
Motivational story-सच्चा ध्यान
बहुत समय पहले की बात है कि संतनगर में सुप्रसिद्ध संत ज्ञानेश्वर सुबह की पुजा-अर्चना के बाद आश्रम के सामने बहने वाली नदी के किनारे पर भ्रमण कर रहे थे। तभी उन्हें एक बच्चे की चीख सुनाई दी। ज्ञानेश्वर की नजर एक बच्चे पर पड़ी जो नदी के जल में डूब रहा था। उन्होंने आव देखा न ताव, तुरंत नदी में कूद पड़े। बच्चे को बचाकर जब वे नदी के जल से बाहर निकले तो उन्होंने देखा कि नदी के किनारे ठीक वहीं पर एक साधु ध्यान में मगन था, जहां वह बच्चा डूब रहा था। ज्ञानेश्वर ने साधु को आवाज लगाई। साधु ने आंखें खोली और ज्ञानेश्वर को सामने देखकर तुरंत उन्हें प्रणाम किया। ज्ञानेश्वर ने उससे पूछा, “वत्स! तुम क्या कर रहे हो?”
उसने तत्काल उत्तर दिया, “मैं ध्यान लगा रहा था, महाराज!” ज्ञानेश्वर ने पूछा, “क्या तुम्हारा ध्यान लगता है?”
साधु ने उत्तर दिया, “महाराज! ध्यान तो नहीं लगता। मन इधर-उधर भटकने लगता है।” ज्ञानेश्वर ने फिर पूछा, “क्या तुम्हें इस बच्चे की चीख सुनाई नहीं दी थी?”
इस पर साधु ने जवाब दिया, “महाराज! सुनाई तो जरूर दी थी, पर ध्यान लगाने की कोशिश कर रहा था।”
साधु की बात सुनकर ज्ञानेश्वर मंद-मंद मुस्कराए। उन्होंने साधु को समझाया कि तुम ध्यान लगाने में भला कैसे सफल हो सकते हो। ईश्वर ने तुम्हें किसी की सेवा करने का अवसर दिया और वही तुम्हारा प्रथम कर्तव्य भी था। यदि तुम इस कर्तव्य का पालन करते, तभी तो तुम्हारा ध्यान लगाने में मन लगता। प्रभु का बनाया हुआ यह संसार उसका सुंदर खिलौना है। इस सृष्टि का आनंद लेना चाहते हो तो सबसे पहले उसके संसाररूपी बगीचे को संभालना सीखें।
संत ज्ञानेश्वर ने अपनी बात को स्पष्ट करते हुए कहा, “अध्यात्म अपने कर्तव्यों से भागने की सम्मति कभी नहीं देता। सत्य तो यह है कि कर्तव्यपालन ही व्यक्ति को अध्यात्म धारण के योग्य बनाता है।”
ज्ञानेश्वर के ऐसे सारगर्भित वचनों को सुनकर साधु ने उनके पांव पकड़ लिए। वह बोला, “महाराज! आज आपने मुझे मानव जीवन का उद्देश्य बता दिया। मेरी संतुष्टि हो गई।”