
नाई पर निबंध
‘पंछी में कौआ और जात में नौआ’-इस ग्रामीण लोकोक्ति को आपने अवश्य सुना होगा। अर्थात कौआ और नौआ ये दोनों पृथ्वी पर सबसे चतुर प्राणी माने जाते हैं। अपने लक्ष्य की प्राप्ति में कौए की चेष्टा की सर्वत्र प्रशंसा की गई है। यही कारण है कि हमारे चिंतकों ने विद्यार्थियों को भी पढ़ाई में काक चेष्टा रखने की सलाह दी है। इतना ही नहीं, भक्तराज काक भुशुंडी ने भी कौए का शरीर धारण करके भक्ति जगत में इस पक्षी की श्रेष्ठता जताई है। रही हम नाइयों की बात, आपको हमारी श्रेष्ठता भी समझ में आ जाएगी।
हमारे पास दो शस्त्र हैं-एक, हमारी चतुर विद्या और दूसरी, पैनी धार वाली कैंची। दोनों के कुशल प्रयोग पर ही हमारी श्रेष्ठता आधारित है। सबसे पहले जिह्वा को लीजिए। इसके कुशल प्रयोग के कारण ही पुराने जमाने में राजे महाराजे, सेठ-साहूकार एवं अन्य खाते-पीते लोग अपना मूल्यवान और गोपनीय कार्य मुझसे ही करवाते थे। दूसरे शब्दों में कहूं कि मैं उनके दूत का कार्य करता था, तो यह कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।
लड़के-लड़कियों की शादी जैसा नाजुक मामला भला और क्या हो सकता है। वर के लिए कन्या और कन्या के लिए वर ढूंढना मेरा ही दुरूह कार्य था। इसमें मैं बड़ी चतुराई से काम लेता था। लड़का-लड़की की शक्ल-सूरत तथा स्वभाव, मां-बाप की हैसियत आदि से संबंधित गुप्त सूचनाएं मैं ठीक-ठीक प्राप्त कर लेता था। शादी की स्वीकृति की स्थिति में शादी की शर्तों पर दोनों पक्षों को सहमत कराना तथा तारीख सुनिश्चित कराना आदि शुभ कार्य मेरे ही जिम्मे था। बड़े-बड़े इज्जतदार घराने की बहू-बेटियों को ससुराल भेजने और वहां से लाने का विश्वसनीय कार्य मैं ही करता था। कभी-कभी तो मेरी इन सफलताओं पर मुग्ध होकर राजे-महाराजे, सेठ-साहूकार अपने-अपने महलों से निकलकर मेरी अगवानी करते थे और मेरे ऊपर दान-दक्षिणा की वर्षा करने लगते थे। इस तरह समाज में हमारी इज्जत का डंका बजता था।
अब हमारे दूसरे शस्त्र कैंची पर गौर कीजिए। जिस चतुराई से मेरी जिह्वा चलती है, उतनी ही सफाई से मेरी कैंची भी चलती है। मैं चंद मिनटों में इस सफाई से बाल-दाढ़ी मूंडता हूं कि बनवाने वाले को पता भी नहीं चल पाता। हमारे समाज में इस तरह के कई मामले सुनने को मिले हैं कि किसी-किसी नाई ने इतनी सफाई से दाढ़ी-मूंछ बना डाली कि सोए हुए व्यक्ति को पता भी नहीं चला। सोकर जागने के बाद जब उन्हें पता चलता था कि उनकी दाढ़ी नियत समय पर बना दी गई है, तो मुझ पर दान-दक्षिणा की वर्षा की जाती थी। लेकिन अब नई पीढ़ी के नाई इतने सिद्धहस्त नहीं होते। वे तो अब बाल-दाढ़ी बनाते समय विभिन्न प्रकार की सजावटी वस्तुओं का प्रयोग करके गर्दन एवं चेहरे को विभिन्न कोणों पर घुमाते रहते हैं। इससे आपको उबाऊपन महसूस होता होगा। खैर, छोड़िए उनकी बात-अभी जमाना कहां से कहां जाएगा, इसका पता नहीं है। इसलिए इसके वर्णन की भी सीमा नहीं है।
अभी तक तो आपने मेरी जिह्वा की चतुराई और हाथ की सफाई देखी। अब हमारी विश्वसनीयता पर भी ध्यान दीजिए। अगर आपके पास आपका प्रिय पुत्र, पत्नी, सगा-संबंधी या कोई अभिन्न मित्र तेज उस्तरा लेकर पहुंच जाए, तो आपको कैसा लगेगा? निश्चित ही आप घबराकर अपनी सुरक्षा के उपाय ढूंढने या सोचने लगेंगे। लेकिन दूसरी ओर मेरी तेज कैंची और उस्तरा को देखते ही आप अपनी गर्दन हमारे सामने हाजिर कर देते हैं। क्या हमसे बढ़कर कोई अन्य विश्वसनीय व्यक्ति इस संसार में आपका है?
अब मैं अपनी श्रेष्ठता के संबंध में एक उदाहरण प्रस्तुत कर रहा हूं। इसे आप छोटा मुंह बड़ी बात या कुछ भी कहें। एक बार एक राजपुत्र और एक नाई के पुत्र में बहस छिड़ गई। बहस का विषय था— श्रेष्ठ कौन ? दोनों अपने-अपने दावे का बखान करने लगे। राजपुत्र ने कहा, “तुम्हारा बाप दो कौड़ी का आदमी है और मेरा बाप लाख टके का।” नाई के पुत्र ने पूछा, “सो कैसे?” राजपुत्र ने अकड़कर जवाब दिया, “देखते नहीं, मेरे बाप के सामने हाजिर होते ही सारे लोग सिर झुका देते हैं।” नाई के पुत्र ने मुस्कराकर जवाब दिया, “और तेरा बाप हजामत बनवाते समय मेरे बाप के सामने सिर झुकाता है।”
महाशय! अब तो आपको हमारी श्रेष्ठता और विश्वसनीयता समझ में आ गई होगी। हूं न मैं अति विश्वसनीय नाई।