
सातवां घड़ा
एक व्यापारी था। वह शहर से. सामान लाकर गांव में बेचा करता था। हमेशा की तरह एक दिन वह शहर जा रहा था। उसने सोचा, क्यों न आज रास्ता बदलकर जाऊं। जब वह दूसरे रास्ते से जाने लगा, तो उसे एक गुफा दिखाई दी। आराम करने की सोच कर वह उस गुफा में चला गया। भीतर जाकर उसने देखा तो उसे वहां सात घड़े पड़े हुए मिले।
उसने एक घड़े को खोला। वह सोने के सिक्कों से भरा था। इस तरह उसने छह घड़े खोलकर देखे। सभी में सोने के सिक्के थे। जैसे ही उसने सातवां घड़ा खोला तो पाया कि वह आधा भरा हुआ था और उसमें एक कागज रखा था। कागज में लिखा था- इन सिक्कों को ढूंढने वाले, सावधान हो.जाओ! ये सभी घड़े तुम्हारे हैं।
लेकिन इन पर एक श्राप है। इनको ले जाने वाला कभी इस धन का सुख नहीं भोग पाएगा। लालच ने व्यापारी की बुद्धि हर ली थी। उसने बिना समय गंवाए सभी घड़े घर ले जाने का इंतजाम कर लिया। रात को भी वह बार-बार उन घड़ों को निहार रहा था। वह सपने देख रहा था कि इन सिक्कों से वह कितना सुखमय जीवन जी सकता है। लेकिन जैसे ही उसका ध्यान सातवें घड़े पर जाता उसे आधा भरा देख व्यापारी को बहुत बुरा लगता।
उसने सोचा वह खूब मेहनत करेगा और इस घड़े को पूरा भर देगा। जब तक वह सातवें घड़े को पूरा नहीं भर देता, बाकी घड़ों में से एक भी सिक्का खर्च नहीं करेगा।
दूसरे दिन से वह पहले से ज्यादा मेहनत करने लगा। वह जो कुछ भी कमाता, उसे इकट्ठा करके सोने के सिक्के खरीद लेता और सातवें घड़े में डाल देता। इस तरह कई साल बीत गए। लेकिन सातवां घड़ा भरने का नाम ही नहीं ले रहा था। उसने ज्यादा से ज्यादा धन कमाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया।
लेकिन सातवें घड़े में जितना भी धन डालो, वह हमेशा आधा खाली रहता था। ज्यादा मेहनत करने और स्वास्थ्य पर ध्यान न दे पाने के कारण व्यापारी गंभीर रूप से बीमार हो गया। कुछ दिनों बाद उसकी मृत्यु हो गई। मृत्यु के समय वह यही सोच रहा था कि उसके पास जो धन था, वह उसके पूरे जीवन के लिए पर्याप्त था,लेकिन फिर भी लालच में अंधा होकर वह सातवें घड़े को भरने में लग गया। ढेर सारा धन होने के बाद भी वह उसका सुख । नहीं भोग सका। उसे समझ आ चुका था कि मनुष्य के पास कितना भी धन हो, वह कभी उसके लिए पर्याप्त नहीं होता।