना है तो, नई संस्था को, संवैधानिक संस्थाओं, जैसे वित्त आयोग, और अंतर्राज्यीय परिषद के साथ मिल-जुलकर काम करने की आवश्यकता है। भूतपूर्व पूर्वानुमान निर्धारित करता है कि किस प्रकार राष्ट्रीय राजस्व को, जो केन्द्रीय करों के माध्यम से कर राजस्व के रूप में एकत्रित किया जाता है, राज्यों के सही तरीके से साझा किया जाना चाहिए। बिना किसी संलग्न तंत्र के, अंतर्राज्यीय परिषद एक विमर्शी संस्था बन सकती है, जो राज्यों के बीच सौदेबाजी के मुद्दों का निराकरण करती है, जो विकास के अलग-अलग स्तरों पर होते हैं या अलग-अलग आर्थिक संरचनाओं वाले होते हैं। नीति आयोग को इन चर्चाओं से एक प्रभावशाली परामर्शी संस्था के रूप में जुड़ना चाहिए। नीति आयोग तब तक एक सफल नवाचार हो सकता है, जब तक कि ऐसे विवरणों को सुलझाया जाता रहेगा।
नया भारत, जिसके लिए नीति आयोग की स्थापना की गई, वह मौलिक रूप से एक भिन्न देश है। कम घरेलू बचतों के विषय में पुरानी मान्यताएं, विदेशी मुद्रा विनिमय अवरोध और उथला वित्तीय बाजार अब समाप्त हो चुके हैं। निजी क्षेत्र ने, दशकों पूर्व,प्रमुख निवेश यंत्र के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र
को प्रतिस्थापित कर दिया था। बचतों को गतिशील करने तथा उन्हें लाभप्रद निवेशों की ओर परिवर्तित करने में बाजारों की कहीं बड़ी भूमिका होती है। योजना आयोग ने सरसरी तौर पर इसे अप्रासंगिक पाया, भले ही सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं के प्रबंधक के रूप में स्वयं उसने इन्हें पुनः प्रस्तुत करने का प्रयास किया।
नीति आयोग को सलाहकार के रूप में रखना बेहतर होगा। नई संस्था को राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक उन्नति पर बाध्यकारी व्यवधानों की पहचान करनी चाहिए: उदाहरण के लिए, अवसंरचना, ऊर्जा, जल, शिक्षा, पर्यावरण व खाद्य उत्पादन।
योजना आयोग में जो संस्थागत निर्बलता पसर गई थी, उससे उबरना महत्वपूर्ण है। नीति आयोग को, अगले दो दशकों में देश के आर्थिक, सामाजिक व राजनैतिक रूपांतरण के लिए एक विशिष्ट समयबद्ध आज्ञापत्र तथा निर्देशन प्रदान किया जाना चाहिए। इसे भारत के संघीय ढांचे, उसकी अद्वितीय सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता को सशक्त बनाते हुए तथा दीर्घकालिक संसाधन-उपयोग कार्यनीति का उदाहरण स्थापित करते हुए उसे एक विकसित राष्ट्र में रूपांतरित करना है। सार्वजनिक सेवा प्रतिपादन में आवश्यक संस्थागत पुनर्गठन तथा नीतिगत सुधार लाने के जनादेश के साथ, आयोग को विकास तथा शासन सुधार कार्यों का आयोग बनाए जाने की आवश्यकता है, जिसमें कानून तथा व्यवस्था, न्याय की व्यवस्था, लोकतंत्र को और अधिक गहरा करने के लिए चुनावी सुधार, ऊर्जा व पर्यावरण प्रबंधन के क्षेत्र शामिल होंगे।
सार्वजनिक क्षेत्र के बीमार उपक्रमों का समापनः प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर नीति आयोग ने सार्वजनिक क्षेत्र के उन उपक्रमों (सीपीएसआई) के विश्लेषण की दो स्तरीय प्रक्रिया शुरू की जो बीमार बताए जाते हैं। सीईओ की अध्यक्षता में एक समिति ने राष्ट्रीय लोक वित्त एवं नीति संस्थान (एनआईपीएफपी) की सहायता से बीमार सीपीएस इकाइयों का विस्तृत विश्लेषण किया। इस समिति ने आयोग के उपाध्यक्ष की अध्यक्षता वाली समिति को अपनी रिपोर्ट सौंपी। समिति के निष्कर्षों के आधार पर रिपोर्ट तैयार कर प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) भेजी । गयी। इसके बाद मंत्रिमंडल ने अनेक बीमार केन्द्रीय उपक्रमों को बंद करने का निर्णय लिया। ।
