
इंटरनेट का आविष्कार किसने किया था-Internet Ka Avishkar Kisne kiya tha
इंटरनेट को कुछ लोग ‘सूचना राजपथ’ कहते हैं, तो कुछ ‘इन्फॉरमेशन हाइवे’, कुछ इसे ‘कम्प्यूटरों का वैश्विक संजाल’ कहते है, तो कुछ लोगों का कथन ‘ग्लोबल विलेज नेटवर्क’ है। वास्तव में इंटरनेट सूचना प्रौद्योगिकी का आधनिकतम आधारभूत संसाधन है।
इस अत्याधुनिक सूचना संचार तंत्र की उत्पत्ति करने वाले ‘बिंटन कर्फ’ । जिनके अथक परिश्रम से सन् 1995 ई. में इसे वैश्विक स्वरूप प्रदान किया गया
इंटरनेट बनावटी तौर पर विकेन्द्रीय है। हरेक इंटरनेट कम्प्यूटर होस्ट (Host) कहलाता है और स्वतंत्र रूप से कार्य करता है। इसको चलाने वाले इस बात का चुनाव कर सकते हैं कि किन इंटरनेट सेवाओं का उपयोग किया जाए और विश्वव्यापी इंटरनेट समुदाय को कौन-सी स्थानीय सेवाएं उपलब्ध करायी जाएं।
विश्वव्यापी सूचना नेटवर्क के साथ-साथ इंटरनेट सम्पूर्ण विश्व में फैले लघु नेटवर्क्स और सम्बद्ध उपकरणों का समूह है। इंटरनेट ‘सूचना राजपथ’ के नाम से
भी जाना जाता है। जिस किसी व्यक्ति के पास एक कम्प्यूटर, एक मोडेम, आई. एस.डी. सुविधा सहित एक टेलीफोन लाइन, आवश्यक सॉफ्टवेयर तथा उक्त तीन बुलेटिन बोर्ड सर्विसेज में किसी से संयोजन हो, तो वह दुनिया से सम्बन्धित सूचनाएं बेहद सरलता से प्राप्त कर सकता है।
मूल रूप से सन् 1969 ई. में ‘अर्पानेट’ नाम से रक्षा मंत्रालय, यू.एस. की उच्च शोध परियोजना एजेंसी की एक नेटवर्क के रूप में प्रयोगात्मक आधार पर इसकी नींव रखी गई थी। उस वक्त इसका उद्देश्य शोध परियोजना से सम्बद्ध वैज्ञानिकों के मध्य प्रत्यक्ष संचार व्यवस्था की सुविधा प्रदान करना था। इसकी शुरूआत सिर्फ और सिर्फ चार कम्प्यूटरों के साथ की गई थी, लेकिन वर्तमान में इसके पास सबसे बड़ा नेटवर्क है।
सम्प्रति इंटरनेट द्वारा तकरीबन 60 लाख कम्प्यूटरों के माध्यम से लगभग 4 करोड़ लोगों का जुड़ पाना सम्भव हो सका है। चूंकि इसका उपयोग असीमित है, अतः ऐसा विश्वास है कि इस सदी के आखिर तक दो अरब से ज्यादा लोग इस नेटवर्क से जुड़ जाएंगे।
इंटरनेट के तहत शीर्ष पर होस्ट कम्प्यूटर भी होते हैं, जिन्हें ‘नोड’ भी कहा जाता है। ये होस्ट कम्प्यूटर फाइबर ऑप्टिकल केबल के जरिये नेटवर्क मैनेजर से सम्पर्क साधे रहते हैं। इन कम्प्यूटरों को ऑक्सियल, तारों के माध्यम से निकटवर्ती हजारों पर्सनल कम्प्यूटरों (PC) से सेलुलर फोन, टी.वी., सामान्य टेलीफोन, वीडियो व ऑडियो प्रणालियों से जोड़ा जा सकता है, इनका उपयोग भिन्न-भिन्न कार्यों में किया जा सकता है। इस समग्र संचार प्रणाली का स्नायु केन्द्र ‘नेटवर्क मैनेजर’ होता है। वास्तव में यह कम्प्यूटरों का बैंक है, जो सूचनाओं आदि के आदान-प्रदान को संचालित करता है।
