
ग्रामीण हाट पर निबंध-Essay on Grameen Haat
शहर एवं बाजार स्थायी होता है, जहां शहरी लोग अपनी रोजमर्रा की वस्तुएं खरीदते हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में कोई स्थायी बाजार नहीं होता। रोजमर्रा की वस्तुओं की प्राप्ति हेतु ग्रामीणों के लिए शहर आना मुश्किल कार्य होता है। गांव के लोगों की इन्हीं कठिनाइयों को देखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में सप्ताह में एक या दो दिन बाजार लगाया जाता है, जिसे ‘ग्रामीण हाट’ कहते हैं। ग्रामीण हाटों में गांव के लोग अपनी जरूरत की सारी चीजें खरीद लेते हैं। ये बाजार अकसर अपराह्न काल लगाए जाते हैं और शाम होते-होते उठा लिए जाते हैं।
ग्रामीण हाटों में ग्रामीणों की जरूरत की अधिकांश चीजें बिकती हैं। सभी दुकानें एक क्रम में सजी होती हैं। एक ओर अन्न की दुकानें रहती हैं, तो दूसरी ओर वस्त्रों की। एक ओर शाक-सब्जियां बिकती रहती हैं और दूसरी ओर जलेबी, मिष्ठान, पकवान आदि नाश्ते की वस्तुएं। महिलाओं के लिए यहां चूड़ी, सिंदूर एवं सौंदर्य प्रसाधन की अन्य वस्तुएं भी बिकती हैं। कृषि के छोटे-छोटे औजार; यथा-कुदाल, हल, खुरपी आदि भी उपलब्ध रहते हैं। बच्चों के लिए तरह-तरह के खिलौने बिकते रहते हैं। किसी-किसी ग्रामीण हाट में गाय, भैंस, बकरी आदि छोटे-बड़े पशु भी खरीदे-बेचे जाते हैं।
ग्रामीण हाटों में ग्रामीणों के मनोरंजन के लिए विभिन्न प्रकार के खेल होते रहते हैं। हाट में बच्चे कहीं सपेरों की बीन की आवाज पर झूमते सांपों को देख आनंदित होते हैं, तो कहीं मदारी के बंदर के साथ मस्ती में नाचते नजर आते हैं। यहां बाइस्कोप वाले की आवाज–’दिल्ली की कुतुब मीनार देखो, ये आगरे का ताजमहल, घर बैठे संसार देखो’ भी बच्चों की भीड़ को आकर्षित करती है। बच्चे बाइस्कोप में इतने तन्मय दिखते हैं, मानो समाधि ही लगाए हों। ग्रामीण बूढ़े भी इन हाटों में घूमते दिखते हैं। वे दूसरे गांवों से आए सगे-संबंधियों से मिलकर बातें करके अपना मन बहलाने जाते हैं। इससे नीरस जीवन सरस हो जाता है। इस प्रकार ग्रामीण हाट सबके लिए समान रूप से उपयोगी है।