
इक्कीसवीं सदी का भारत पर निबंध | Hindi Essay on India of 21st century in hindi
‘इक्कीसवीं सदी का भारत’ का नारा देश के युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने दिया था। यह नारा देते समय उन्होंने इक्कीसवीं सदी में देश की स्थिति काफी उन्नत हो जाने का स्वप्न देखा होगा। उनके इस नारे को देने के बाद क्या वाकई देश ने हर क्षेत्र में उन्नति की है, यह गौर करने लायक बात है।
हम अपने देश की स्वतंत्रता तथा गणतंत्र की 60वीं वर्षगांठ मना चुके हैं। आजादी के इन वर्षों में हमने बहुत कुछ पाया और बहुत कुछ खोया है। हमारे स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने इस देश के लिए महान स्वप्न देखे थे। उनके मन में इस देश के प्रति असीम श्रद्धा और प्यार था। वे इस देश को रामराज्य बनाना चाहते थे, जहां सब सुखी हों और किसी प्रकार का दुख एवं संताप न हो।
हमारे नेताओं ने जो स्वप्न देखे थे, वे पूरे न होकर वास्तविकता से परे रह गए। इक्कीसवीं सदी का वातावरण देकर हम बहुत अधिक आशावादी नहीं हो सकते। हमारे विकास की गति कछुए की तरह लगती है। हम परंपरावादी और भाग्यवादी हैं। कर्म करने से पहले हम फल की बातें सोचने लगते हैं।
हम आज क्या हैं, कल क्या होंगे? आज और कल में कोई बड़ा अंतर नहीं है। हमारी जनसंख्या एक अरब से काफी अधिक हो गई है और लगातार बढ़ती जा रही है। इस समस्या ने अनेक समस्याओं को जन्म दिया है। हमारे नेताओं को जनता की सुख-समृद्धि से कोई मतलब नहीं है। एक बार राजीव गांधी ने टिप्पणी की थी, “योजना के लिए दिल्ली से चला एक रुपया जमीन तक पहुंचते-पहुंचते दस पैसे ही बचता है। सब दलालों और अफसरशाहों के बीच रह जाता है। सारी योजनाएं असफल हो जाती हैं।”
हमारी आशा देश के वैज्ञानिकों पर लगी है। मजदूर तथा मध्यम वर्ग पर लगी है। समाज का यह वर्ग इस देश को उन्नत बनाने की चेष्टा करता रहेगा। हमारे अथक परिश्रम से इक्कीसवीं सदी में भारत संसार का अगुवा बनेगा।