
चांदनी रात पर निबंध-Essay on Moonlight night
बचपन में दादी मां कहा करती थीं कि आकाश के चंदा मामा बच्चों के लिए दूध-भात लेकर आते हैं। किशोरावस्था में विज्ञान शिक्षक ने जानकारी दी कि चांद पृथ्वी का एक उपग्रह है और इसकी सतह उबड़-खाबड़, निर्जीव एवं शुष्क है। खैर! चांद चाहे शुष्क एवं कुरूप ही क्यों न हो, उसकी चांदनी की शीतलता और मादकता से इंकार नहीं किया जा सकता। जिस पर भी चांदनी पड़ जाती है, वह एक अद्भुत सौंदर्य से मंडित हो जाता है। सृष्टि के हर कण पर शांत, स्निग्ध और उज्ज्वल चांदनी का प्रभाव पड़े बिना नहीं रहता।
रजनी के श्रृंगार के रजत स्वरूप का दूसरा नाम है-चांदनी रात। रात्रि में मेघ रहित नीले आकाश में जब चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन के साथ आकाश कुसुम की भांति खिलता है, तब ऐसा प्रतीत होता है कि रजनी अपनी काली साड़ी को उतारकर श्वेत-वसना बन गई है। पेड़ों पर बिखरी चांदनी अथवा पहाड़ों की गोद में लेटी हंसती-खेलती चांदनी बड़ी प्यारी लगती है।
यों तो हर मास की चांदनी रात सुंदर होती है, किंतु शरद की चांदनी रात के बारे में कहना ही क्या? ऊपर से अमृतमयी चांदनी की वर्षा और नीचे बेला, चमेली, रजनीगंधा आदि पुष्पों की सुगंध से संपूर्ण वातावरण मादक हो जाता है। ऐसे में मनमयूर नाच उठे, तो आश्चर्य क्या? साधारण मानव की कौन कहे महामानव भगवान श्रीकृष्ण का महारास भी इसी चांदनी में हुआ था। लेकिन भौतिकतावाद के बंधन में आकंठ निमग्न बहुत से ऐसे लोग भी हैं, जिनके लिए शरद की चांदनी और भादों की अंधेरी रात में कोई फर्क नहीं है।
चांदनी रात मानव-जीवन में कुछ संदेश दे जाती है। यह उज्ज्वल प्रभामयी रात कहती है कि मानव को अमावस्या की डरावनी रात यानी दुख से घबराकर सत्यमार्ग से विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि काली रात का अंत एक न एक दिन अवश्यंभावी है। यह प्रकृति का शाश्वत नियम है कि हर अमावस्या के बाद पूर्णिमा की चांदनी अवश्य छिटकती है।