
राष्ट्रीय पोषण मिशन पर निबंध | Essay on National Nutrition Mission
किसी भी राष्ट्र को विकसित एवं मजबूत बनाने का सपना तभी साकार हो सकता है, जब इसके नागरिक स्वस्थ एवं सुपोषित हो। इसके लिए यह आवश्यक है कि कुपोषण जैसी समस्याओं का निवारण किया जाए। विशेष रूप से देश के बच्चों को कुपोषण से मुक्त करना बहुत ही आवश्यक होता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि स्वस्थ और सुपोषित बच्चे ही कल के स्वस्थ नागरिक बनेंगे और इन्हीं स्वस्थ नागरिकों से उस बेहतर और क्रियाशील मानव संसाधन का निर्माण होता है, जो राष्ट्र निर्माण में मददगार साबित होता है। इन्हीं बातों को ध्यान में रखकर हमारे देश में पोषण के स्तर में सधार लाने के उद्देश्य से ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ की शुरुआत की गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर 8 मार्च, 2018 को राजस्थान के झुंझुनू में राष्ट्रीय पोषण मिशन की शुरुआत की। भारत सरकार द्वारा तीन वर्ष के लिए 9046.17 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान करते हुए वित्तीय वर्ष 2017-18 से शुरू होने वाले राष्ट्रीय पोषण मिशन (National Nutrition Mission : NNM) की स्थापना की स्वीकृति प्रदान की जा चुकी है।
‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ के विविध पक्षों पर चर्चा करने से पूर्व यह जान लेना समीचीन होगा कि कुपोषण कहते किसे हैं और भारत में इसकी स्थिति क्या है। कुपोषण (Malnutrition) वह अवस्था है, जिसमें पौष्टिक पदार्थ और भोजन अव्यवस्थित रूप से लेने के कारण शरीर को पूरा पोषण नहीं मिल पाता है। कुपोषण तब भी होता है, जब किसी व्यक्ति के आहार में पोषक तत्वों की सही मात्रा नहीं होती है। वस्तुतः, भोजन के जरिए हम स्वस्थ रहने के लिए ऊर्जा और पोषक तत्व प्राप्त करते हैं, किंतु यदि भोजन में प्रोटीन, कार्बोहाइडेट वसा, विटामिन और खनिजों सहित पर्याप्त पोषक तत्व नहीं मिलते हैं तो हम कुपोषण के शिकार हो सकते हैं। कुपोषण के शिकार बच्चों और महिलाओं की रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है, जिससे वे कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो जाते हैं। महिलाओं और बच्चों में अधिकांश रोगों की जड़ कुपोषण ही होता है। महिलाओं में रक्ताल्पता या घेघा रोग अथवा बच्चों में सूखा रोग या रतौंधी और यहां तक कि अंधत्व भी कुपोषण के ही दुष्परिणाम हैं। कुपोषण का सर्वाधिक शिकार बच्चे होते हैं। यह जन्म या उससे पहले भी शुरू हो सकता है तथा 6 महीने से 3 वर्ष की अवधि में तीव्रता से बढ़ता है। कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता 10 से 15 प्रतिशत तक कम – हो जाती है, जो सकल घरेलू उत्पाद को 5 से 10 प्रतिशत तक कर सकती है।
यह एक त्रासद स्थिति है कि अनेक प्रयासों के बावजूद भारत में कुपोषण और संबंधित समस्याओं का स्तर अंतर्राष्ट्रीय मानकों की तुलना में काफी अधिक है। ‘अंतर्राष्ट्रीय खाद्य नीति अनुसंधान संस्थान’ (International Food Policy Research Institute : IFPRI) द्वारा हाल ही में जारी ‘ग्लोबल हंगर इंडेक्स रिपोर्ट के अनुसार, 119 देशों के ग्लोबल हंगर इंडेक्स में भारत 103वें पायदान पर है और वह उत्तर कोरिया और बांग्लादेश जैसे देशों से भी पीछे है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार वर्तमान समय में भारत के लगभग 50% गांवों में कुपोषण एक व्यापक समस्या है। भारत में प्रत्येक वर्ष जितनी मौतें होती हैं, उनमें 5% का कारण कुपोषण है। ध्यातव्य है कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 21 और 47 भारत सरकार को सभी नागरिकों के लिए पर्याप्त भोजन के साथ एक सम्मानित जीवन सुनिश्चित करने हेतु उचित उपाय करने के लिए बाध्य करते हैं। इसके अनुसरण में उपाय भी सुनिश्चित किए जाते रहे, किंतु अब तक परिणाम ‘ढाक के तीन पात’ जैसा ही रहा।