इलेक्ट्रॉनिक मेल (E-Mail) के रूप में इंटरनेट की तकनीक का व्यापक उपयोग होता है। कम्प्यूटरों पर संदेश टाइप करके उसे भेजने का कार्य इसके द्वारा ही किया जाता है। इसके साथ ही सॉफ्टवेयर तथा आंकड़ा कोष (Database) का विकास हुआ, जो कि इंटरनेट का आधार है।
मल्टीमीडिया (जिससे ध्वनि, चित्र आदि को इंटरनेट में डाला जाता है) के विकास के साथ ही इंटरनेट के प्रति लोगों का आकर्षण और बढ़ता गया। कम्प्यूटर, टेलीफोन तथा इलेक्ट्रॉनिक्स प्रणालियों का संयोजन तथा ऑप्टिकल फाइबर प्रणाली के विकास से शब्दों, ध्वनियों और चित्रों को डिजिटल रूप में संग्रहीत और सम्प्रेषित करना सम्भव हो गया है।
इस तरह इंटरनेट ऑप्टिकल फाइबर तारों से जुड़े कम्प्यूटरों का व्यापक नेटवर्क है, जिसमें सूचनाओं, ध्वनियों, चित्रों, आवाजों, आंकड़ों आदि को प्रकाश की गति से भेजना मुमकिन है। इतना ही नहीं, इससे परस्पर जुड़े अनगिनत कम्प्यूटरों का विश्वव्यापी संग्रह भी सम्भव हो सका है।
इंटरनेट के बढ़ते उपयोग के पश्चात् बड़े-बड़े औद्योगिक घराने इंटरनेट की तरफ अपना रुख कर रहे हैं। इंटरनेट प्रौद्योगिकी का छोटा संस्करण माना जा सकता है। यह किसी संगठन की आंतरिक रूप से सूचनाओं के प्रकाशन हेतु अच्छा माध्यम है।
तकनीकी भाषा में इंट्रानेट हाइपरटेक्सट और ग्राफिक पर आधारित ऐसा सिस्टम है, जिसमें अन्य सर्वरों की तुलना में वेब सर्वर को कम हार्डवेयर शक्ति की जरूरत होती है। इसमें फामरवॉल का प्रयोग कर सूचनाओं को शेष उपभोक्ताओं की सहायता से बचाया भी जा सकता है और इंटरनेट तथा इंट्रानेट का उपयोग भी हो सकता है। इंटरनेट का इस्तेमाल करते हुए कई लोग साथ-साथ एक ही दस्तावेज का प्रयोग करते हैं, इसीलिए इसे ‘कम्प्यूटर बोर्ड रूम’ अथवा ‘कम्प्यूट्रीकृत सभाकक्ष’ भी कहा जाता है।
नेटस्केप, माइक्रोसॉफ्ट और नॉवेल संस्थाएं इसके विकास पर काफी धन खर्च कर रही हैं। नेटस्केप को अपनी आधी से ज्यादा कमाई तो मात्र इंट्रानेट सलाहों से ही हो जाती है।
इंट्रानेट लगाना बहुत ही सरल है। एक ऑपरेटिंग सिस्टम, सर्वर हार्डवेयर तथा डब्ल्यू डब्ल्यू सर्वर सॉफ्टवेयर से इंट्रानेट तैयार किया जा सकता है।
इंट्रानेट के दो प्रकार होते हैं-(1) वे जिनमें पूर्ण गोपनीयता है, (2) वे जिनमें कुछ चुनिन्दा लोग इंटरनेट प्रोटोकाल पासवर्ड के माध्यम से प्रवेश पा सकते हैं। दूसरे प्रकार के इंट्रानेट को ‘विस्तृत’ अथवा ‘विस्तारित’ इंट्रानेट का नाम दिया गया
