
इक्कीसवीं सदी का भारत पर निबंध | Hindi Essay on India of 21st century
श्री राजीव गाँधी ने भारत को इक्कीसवीं शती की ओर ले जाने की तैयारी करने की बात कही थी। इसके लिए उन्होंने आधुनिक तकनीक, कंप्युटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, बायो-इंजीनियरिंग और अंतरिक्ष-विज्ञान में प्रगति करने की चर्चा उठाई थी। उनका विश्वास था कि सभी क्षेत्रों में उच्चतम तकनीक तथा श्रमशक्ति में आधुनिकीकरण अपनाकर देश को इक्कीसवीं शती की चुनौतियों के लिए तैयार किया जा सकता है। कुछ लोगों ने इक्कीसवीं शती में देश को ले जाने की बात को लालीपॉप की संज्ञा दी है और उनका कहना है कि जो देश बीसवीं शती में प्रगति के स्तर पर ही नहीं पहुँच सका, उसे इक्कीसवीं शती में ले जाने की बात करना महज एक खयाली पुलाव है। लेकिन, ऐसे लोग यह भूल जाते हैं कि नौ वर्षों में ही संसार इक्कीसवीं शती में प्रवेश करने जा रहा है और इसके लिए भारत तैयार रहे अथवा नहीं?
क्यों न हम एक ऐसी शती की कल्पना करें, जिसमें हाथ का, पैर का काम करना कोई शर्म की बात नहीं होगी; बल्कि जिसमें सबको रचनात्मक काम उपलब्ध होगा। क्यों न हम एक ऐसा संसार रचें, जिसमें सबको न केवल रोटी, कपड़ा और मकान जैसी आवश्यक सुविधाएँ प्राप्त होंगी, बल्कि हर प्रकार से आत्मविश्वास और आत्मोन्नति का अवसर भी मिलेगा। कुछ ऐसे प्रयास करें जिससे-
सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चित् दुःखभाग्भवेत्॥
की स्थिति आ सके। यह कल्पना निश्चय ही विज्ञान-विरोधी नहीं है। यह कल्पना पूरी हो जाए, तो फिर यही शती इक्कीसवीं शती होगी।
राजीव गाँधी की कल्पना की इक्कीसवीं शती के विषय में कुछ लोग ऐसा चित्र खींचते हैं, कि उस समय हर घर में कंप्यूटर होगा। यदि बाजार का हिसाब करना हो तो कंप्यूटर से कीजिए, विवाह के लिए वर-वधू खोजना हो तो कंप्यूटर से खोजिए। सुबह कंप्यूटर आपको जगा देगा और दिनभर के कार्यों की याद दिला देगा। फिर दफ्तर जाने की आवश्यकता ही क्या रह जाएगी? आप जो फाइल चाहें, कंप्यूटर पर देख लें और तत्काल उसपर कार्यवाही कर डालें। रही खाने-पीने की बात, तो बटन दबाते ही कंप्यूटर बता देगा कि आज आपको कितने कैलोरी प्रोटीन आदि लेने हैं। फिर, दुसरा बटन दबाइए, तो उन सब तत्त्वों से बने गर्म-गर्म पेय का ग्लास आपके सामने हाजिर हो जाएगा।
कुछ लोग कल्पना करते हैं कि इक्कीसवीं शती में केवल अंतरिक्ष में उड़ानें होंगी। वह युग बड़े-बड़े नगरों का होगा। सब ओर बहुमंजिली इमारतें होंगी। खेतों का सब काम टैक्टरों, कंबाइनों और रोबोटों से होगा। हर चीज विशालकाय कारखानों में बनेगी जिनमें इलेक्ट्रॉनिक मानव (रोबोट) कार्यरत होंगे। