
वसंत ऋतु पर निबंध |Essay on Spring Season in Hindi
भारतवर्ष की छह ऋतुओं में ऋतुराज वसंत आनंद एवं जवानी का प्रतीक है। वसंत ऋतु का आगमन होते ही शिशिर से ठिठुरते तन-मन में नवीन स्फूर्ति, आनंद एवं उल्लास का संचार हो जाता है। इसके मादक स्पर्श से कोई अछूता नहीं रहता। इसकी महिमा का गुणगान तो भगवान श्रीकृष्ण ने भी किया है। वे ‘गीता’ में कहते हैं, “ऋतूनां कुसुमाकरः अर्थात ऋतुओं में मैं ही वसंत हूं।” वस्तुतः वसंत ऋतु का आगमन होते ही प्रकृति के कण-कण में छिपा श्रीकृष्ण का वैभव एवं ऐश्वर्य प्रकट होने लगता है। चारों दिशाओं से आती कोयल की ‘कुहू कुहू’ आवाज में भक्तों को श्रीकृष्ण की बांसुरी सुनाई पड़ने लगती है।
यों तो चैत और बैसाख वसंत ऋतु के मुख्य माह माने जाते हैं, लेकिन माघ की शुक्ल पंचमी या वसंत पंचमी के दिन से ही वसंत ऋतु अपने शुभागमन की सूचना देती है। इस दिन को ‘वसंतोत्सव’ के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन से ठिठुराने वाली क्रूर शिशिर ऋतु अपना बिस्तर समेटने लगती है और कविवर रामधारी सिंह ‘दिनकर’ के शब्दों में यह कहती जाती है
मैं शिशिर शीर्णा चली,
अब जाग ओ मधुमासवली।
वसंत ऋतु में प्रकृति समशीतोष्ण रहती है अर्थात न तो ज्यादा ठंड होती और न ही ज्यादा गर्मी, इसीलिए अमीर-गरीब सभी को वसंत समान रूप से आनंदित करता है। सचमुच शिशिर की कंपकपाती ठंड से ठिठुरे प्राणियों को जब वसंती हवा स्पर्श करती है, तो उनका रोम-रोम पुलकित हो उठता है। फलतः चराचर के सभी प्राणी वसंत की अगवानी के लिए अपने-अपने घरों से बाहर निकल पड़ते हैं। कविवर नागार्जुन के शब्दों में
मलय समीर गुलाबी जाड़ा, सूर्य सुनहला,
जग वसंत की अगवानी में बाहर निकला।
पतझड़ की मार से वीरान दिखने वाले पेड़-पौधे वसंत का स्पर्श पाते ही नये-नये पल्लवों तथा पुष्पों से लद जाते हैं। विभिन्न प्रकार की पुष्प लताओं पर रंग-बिरंगे फूल खिल उठते हैं; यथा-हरसिंगार, बेला, मौलश्री, चमेली, टेसू, गेंदा, गुलाब तथा रजनीगंधा आदि। ऐसा प्रतीत होता है, मानो प्रकृति रानी ने नया परिधान धारण कर लिया है और रंग-बिरंगे पुष्प उस परिधान पर जड़ी सतरंगी बूटियां बन गई हैं। पुष्प पराग एवं आम्र मंजरियों की भीनी-भीनी गंध से सारा वातावरण सुगंधित रहता है, मानो प्रकृति रानी द्वारा प्रयुक्त इत्र की खुशबू सर्वत्र फैल गई हो। कोयल के पंचम आलाप और भौंरों के गुंजन आदि से वातावरण संगीतमय बनता है, मानो प्रकृति के स्वागत में संगीत का आयोजन किया गया हो। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि वसंत में प्रकृति नई नवेली दुल्हन की तरह सज-संवर उठती है, जिस पर मलय पवन पंखा झलता रहता है।
ऋतुराज वसंत का वर्णन देशी-विदेशी सभी साहित्य में मिलता है। कहा जाता है कि वह कवि ही नहीं, जिसने वसंत का वर्णन नहीं किया। जयदेव की इन पंक्तियों में वसंत ऋतु का सुंदर चित्रण हुआ है
ललित लवंग-लता परिशीलन कोमल मलय समीरे,
मधुकर-निकर करम्बित कोकिल कुंजित कुंज-कुटीरे।
कवियित्री सुभद्रा कुमारी चौहान को भी वसंत ऋतु में गांव के खेतों में लगे सरसों के पीले फूल बहुत आकर्षित करते हैं-
पीली सरसों ने दिया रंग,
मधु लेकर आ पहुंचा अनंग।
वसंत ऋतु आनंद, हर्ष एवं प्रसन्नता की द्योतक है। हमारा मन हर्षित हो, इसके लिए कोई समय निश्चित नहीं होता। जब भी मन खुशियों से नाच उठे, वही समय वसंत ऋतु है। इसीलिए डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी ने कहा है-
वसंत आता नहीं, ले आया जाता है।
वसंत ऋतु का आगमन मानव को एक संदेश देता है और प्रकृति के एक शाश्वत सत्य को उद्घाटित करता है। वसंत कहता है, “हे मानव! तुम्हारे जीवन में खुशियां अवश्य आएंगी, जब तुममें दुख को भी सहर्ष झेलने की क्षमता आ जाएगी। क्योंकि जो मनुष्य शिशिर की कड़कड़ाती ठंड को झेल लेता है, वही वसंत के मलय पवन का स्पर्श पाता है। अर्थात दुख के बाद सुख का आना ही मानव-जीवन का शाश्वत सत्य है।”