ए.पी.आर.ए. (एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी) ने सन् 1969 ई. को संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के चार विश्वविद्यालयों के कम्प्यूटरों की नेटवर्किंग करके इंटरनेट की नींव रखी। इंटरनेट की खोज का श्रेय ‘विंटन कर्फ’ (अमेरिका) को जाता है। इसका विकास शोध; शिक्षा और सरकारी संस्थाओं हेतु किया गया था। इसका एक अन्य उद्देश्य था, आपात स्थिति में, जबकि सम्पर्क के अन्य माध्यम निष्फल हो जाएं तब, एक-दूसरे से सम्पर्क स्थापित किया जा सके।
सन् 1971 ई. तक एडवांस्ड रिसर्च प्रोजेक्ट्स एजेंसी नेट से तकरीबन दो दर्जन कम्प्यूटरों को जोड़ चुकी थी।
इलेक्ट्रॉनिक मेल अथवा ई-मेल की शुरूआत सन् 1972 ई. में हुई। सन् 1973 ई. में ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल/इंटरनेट प्रोटोकॉल (टी.सी.पी./आई.पी.) को डिजाइन किया गया। सन् 1983 ई. तक आते-आते यह इंटरनेट पर दो कम्प्यूटरों के मध्य संचार का माध्यम बन गया। इसमें से एक प्रोटोकॉल, एफ.टी.पी. (फाइल ट्रांसफर प्रोटोकॉल) की मदद से इंटरनेट प्रयोगकर्ता किसी भी कम्प्यूटर से संलग्न होकर फाइलें डाउनलोड कर सकता है।
आज के समय में भारत तकरीबन 4 करोड़ प्रयोगकर्ताओं के साथ विश्व में पांचवें स्थान पर है। भारत में इंटरनेट का प्रयोग विशिष्ट लोगों हेतु सन् 1987 88 ई. में ही हो गया था, लेकिन जनवरी, सन् 1995 ई. में भारत में प्रथम विश्वस्तरीय आंकड़ा सूचना सेवा इंटरनेट के रूप में प्रारम्भ हुई। इस सेवा के अन्तर्गत 160 देशों के अन्तर्राष्ट्रीय नेटवर्क सम्बद्ध हैं।
ध्यान देने योग्य बात यह है कि इसके द्वारा दुनिया भर के लाखों कम्प्यूटर सूचना केन्द्रों से प्राप्त सूचनाओं व आंकड़ों को अपनी भाषा में बेहद सरलता से प्राप्त किया जा सकता है। इस विधि को ट्रांसमिशन कंट्रोल प्रोटोकॉल अथवा इंटरनेट प्रोटोकॉल कहा जाता है।
मैकगिल यूनीवर्सिटी, मांट्रियल के पीटर ड्यूश ने सन् 1989 ई. में पहली बार इंटरनेट का इंडेक्स (अनुक्रमणिका) बनाने का प्रयास किया। पिकिंग मशीन कॉर्पोरेशन के बिउस्टर कहले ने एक अन्य इंडेक्सिंग सिस्टम, डब्ल्यू.ए.आई.एस. (वाइस एरिया इंफॉर्मेशन सर्वर) का विकास किया।
सी.ई.आर.एन. (यूरोपियन लेबोरेट्री फॉर पार्टिकल फिजिक्स) के टिम बर्नर्स एवं ली ने इंटरनेट पर सूचना के वितरण हेतु एक नवीन तकनीक का विकास किया, जिसे अंततः वर्ल्ड वाइड वेब कहा गया।
