
एड्स पर निबंध | Essay on AIDS in Hindi
चिकित्सा के क्षेत्र में एक ओर पूर्व परिचित बीमारियों से बचाव के उपाय किए जा रहे हैं, तो दूसरी ओर नई-नई बीमारियां उत्पन्न हो रही हैं। वर्तमान समय में काली खांसी, राजयक्ष्मा जैसी बीमारियां अभी भी विद्यमान हैं, जो कभी समाज और राष्ट्र को आतंकित करती थीं। लेकिन आज इन रोगों से ग्रस्त होने के बाद लोग कुछ दिनों में लगभग स्वस्थ हो जाते हैं। क्योंकि इनके बचाव के लिए उपलब्ध दवाओं से लोग निश्चितता का अनुभव करते हैं।
कुछ रोग ऐसे भी होते हैं, जिनसे मनुष्य की जान तो नहीं जाती, लेकिन वे असाध्य जरूर होते हैं। उससे आदमी बेकार हो जाता है। ऐसी बीमारियों में पोलियो भी शामिल है। एड्स से पहले कैंसर का उल्लेख करना आवश्यक है, जिसे मौत का पर्याय माना जाता है। कैंसर की दवाइयां अब भी भारत में सर्व सुलभ नहीं हैं और इसका इलाज भी सर्व सुलभ नहीं है।
कैंसर की श्रेणी में एक अन्य जानलेवा बीमारी है-एड्स। यह भारत ही नहीं, विश्व के चिकित्सकीय क्षेत्र में सबसे खतरनाक और असाध्य रोग है। एड्स भारत में भी फैल चुका है, जो विकसित देशों से आया है। इस बीमारी के प्रति सामान्य अवधारणा है कि यह असुरक्षित यौन संबंधों की देन है। पूरे विश्व के चिकित्सा वैज्ञानिक अब तक एड्स के इलाज में सफल नहीं हो सके हैं। भारत में इसके इलाज का भरोसा अभी नहीं किया जा सकता है।
एड्स को एक संक्रामक रोग माना जा रहा है। इसका पूरा नाम एक्वायर्ड इम्यून डिफिसिएंसी सिंड्रोम है। जब एड्स की चर्चा होती है, तो एच.आई.वी. की चर्चा अवश्य की जाती है, क्योंकि एड्स को फैलाने में एच.आई.वी. की महत्वपूर्ण भूमिका है। एच.आई.वी. का पूरा नाम है-ह्यूमन इम्यून डिफिसिएंसी वायरस। एड्स विषाणु जनित एक भयानक रोग है। जब इसके विषाणु किसी स्वस्थ व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, तो वह व्यक्ति एच.आई.वी. से संक्रमित कहलाता है। इस विषाणु द्वारा मनुष्य के शरीर में प्रवेश करने पर तत्क्षण कुछ पता नहीं चलता, परंतु दस-पंद्रह वर्षों बाद उसके संक्रमण का प्रभाव परिलक्षित होता है। जब मनुष्य संक्रमित हो जाता है, तो उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता दिनो-दिन घटने लगती है। चिकित्सा शास्त्र का कहना है कि एड्स से ग्रस्त रोगी के शरीर में सी.डी.ए. कोशिकाएं धीरे-धीरे कम होने लगती हैं, जिससे शरीर में रोगों से लड़ने की क्षमता घट जाती है।
एड्स फैलने के तीन मुख्य कारण हैं—पहला एड्स से प्रभावित रोगी के इंजेक्शन या रक्त का उपयोग करना, दूसरा एड्स रोगी मां द्वारा बच्चों को स्तनपान कराना तथा तीसरा स्वच्छंद यौन संबंध स्थापित करना।
अगर इन तीन बातों से व्यक्ति को बचाया जाए, तो एड्स के फैलाव में कमी आ सकती है। इनमें से सबसे अधिक खतरनाक अनियंत्रित यौन संबंध है। यदि किसी स्वस्थ व्यक्ति को एड्स का विषाणु संक्रमित करता है, तो वह कुछ समय तक जीवित रह सकता है। लेकिन यदि किसी अन्य घातक बीमारी से ग्रस्त रोगी को एच.आई.वी. संक्रमित कर दे, तो वह निश्चित रूप से शीघ्र ही मौत के मुंह में समा सकता है। ऐसी स्थिति में कोई भी उपचार सफल नहीं हो सकता, क्योंकि रोगी के शरीर में प्रतिरोधक तत्व लगभग नष्ट हो जाते हैं।
एड्स के लिए अब तक कोई इलाज सुनिश्चित नहीं हो सका है। अतः इसके बचाव का उपाय है कि एच.आई.वी. का संक्रमण न हो। इसके लिए परहेज या बचाव ही सबसे बड़ा इलाज है। अभी तक दुनिया में जिस बीमारी के लिए कोई निश्चित दवा या टीका नहीं है, वह बीमारी एड्स ही है।
भारत में अशिक्षितों और अज्ञान व्यक्तियों की संख्या अब भी ज्यादा है। अतः जरूरत इस बात की है कि आम आदमी को एड्स के विषय में मोटे तौर पर जानकारी दी जाए। लोग प्रायः एड्स के रोगी का तिरस्कार करते हैं, जो अनुचित है। एड्स रोगी को छूने से रोग का संक्रमण नहीं होता। इसके अलावा न तो उसके साथ रहने और न ही उसके सामानों का प्रयोग करने से एड्स का संक्रमण होता है। इसके अधिकतर मामले असुरक्षित यौन संबंधों से ही प्रकाश में आए हैं। इस रोग का निराकरण लोगों को सही जानकारी और बचाव के उपाय बताने से संभव है। एड्स से बचाव ही इसका असली इलाज है। भारत में एड्स के लाखों रोगी हैं, जो प्रायः असहाय और निरुपाय हैं। यहां एड्स से बचाव हेतु मात्र एक टीका उपलब्ध है, जिसे ‘एंटी एंड्रो वायरस’ कहते हैं।