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए जगह-जगह अस्पताल होंगे। इनमें कार्यरत डॉक्टर जटिल मशीनों की सहायता से अपने कार्य दक्षतापूर्वक कर सकेंगे। जैसे ही कोई रोगी अस्पताल में आएगा, उसके हृदय, मस्तिष्क, फेफड़ों, स्नायुओं आदि से मिलनेवाले विद्युत्-संकेत तुरंत रेकार्ड कर लिए जाएँगे आवश्यकतानुसार रक्त, थूक, मल, मूत्र आदि की जाँच और एक्स-रे के परिणामों को भी मिलाकर आनन-फानन निदान हो जाएगा। फिर, बटन दबाते ही उपयुक्त दवा की गोलियाँ गिरने लगेंगी अथवा लेसर-किरणों से उसका बैठे-बिठाए ऑपरेशन हो जाएगा।
हमारे देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि बीसवीं शती में प्रवेश के समय यह परतंत्र था और परतंत्रता की ये बड़ियाँ हमें सदियों से जकड़े हुई थीं। अठारहवीं और उन्नीसवीं शती में यूरोप और अमेरिका में वैज्ञानिक, औद्योगिक क्रांतियाँ हुईं, उनमें भारत साझीदार न हो सका। बीसवीं शती में प्रवेश के समय जब पाश्चात्य देशों में मोटर, विमान, जलयान, आग्नेयास्त्र, इस्पात, पेट्रोल, विद्युत् और मशीनों के विशाल कारखाने निर्मित हो चुके थे, भारत सूई बनाने में भी सक्षम नहीं था। विज्ञान और औद्योगिक क्रांति के संदर्भ में भारत अठारहवीं शती में था। बीसवीं शती के उत्तरार्द्ध में उसे राजनीतिक स्वतंत्रता मिली और केवल पैंतालीस वर्षों में उसने सूई बनाने की अक्षमता से छलांग लगाकर रॉकेट-निर्माण की स्थिति प्राप्त कर ली। बैलगाड़ी चलती रही, किंतु उसके निर्मित उपग्रह अंतरिक्ष में भी घूमने लगे। निश्चय ही, भारत की यह आधुनिक यात्रा उत्साहवर्द्धक रही। विश्व के वैज्ञानिक जगत् में तीसरा, औद्योगिक जगत् में दसवाँ, परमाणु-ऊर्जा में छठा तथा अंतरिक्ष विज्ञान में पाँचवाँ स्थान प्राप्त करने में भारत ने सफलता प्राप्त की। दरिद्रता के कीचड़ में सनकर भी देश ने परमाण-जगत्, अंतरिक्ष-अनुसंधान, अंटार्कटिका-अभियान, कंप्यूटर, इलेक्ट्रॉनिक्स, टी० वी०, रॉकेट, उपग्रह आदि क्षेत्रों में उल्लेखनीय स्थान बनाया। विकसित राष्ट्रों की बीसवीं शती के स्तर पर न पहुँचते हुए भी भारत ने इक्कीसवीं शती के दरवाजे पर दस्तक देना अवश्य शुरू कर दिया है।
इक्कीसवीं शती में भारत की आबादी एक सौ करोड़ होगी और पचास करोड़ युवाओं की शिक्षा की व्यवस्था करनी पड़ेगी। संभवतः, इसी स्थिति को ध्यान में रखकर नई शिक्षानीति बनाई जा रही है और नौकरी के लिए डिग्री की अनिवार्यता समाप्त करने की बात है। उस समय तक शिक्षित बेरोजगारों की संख्या दो करोड हो जाने की संभावना है। इसीलिए रोजगारपरक शिक्षा पर जोर दिया जा रहा है। भारत के इस आर्थिक परिस्थिति से जूझने के लिए केवल तेरह वर्ष शेष रह गए हैं। ऐसी स्थिति कैसी होगी इक्कीसवीं शती और कैसे बढ़ेंगे हम उसकी ओर-यह बहत-कुछ इसपर निर्भर है कि हम चाहते क्या हैं? हमारा सपना क्या है और उस सपने को साकार करने की दिशा में हमारी सक्रियता कितनी अधिक रहेगी?