केन्द्रीय सार्वजनिक उपक्रमों (CEPSe) का युक्तिपूर्ण विनिवेश: वर्ष 2016-17 के बजट में नीति आयोग को उन केन्द्रीय उपक्रमों की पहचान करने का दायित्व सौंपा गया था, । जिनका नीतिगत विनिवेश किया जाना था। इस दायित्व में शामिल थे-(1) युक्तिपूर्ण बिक्री के लिए केन्द्रीय उपक्रमों की ङ्केप पहचान, (2) हस्तांतरित किए जा सकने वाले यरों की संख्या पर सलाह, (3) बिक्री का तरीका और (4) मूल्यांकन की । पद्धतियों के बारे में सुझाव।
अटल नवाचार मिशनः स्वरोजगार एवं प्रतिभा उपयोग । (सेतु-एसईटीयू) को समाहित कर 2016 में अटल नवाचार । मिशन की शुरूआत की गई। यह स्टार्टअप इंडिया कार्ययोजना 5 का ही एक हिस्सा है। इसके लिए नीति आयोग में ही एक । मिशन निदेशालय बनाया गया। नीति आयोग के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) इस मिशन के निदेशक बनाए गए हैं। मिशन की सभी गतिविधियों के सुचारू संचालन के लिए प्रबंधक नियुक्त किए जा चुके हैं।
अटल टिकटिंग लैब्स (बाल प्रतिभाओं की प्रयोगशाला ; प्रारंभिक छानबीन के बाद 595 स्कूलों को नवंबर के प्रथम म सप्ताह में देश के 6 शहरों में चयन प्रक्रिया के अंतिम चरण | में भाग लेने के लिए बुलाया गया। प्रत्येक आमंत्रित विद्यालय को न अपने-अपने क्षेत्र की दो-दो चुनौतियों की पहचान कर उनका । समाधान बताने को कहा गया। इन समाधानों की परख सभी 6 । केन्द्रों में एक स्वतंत्र निर्णायक मंडल ने अलग-अलग किया। । इस दौर के अंकों के आधार पर शीर्ष 257 स्कूलों को पहले । चरण में, 2016 में एटीएल अनुदान दिया गया। इन स्कूलों को वर्तमान में वित्तीय अनुदान जारी किया जा रहा है। ।
डिजिटल भुगतान आंदोलनः डिजिटल भुगतान के विकल्प को प्रोत्साहित करना सार्वजनिक जीवन से काला धन और । भ्रष्टाचार को दूर भगाने की भारत सरकार की रणनीति का न अभिन्न अंग है। इसके लिए सरकार और नागरिक के बीच होने । वाले अधिकतम लेन-देन डिजिटल प्रणाली से किया जाना 5 प्रस्तावित है। इसे अमल में लाने के इरादे से एक समिति गठित की गई जिसे अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में यथाशीघ्र उपयोग में । सरल डिजिटल भुगतान के विकल्पों की पहचान और उनको कार्यरूप में परिणत करने का दायित्व सौंपा गया।
यह समिति अब डिजिटल अर्थव्यवस्था को अपनाने के लाभों को आम लोगों को समझाने और उनमें जागृति लाने के उद्देश्य से आम जनता तक पहुंचने के लिए कार्ययोजना तैयार करने में जुटी हुई है। यह समिति राज्यों की प्रशासकीय मशीनरी के लिए भी खाका (मानचित्र) तैयार करेगी ताकि डिजिटल भुगतान की पद्धतियों को अपनाने में उनकी मदद हो सके। डिजिटल लेन-देन के प्रति समर्थन, जागरूकता एवं जनता, सूक्ष्म उद्योगों और अन्य हितसाधकों की सहायता करने के प्रयासों के समन्वयन से समाविष्ट एक कार्य योजना पहले ही तैयार की जा चुकी है।
द्वीपों का समग्र विकासः नीति आयोग ने समुद्री व्यापार, जहाजरानी, मत्स्यपालन, पर्या-भ्रमण, अधो-समुद्री खनन, तेल एवं गैस तथा अन्य सामाजिक और आर्थिक गतिविधियों को बढ़ावा देने हेतु चिन्हित द्वीपों के विकास की प्रक्रिया शुरू की है। इसका उद्देश्य इन द्वीपों में डीजल के स्थान पर सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वार (समुद्री लहर) ऊर्जा, सागर-तापीय ऊर्जा संसाधनों के प्रयोग को बढ़ावा देने का भी है। नीति आयोग ने सभी संबंधित केन्द्रीय मंत्रालयों विभागों केन्द्रशासित प्रदेशों और अन्य हितसाधकों से परामर्श कर समग्र विकास के लिए पहले चरण में 10 द्वीपों का चयन किया है। ये हैं अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के स्मिथ, रॉस, लॉन्ग, एविस और लिटिल अंडमान तथा लक्षद्वीप समूह के मिनिकॉय, वंगारम, तिन्नाकारा, चेरियम और सुहेली द्वीप।
