
लुई ब्रेल का जीवनी | Louis Braille Biography in Hindi
नेत्रहीनों की लिपि के आविष्कारक लुईस ब्रेल का जन्म सन् 1809 ई० में हुआ था। तीन वर्ष की उम्र में लुईस ब्रेल उस समय अन्धे हो गए थे, जब वे अपने पिता की दुकान में चमड़ा काट रहे थे और चाकू फिसलकर उनकी आँख में लग गया था। चाकू केवल उनकी एक ही आँख में लगा था, लेकिन दूसरी आँख में इंन्फेक्शन हो जाने के | कारण वे बिल्कुल ही अन्धे हो गए।
सन् 1819 ई० में वे पेरिस के अन्ध विद्यालय में भर्ती हो गए तथा वहीं उन्होंने सन् 1829 ई० में ब्रेल लिपि का आविष्कार किया। सन् 1829 ई० में उन्होंने इस लिपि को एक पुस्तक के रूप में छपवाया।
ब्रेल लिपि में 63 अक्षरों की वर्णमाला है जिसमें 26 अंग्रेजी वर्णमाला के अक्षर हैं, कुछ दूसरे शब्द और संख्याएँ हैं। प्रत्येक अक्षर को प्रदर्शित करने के लिए छः बिन्दुओं का एक साँचा है। इन बिन्दुओं पर ऊपर से नीचे की ओर चार, पाँच, छः लिखा होता है। वर्णमाला के पहले दस अक्षर एक, दो, चार और पाँच नम्बर के बिन्दुओं द्वारा प्रदर्शित होते हैं। K से T तक के अक्षर तीन नम्बर के बिन्दु को लगाने से बनाये जाते हैं। शेष छः अक्षर तीन और छः नम्बर के बिन्दुओं को प्रयोग में लाकर प्रदर्शित होते हैं। छः नम्बर के बिन्दु से कुछ शब्दों का निर्माण होता है।
यह एक सर्वविदित तथ्य है कि आज की दुनिया में नेत्रहीन व्यक्ति भी लिख-पढ़ सकते हैं। नेत्रहीनों के लिए जिस लिपि का प्रयोग किया जाता है उसे ब्रेल लिपि कहते हैं। इस लिपि का विकास सन् 1824 ई० में लुईस ब्रेल ने किया। जिस समय उन्होंने ब्रेल लिपि का विकास किया था, उस समय वे पेरिस के नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर ब्लाइण्ड चिल्ड्रन के विद्यार्थी थे।
सन् 1837 ई० में उन्होंने एक बेहतर प्रणाली विकसित की जिसमें उठे हुए अक्षरों के लिखने का प्रावधान था। सन् 1852 ई० में लुईस ब्रेल की मृत्यु हो गई लेकिन सारे संसार में उनकी लिपि प्रसिद्ध हो गई। इसके तश्चात् नेत्रहीनों के लिए एक मशीन विकसित की गई। यह विकास सन् 1892 ई० में अमेरिका में किया गया।
आज दुनिया में नेत्रहीन व्यक्ति भली-भाँति पढ़ते-लिखते हैं और पढ़-लिखकर दफ्तरों में काम करते हैं। बदलते समय ने विकास की दुनिया में नए चिन्ह लगा दिए हैं। आज का प्रशिक्षण प्राप्त नेत्रहीन व्यक्ति बड़ी तेजी के साथ पढ़-लिख सकता है। आज नेत्रहीनों के बड़े-बड़े स्कूल हैं जहां ये लोग पढ़ाई-लिखाई सीखते हैं।