
सरदार वल्लभ भाई पटेल पर निबंध-Essay on Sardar Vallabhbhai Patel in hindi
सरदार वल्लभभाई पटेल का नाम लेते ही हमारे सम्मुख एक ऐसे व्यक्ति का चित्र उभर जाता है, जो न केवल भारत के स्वतंत्रता संग्राम का वीर सेना नायक था, वरन जिसने स्वतंत्र भारत को एक सूत्र में संगठित करके समूचे विश्व को चकित कर दिया। सन 1947 में अंग्रेजों को भारत से जाने के लिए बाध्य होना पड़ा, परंतु वे यहां 534 देशी रियासतों को आजाद बने रहने की ऐसी छूट दे गए, जिसके कारण देश टुकड़ों में विभाजित हो सकता था।
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर, 1857 को गुजरात के खेड़ा जिले के करमसद गांव के ऐसे परिवार में हुआ था, जो अपनी देश भक्ति के लिए प्रसिद्ध था। उनके पिता श्री झबेरभाई 1857 के स्वतंत्रता संग्राम में झांसी की रानी की सेना में भर्ती होकर अंग्रेजों से लोहा ले चुके थे। वल्लभभाई पटेल उच्च शिक्षा प्राप्त करना चाहते थे। परंतु आर्थिक स्थिति अच्छी न होने के कारण उन्हें मैट्रिक के पश्चात ही मुख्तारी की परीक्षा पास कर आजीविका कमाने में लगना पड़ा। लेकिन उन्होंने अपना इरादा नहीं छोड़ा। कुछ धन अर्जित करके वे सन 1910 में विदेश गए और वहां से सन 1913 में बैरिस्टर बनकर भारत लौटे।
महात्मा गांधी की प्रेरणा से बारदोली के किसानों को संगठित करके वल्लभभाई पटेल ने देश में जागरण की नई ज्योति जगाई। अपनी चमकती हुई वकालत को छोड़कर वे राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े और त्यागी जीवन का एक नया आदर्श लोगों के समक्ष रखा। बारदोली की सफलता और पटेल की संगठन शैली से महात्मा गांधी काफी प्रभावित थे। इसीलिए गांधी जी ने उन्हें ‘सरदार’ की उपाधि प्रदान की। किसानों की दशा सुधारने और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलनों से जोड़ने के लिए, जो काम सरदार पटेल ने किया, वह अद्वितीय है। भारतीय देशी राज्यों को भारतीय संघ में मिलाकर वे ‘लौह पुरुष’ कहलाए।
सरदार पटेल फौजदारी के एक प्रसिद्ध वकील थे, परंतु देश सेवा की राह अपनाकर उन्होंने 1916 से 1945 तक सभी सक्रिय आंदोलनों में भाग लिया। खेड़ा सत्याग्रह, बारदोली आंदोलन, डांडी यात्रा, सविनय अवज्ञा आंदोलन, व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में वे अग्रिम पंक्ति में थे।
सरदार पटेल अत्यंत स्पष्टवादी व्यक्ति थे। उनके स्वभाव में असाधारण दृढ़ता थी। उन्हें कोई विचलित नहीं कर सकता था। वे जो निश्चय कर लेते, उसे पूरा करके छोड़ते थे। कश्मीर में मुहाजिदों से टक्कर हो या हैदराबाद के रजाकारों से मुकाबला-सभी में वे स्वराष्ट्र मंत्री के रूप में अडिग निर्णय लेते थे। यदि नेहरू जी ने हठधर्मिता न दिखाई होती, तो आज संपूर्ण कश्मीर भारत के साथ होता। सरदार पटेल ने विस्थापितों को बसाने की समस्या का भी बड़ी सूझबूझ से समाधान किया। परंतु देश का दुर्भाग्य था कि क्रूर काल ने लौह पुरुष को हमसे छीन लिया। 5 सितंबर, 1950 को उन्होंने सदा के लिए आंखें बंद कर लीं। उनके निधन पर पं. जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “इतिहास सरदार पटेल को आधुनिक भारत का निर्माता और भारत का एकीकरण करने वाले नेता के रूप में सदैव याद रखेगा। वे स्वतंत्रता संग्राम के महान सेनापति थे।”
भारतीय राजनीति में सरदार वल्लभभाई पटेल एक अद्वितीय महापुरुष थे। यदि इनकी रीति-नीति, प्रबंध पटुता, प्रशासनिक क्षमता एवं दूरदर्शिता को उनके कार्यकाल में ही स्वीकार कर लिया गया होता, तो शायद भारत को आज इतनी परेशानी न उठानी पड़ती। सरदार पटेल कष्ट उठाने वाले तथा दुख-सुख को समान समझने वाले व्यक्ति थे। कार्य करना ही उनकी पूजा थी। उनकी राष्ट्र सेवा अतुलनीय है। वे भारतीय इतिहास में सदा अमर हैं। भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने कहा था, “स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु सत्याग्रह के क्षेत्र में और आजादी मिलने के प्रारंभिक वर्षों में सरदार पटेल की राष्ट्र सेवाएं ऐसी सफलताएं हैं, जो भारत के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में लिखी जाएंगी।”