क्षमापूर्वक दी गयी शिक्षा
Hindi motivational story- एक संत जुलाहे का काम करते थे। कपड़ा बुन कर बाजार में बच देते। उसी से गृहस्थी का निर्वाह होता। एक दिन संत अपनी खुनी हुई एक साड़ी बेचने के लिए बाजार में आये। वहां एक उदंड व्यक्ति भी था, जा संत को नीचा दिखाना चाहता था। उस व्यक्ति ने संत से साड़ी का मूल्य पूछा। संत ने बताया, ‘दस रुपए…।’ उस व्यक्ति ने साड़ी अपने हाथ म लेकर दो टुकड़े करते हुए पूछा, ‘अब इसका मूल्य कितना है?’ ‘
पांच रुपए…’ संत ने कहा| व्यक्ति ने उस आधे कपड़े को फिर दो टुकड़े करके उसका मूल्य पूछा, ‘ढाई रुपए….’ संत ने बताया।
वह दुष्ट व्यक्ति इसी प्रकार और आधे टुकड़े करता गया और मूल्य पूछता गया संत भी धैर्यपूर्वक मूल्य आधा करके बताते गये। अंत में जब उस साड़ी के रुमाल जितने टुकड़े हो गये, तब उस व्यक्ति ने ठहाका लगाते हुए वे सभी टुकड़े संत के सामने फेंक दिये और संत को उसका मूल्य दस रुपये देने लगा।
‘मैं रुपए क्यों लूं, तुमने साड़ी तो खरीदी ही नहीं?’ संत ने कहा| वह व्यक्ति संत के धैर्य के सम्मुख नतमस्तक था। उसने शर्मिंदा होकर कहा, ‘लेकिन मेरे कारण आपकी मेहनत व्यर्थ हो गयी।’
संत ने कहा, ‘तुम्हें नहीं पता कि यह केवल मेरी मेहनत ही नहीं थी, इसमें मेरे पूरे परिवार का समय और श्रम भी था, और सारे परिवार का चार दिनों का पेट भरने का साधना’
व्यक्ति ने पश्चातापपूर्वक कहा, ‘मुझसे भारी भूल हुई है। मुझे क्षमा । करें, आपको बीच में ही मुझे रोक देना चाहिए था।’ इसके जवाब में संत ने कहा, ‘हो सकता है, तब तुम उइंडता एवं दुष्टता न करने की शिक्षा को ठीक प्रकार से ग्रहण नहीं कर पाते।’ सार यह कि क्षमापूर्वक दी गयी । शिक्षा अधिक प्रभावी होती है।