वेब हाइपरटेक्स्ट पर आधारित है, जो कि किसी इंटरनेट प्रयोगकर्ता को इंटरनेट की विभिन्न साइट्स पर एक डाक्यूमेंट को दूसरे से जोड़ता है। यह कार्य हाइपर लिंक (खासतौर से प्रोग्राम किए गए, शब्दों, बटन या ग्राफिक्स) के माध्यम से होता है।
सन् 1991 ई. में प्रथम यूजर फ्रेंडली इंटरफेस, गोफर का मिनिसोटा यूनीवर्सिटी (संयुक्त राष्ट्र अमेरिका) में विकास हुआ। तब से गोफर सर्वाधिक विख्यात इंटरफेस बना हुआ है।
मार्क एंड्रीसन ने सन् 1993 ई. में नेशनल सेंटर फॉर सुपर कम्प्यूटिंग एप्लीकेशन’ के मोजेइक नामक नेवीगेटिंग सिस्टम का विकास किया। इस सॉफ्टवेयर के द्वारा इंटरनेट को मैगजीन फॉर्मेट में पेश किया जा सकता था। इस सॉफ्टवेयर से टेक्स्ट और ग्राफिक्स इंटरनेट पर उपलब्ध हो गए। वर्तमान में भी यह वर्ल्ड वाइड वेब हेतु मुख्य नेवीगेटिंग सिस्टम है।
सन् 1994 ई. में नेटस्केप कम्युनिकेशन और सन् 1995 ई. में माइक्रोसॉफ्ट ने अपने-अपने ब्राउजर बाजार में उतारे। इन ब्राउजरों में प्रयोगकर्ताओं हेतु इंटरनेट का प्रयोग बेहद सरल हो गया। सन् 1994 ई. में ही प्रारम्भिक व्यावसायिक साइट्स को इंटरनेट पर लांच किया गया। ई-मेल के द्वारा मास मार्केटिंग कैम्पेन चलाये जाने लगे।
इंटरनेट सन् 1995 ई. को छोटे समूहों से निकलकर दो करोड़ ग्राहकों के साथ वैश्विक हुआ। इसी वर्ष मार्च माह में याहू (Yahoo) की शुरूआत हुई और जुलाई में अमेरिका में अमेजन डॉट कॉम वजूद में आया। इंटरनेट एक्सप्लोरर 1.0 का अगस्त माह में आगमन हुआ। 15 अगस्त, सन् 1995 ई. से भारत में इंटरनेट एक्सेस सेवा शुरू हुई।
भारत में यह सुविधा विदेश संचार निगम लिमिटेड के माध्यम से प्राप्त की गयी। यहां इस नयी सुविधा को ‘गेटवे इंटरनेट एक्सेज सर्विस’ नाम प्रदान किया गया। बम्बई स्थित विदेश संचार निगम को यूरोप और अमेरिका से उपग्रह और समुद्री केबल्स के माध्यम से संलग्न किया गया।
भारत में दो प्रकार के इंटरनेट कनेक्शनों की सुविधा है, एक सीधे विदेश संचार निगम से सम्पर्क करके तथा दूसरा इस क्षेत्र की लाइसेंस प्राप्त किसी निजी संस्था से सम्पर्क बनाकर।
इंटरनेट सेवा से सबसे ज्यादा लाभ व्यापारियों, उद्यमियों, चिकित्सकों, शिक्षकों तथा अनुसंधान संस्थानों को हो रहा है।
चिकित्सक इसके द्वारा विश्व के प्रमुख चिकित्सकों से विचार-विमर्श कर सकते हैं, जबकि उद्यमियों एवं व्यापारियों को भी बार-बार विदेश यात्राओं पर गमन से राहत मिलती है और विदेशी उद्यमियों के साथ संधि सम्बन्धित मसौदे तैयार किये जा सकते हैं।
29 अक्टूबर, सन् 1995 ई. के दिन से विश्व इंटरनेट दिवस मनाने की शुरूआत हुई। इंटरनेट की दुनिया दिन-रात प्रगति की छलांगे लगा रही है। इसका कोई ओर-छोर नहीं है।