भारत में कुपोषण की समस्या को देखते हुए राष्ट्रीय पोषण मिशन’ को एक अच्छी पहल माना जा सकता है। इस मिशन का लक्ष्य ठिगनापन, अल्पपोषण, रक्ताल्पता (छोटे बच्चों, महिलाओं एवं किशोरियों में) को कम करना तथा प्रतिवर्ष कम वजनी बच्चों में क्रमशः 2 से 3% की कमी लाना है। यह मिशन एक शीर्षस्थ निकाय के रूप में मंत्रालयों के पोषण संबंधी हस्तक्षेपों की निगरानी, पर्यवेक्षण, लक्ष्य निर्धारित करने तथा मार्ग दर्शन का काम करेगा। इसके तहत कुपोषण का समाधान करने हेतु जहां विभिन्न योजनाओं के योगदान का प्रतिचित्रण किया जाएगा, वहीं अत्यधिक सशक्त अभिसरण तंत्र (Convergence Mechanism) प्रारंभ किया जाएगा। इसमें जहां सूचना प्रौद्योगिकी आधारित वास्तविक समय (Real Time) निगरानी प्रणाली होगी, वहीं लक्ष्यों को प्राप्त करने वाले राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों को प्रोत्साहन प्रदान किया जाएगा। राष्ट्रीय पोषण मिशन की खास बात यह है कि इसमें सामाजिक लेखा (Social Audit) का प्रावधान है। इस मिशन के तहत जहां आंगनबाड़ी केंद्रों पर बच्चों के कद मापन की व्यवस्था सुनिश्चित की गई है, वहीं आईटी आधारित उपकरणों के प्रयोग के लिए आंगनबाड़ी कार्यकत्रियों को प्रोत्साहन प्रदान करना भी इसमें शामिल है।
राष्ट्रीय पोषण मिशन के तहत जनभागीदारी पर भी ध्यान केंद्रित किया गया है। जहां जनान्दोलनों के माध्यम से सपोषण से जुड़ी गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जाएगा, वहीं पोषण संसाधन केंद्रों की स्थापना की जाएगी। चरणबद्ध रूप से शुरू किए जा रहे इस मिशन से 10 करोड़ से ज्यादा लोग लाभान्वित होंगे। इसके तहत वर्ष 2017-18 में देश के 315 जिलों, वर्ष 2018-19 में 235 जिलों तथा वर्ष 2019-20 में देश के शेष जिलों को आच्छादित किया जाएगा। यह मिशन भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा नीति आयोग की संयुक्त और सचिंतित पहल है। इस मिशन का एक मुख्य लक्ष्य बच्चों में उनकी लंबाई कम बढ़ने की समस्या (स्टंटिंग) का निवारण करना भी है। ध्यातव्य है कि ‘नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे’ के अनुसार भारत में 38.4% बच्चे लंबाई कम बढ़ने की समस्या से ग्रस्त हैं। इस मिशन का लक्ष्य है कि वर्ष 2022 तक इसमें कमी लाते हुए इसे 25% तक लाया जाए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि राष्ट्रीय पोषण मिशन कुपोषण की समस्या के निवारण हेतु एक अच्छी पहल है। इस पहल की शत प्रतिशत सफलता के लिए यह आवश्यक है कि कुछ एहतियात बरते जाएं। पहली आवश्यकता तो व्यवस्था को पारदर्शी बनाने और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की है। ध्यातव्य है कि ऐसे मिशनों में वितरित किए जाने वाले पोषणीय आहार का लगभग 51% प्रायः लीकेज का शिकार हो जाता है, जिसे बाद में अच्छी कीमतों पर बेच दिया जाता है। ऐसी प्रवृत्तियों पर अंकुश लगाना नितांत आवश्यक है। कुपोषण जैसी विकराल समस्या का एक प्रमुख कारण गरीबी है। गरीबी से ग्रस्त जनता पौष्टिक आहार का सेवन नहीं कर पाती है। । ऐसे में यह आवश्यक है कि गरीबी उन्मूलक योजनाओं के साथ इस मिशन का सामंजस्य बेहतर हो। इस मिशन की सफलता के लिए जनजागरूकता भी आवश्यक है। लोगों को यह समझना होगा कि संतुलित भोजन का महत्त्व क्या है तथा पोषणीय आहार लेकर किस प्रकार कुपोषण से बचाव किया जा सकता है। इसी क्रम में हमें देश में ‘फूड फोर्टीफिकेशन’ को भी प्रोत्साहित करना होगा। यह वह प्रक्रिया है, कि जिसके तहत विभिन्न पोषक तत्वों को मुख्य खाद्य पदार्थों में मिलाकर उनकी पोषणीयता को बढ़ाया जाता है। यदि यह फूड फोर्टीफिकेशन दूध, वनस्पति तेल, आटा और चीनी जैसे मुख्य खाद्य पदार्थों के साथ किया जाता है, तो कुपोषण दूर करने की मुहिम में उल्लेखनीय प्रगति की जा सकती है। फूड फोर्टीफिकेशन की उपादेयता को देखते हुए तो बेहतर यही होगा कि कानूनी संशोधनों के माध्यम से इसे अनिवार्य बना दिया जाए। प्रसंगवश यह रेखांकित करना समीचीन होगा कि हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान ने आटे में लौह तत्व (Iron) मिलाकर ‘एनीमिया’ जैसे रोग पर काफी हद तक काबू पा लिया है।
भारत जैसे देश के लिए कुपोषण जैसी समस्या कलंक है। यह राष्ट्र के विकास में भी बाधक है, क्योंकि कुपोषण के कारण मानव उत्पादकता का 10 से 15 प्रतिशत तक का ह्रास होता है, जिससे सकल घरेलू उत्पाद का 5 से 10 प्रतिशत तक कम होता है। इस सूरत को बदलना जरूरी है। यह सुखद है कि भारत में कुपोषण की समस्या के निवारण के लिए ‘राष्ट्रीय पोषण मिशन’ के रूप में एक व्यापक पहल की गई। यह एक बहुआयामी पहल है। यह सिर्फ भोजन की उपलब्धता पर ही नहीं केंद्रित है, बल्कि पोषकता से युक्त भोजन के जरिए पोषक आहार की उपलब्धता पर केंद्रित है। यह मिशन निःसंदेह भारत के भविष्य को स्वर्णिम बनाएगा, क्योंकि कुपोषण को मिटाकर ही हम विकास की एक ऊंची और स्थायी छलांग लगा सकते हैं, साथ ही अपनी वैश्विक छवि को भी उज्ज्वल बना सकते हैं।