
लोककथा -राजा हो तो ऐसा
एक बार राजा हरिदत्त ने अपने दरबार में घोषणा की कि राजमहल के बाहर एक स्तम्भ पर एक घंटा लगवाया जायेगा। जब भी किसी नागरिक को कोई कष्ट या आवश्यकता हो तो वह इस घंटे को बजा सकता है। जिस समय यह घंटा बजेगा मैं उसी समय उसके कष्ट को दूर करूंगा। उस व्यक्ति को तुरंत न्याय मिलेगा।
राजा की घोषणा का सभी ने स्वागत किया। सभी सुखी थे। किसी को कोई कष्ट न था। राजा की इस घोषणा के कारण वे अपने को और अधिक सुरक्षित अनुभव करने लगे।
राजा के घोषणा करते ही शीघ्र राजमहल के बाहर एक ऊंचे स्तम्भ पर घंटा बांध दिया गया। उस घंटे को बजाने के लिए रस्सी को पास के ही एक पेड़ से बांध दिया गया।
राजा प्रतीक्षा ही करता रहा। उनके राज्य में इतनी सुख, शांति और समृद्धि थी कि किसी को भी घंटा बजाने की आवश्यकता नहीं हुई। राजा भी प्रसन्न था।
अचानक कई वर्षों बाद एक दिन घंटा बज उठा। राजा ने तुरंत अपने मंत्री से कहा, ‘जाकर देखो, किसे कष्ट है।’ घंटा एक बार बजना शुरू हुआ तो बंद होने का नाम ही नहीं ले। रहा था। देखा गया तो एक घोड़े के कारण घंटा बज रहा था। मंत्री ने आकर बताया, ‘महाराज आपके राज्य में किसी को कोई कष्ट नहीं है।’ राजा ने चिंतित स्वर में कहा, ‘फिर यह घंटा कौन बजा रहा था।’ मंत्री ने उत्तर दिया, ‘राजन् रस्सी पर लगी बेल को खाने एक घोड़ा आ गया था। बेल को खाने के कारण रस्सी खिंची और घंटा बजने लगा।’
राजा के चेहरे पर चिंता की । रेखाएं खिंच गयी। मंत्री ने कहा, ‘राजन् आप इतने चिंतित क्यों हो गए?’ राजा ने कहा, ‘चिंता की तो बात ही है। तुम तुरन्त इस घोड़े के मालिक को मेरे सामने हाजिर करो। हम उसे दंड देंगे।’ मंत्री ने आश्चर्यचकित होकर पूछा, ‘महाराज घोड़े से अचानक ही घंटा बज गया तो उसके मालिक को दंड क्यों?’
राजा ने कहा, ‘आश्चर्य है तुम इतने बुद्धिमान मंत्री होकर भी छोटी-सी बात समझ नहीं पा रहे हो। घोड़ा तो दाना खाता है। यह घोड़ा बेल को इसलिए खाने की कोशिश कर रहा था क्योंकि उसे भरपेट भोजन नहीं मिल रहा है। हमारे राज्य की प्रजा ही संतुष्ट रहे इतना ही पर्याप्त नहीं है। राज्य के पशु-पक्षियों को भी सुखी रहने का अधिकार है।’
इतना सुनते ही दरबार में राजा हरिदत्त की जय-जयकार गूंज उठी। जिसने भी उनके इस न्याय को सुना सभी ने यही कहा, ‘राजा हो तो ऐसा।’
आंध्र प्रदेश में आज भी राजा हरिदत्त की प्रशंसा की जाती है। उनसे संबंधित गीत गाए जाते हैं। कथाएं कही और सुनी जाती हैं। आज भी सभी एक स्वर में कहते हैं, ‘राजा हो तो ऐसा’