कृषक हितैषी सुधार सूचकांकः नीति आयोग ने कृषि बाजार सुधार, भूमि पट्टा सुधार और निजी भूमि पर वानिकी (वृक्षों की कटाई एवं परिवहन) के तीन प्रमुख क्षेत्रों में सुधार लाने की आवश्यकता के प्रति राज्यों को तैयार करने के लिए पहली बार कृषि विपणन और कृषक हितैषी सुधार सूचकांक तैयार किए हैं। इस सूचकांक में शून्य से लेकर अधिकतम 100 अंक का अर्थ होगा कि उसमें पूरी तरह से सुधार लागू किए गए हैं। राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों को सूचकांक में प्राप्त अंक के आधार पर क्रम दिए गए हैं। इन संकेतकों का उद्देश्य कृषि-व्यवसाय में सुगमता, आधुनिक व्यापार के लिए अवसर और अपनी उपज के विक्रय हेतु विकल्पों के बारे में प्रत्येक राज्य की स्थिति दर्शाना। ये कृषि बाजारों में स्पर्धात्मकता, दक्षता और पारदर्शिता को भी दर्शाते हैं।
राज्यों के कार्य निष्पादन को मापने के सूचकांकः वर्ष 2016-17 में नीति आयोग ने तीन प्रमुख सूचकांक विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य हाथ में लिया है, जो देश में प्रतियोगी सहकारी संघवाद को आगे बढ़ाने का कार्य करेंगे। आयोग स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और जल के महत्वपूर्ण आर्थिक और सामाजिक क्षेत्रों में परिणाम-आधारित निगरानी ढांचा स्थापित करने का प्रयास कर रहा है। इस ढांचे का बुनियादी उद्देश्य, उपर्युक्त तीनों क्षेत्रों में आधारभूत निष्पादन संकेतकों (केपीआई) के अनुसार राज्यों के प्रदर्शन की समीक्षा के जरिए महत्वपूर्ण नीति का क्रियान्वयन तय करना है। नीति आयोग द्वारा प्रत्येक राज्य से दी गई जानकारी की समीक्षा और विधि मान्यता के लिए अपने-अपने केपीआई डेटासेट में जाने के लिए अनुरोध किया जाएगा।
स्वास्थ्य परिणाम प्रदर्शन सूचकांकः राज्यों द्वारा दी जा रही स्वास्थ्य सेवाओं की गुणवत्ता के आकलन के लिए नीति आयोग और स्वास्थ्य एवं परिवार आयोग मंत्रालय ने संयुक्त रूप से स्वास्थ्य परिणामों की कसौटी पर प्रदर्शन का सूचकांक तैयार किया है। इस सूचकांक का उद्देश्य राज्यों को स्वास्थ्य क्षेत्र में आमूल परिवर्तन के लिए प्रेरित करना है। आयोग ने सूचकांक, उपाय और आंकड़ों की पद्धतियों की विशेषताओं को दर्शाने वाले अभ्यास हेतु दिशानिर्देश भी तैयार किए हैं।
विद्यालय शिक्षा गुणवत्ता सूचकांक: नीति आयोग ने मानव संसाधन विकास मंत्रालय की सहभागिता में विद्यालय शिक्षागुणवत्ता सूचकांक (एसईक्यूआई-सेक्की) की रूपरेखा तैयार की है। सेक्की एक संयुक्त सूचकांक है, जिसके आधार पर शिक्षा गुणवत्ता के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में राज्यों में सुधार के बारे में वार्षिक रिपोर्ट दी जाया करेगी। इस सूचकांक की जो व्यापक परिकल्पना है, उसके अनुसार राज्यों को परिणामों, सतत वार्षिक सुधारों हेतु राज्य नीति नवाचार को प्रोत्साहन देने की ओर ध्यान देना होगा। वर्तमान में सेक्की का 60 प्रतिशत अध्ययन (पठन) परिणामों पर आधारित है। इसीलिए, उच्च गुणवत्ता वाले अध्ययन आंकड़ों की उपलब्धता जल महत्वपूर्ण हो जाती है।
जल प्रबंधन सूचकांक: भारत में जल संसाधनों के सतत प्रबंधन के महत्व को देखते हुए नीति आयोग राज्यों और केन्द्रशासित प्रदेशों के सक्रिय सहयोग से संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक तैयार कर रहा है। यह सूचकांक संबंधित मंत्रालयों, विभागों तथा अन्य संबंधित पक्षों के परामर्श से तैयार किया जा रहा है।