
अनुशासन पर निबंध |Essay on Discipline in Hindi
अनुशासन पर निबंध – ‘शासन’ शब्द के आगे ‘अनु’ उपसर्ग लग जाने से ‘अनुशासन’ शब्द बन जाता है। ‘अनु’ शब्द का अर्थ है-पीछे-पीछे। इस प्रकार ‘अनुशासन’ का शाब्दिक अर्थ हुआ-शासन के पीछे-पीछे चलना। यहां शासन का मतलब शासकीय कानून और सामाजिक मान्यताओं से है। अतः प्रशासनिक कानून और सामाजिक मान्यताओं का पालन ही अनुशासन है। अपने परिवार से राष्ट्र तक को सुव्यवस्थित रखने के लिए अनुशासन अनिवार्य है। जिस प्रकार यदि परिवार में पुत्र पिता के अनुशासन में न रहे और पुत्री माता के अनुशासन में न रहे, तो वह परिवार अव्यवस्थित हो जाएगा; उसी प्रकार यदि सरकारी कार्यालयों में कर्मचारी पदाधिकारी के अनुशासन में न रहें, तो कार्यालय में अव्यवस्था फैल जाएगी।
कहने का भाव यह है कि अध्यापक को प्रधानाध्यापक के, प्राध्यापक को प्राचार्य के एवं छात्र को शिक्षक के अनुशासन में रहना पड़ता है। सैनिक तो बिना अनुशासन के एक पग भी नहीं चल सकते अर्थात अनुशासन मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में आवश्यक है। इसीलिए गांधी जी ने कहा था, “अनुशासन के बिना न तो परिवार चल सकता है और न संस्था या राष्ट्र ही।”
प्रत्येक व्यक्ति में बाल्यकाल से ही अनुशासन का बीज डालने की चेष्टा की जाती है। बच्चा मां के प्यार, पिता की डांट एवं अग्रजों के मार्गदर्शन में अनुशासित जीवन व्यतीत करते हुए धीरे-धीरे बड़ा होता है। बच्चों में डाला गया अनुशासन का यह बीज अंकुरित होने लगता है। जब बच्चे विद्याध्ययन के लिए विद्यालय जाते हैं, तब वहां भी उन्हें अनुशासन का पाठ मिलता है। विद्यालय में विद्यार्थी शब्द-ज्ञान के साथ-साथ विद्यालय के नियमानुसार संयमित जीवन व्यतीत करते हैं। वे गुरुजनों के उत्कृष्ट आचरण को समीप से देखकर उसका अनुकरण करते हैं। इस प्रकार प्राथमिक विद्यालय से महाविद्यालय तक की अवधि में विद्यार्थियों में अनुशासन का वह अंकुरित बीज बड़ा होकर वृक्ष का रूप ले लेता है। ऐसे ही छात्र व्यावहारिक जीवन में पदाधिकारी बनते हैं, तब उनके मातहत कार्य करने वाले सैकड़ों कर्मचारी अनुशासित रहते हैं।
ऐसे ही छात्र जब सेना के उच्च अधिकारी बनते हैं, तब सैकड़ों सैनिक उनके एक इशारे पर मर-मिटने को तैयार रहते हैं। ऐसे ही छात्र जब देश का नेतृत्व ग्रहण करते हैं, तब उनके पीछे संपूर्ण राष्ट्र चल पड़ता है। लेकिन खेद है कि आज छात्रों, जो राष्ट्र के भावी कर्णधार हैं, में अनुशासन हीनता व्याप्त है। अनुशासन हीनता और आज का विद्यार्थी—दोनों एक-दूसरे के पर्याय बन गए हैं। छोटी सी घटना को लेकर सरकारी बसों एवं कार्यालयों को जलाना तथा दुकानों को लूटना एक सामान्य बात हो गई है।
परीक्षा की मर्यादा का हनन करना तो आज के विद्यार्थी अपना जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। परीक्षा में नकल न करने पर गुरुजनों को अपमानित करना उनके लिए आम बात है। आज छात्र शिक्षक की छड़ी से नहीं डरते, अपितु शिक्षक ही छात्रों के छुरे से डरते हैं। इन सभी कुरीतियों के मूल में अनुशासन हीनता ही है। विद्यार्थियों में व्याप्त इस अनुशासन हीनता के अनेक कारणों में वर्तमान राजनीतिक प्रदूषण सर्वाधिक जिम्मेदार है।
आज के राजनीतिज्ञ अपने क्षुद्र स्वार्थों की पूर्ति हेतु विद्यार्थियों को अपना हथकंडा बनाते हैं। इसी का प्रभाव है कि आज समाज में सर्वत्र अराजकता व्याप्त है। इन सभी स्थितियों को ध्यान में रखते हुए राष्ट्र के प्रत्येक व्यक्ति के लिए अनुशासन का पालन करना जरूरी है-चाहे वह व्यापारी हो या मजदूर, शिक्षक हो या छात्र, पदाधिकारी हो या कर्मचारी नेता-तभी राष्ट्र का सर्वांगीण विकास संभव है। अनुशासन ही संगठन की कुंजी और प्रगति की सीढ़ी है।