
Drishti essay book in Hindi- स्वचालन जनित बेरोजगारी अथवा स्वचालन ने घटाए रोजगार के अवसर
स्वचालन (Automation) के रूप में तकनीक के नए युग का सूत्रपात हो चुका है। स्वाचालन से अभिप्राय तकनीक के उस उन्नत स्वरूप से है, जिसमें मानव द्वारा किए जाने वाले अनेक कार्यों को स्वाचालित मशीनें करती हैं। रोबोट्स और बोट्स उन कामों की कमान संभाल लेते हैं, जिन्हें इंसानों द्वारा किया जाता है। स्वचालन का मूलभूत उद्देश्य जहां उत्पादकता को बढ़ाना है, वहीं उत्पादों की कीमतों को कम करना भी है। यही कारण है कि तकनीक के इस उन्नत स्वरूप को आर्थिक उन्नति के रूप में देखा जा रहा है। स्वचालन के लाभों को देखते हुए उद्योग जगत एवं आईटी कंपनियां स्वचालन की ओर उन्मुख हैं और इस पर जोर दे रही हैं।
“स्वाचालन से अभिप्राय तकनीक के उस उन्नत स्वरूप से है, जिसमें मानव द्वारा किए जाने वाले अनेक कार्यों को स्वाचालित मशीनें करती है। रोबोट्स और बोट्स उन कामों की कमान संभाल लेते हैं, जिन्हें इंसानों द्वारा किया जाता है।”
इसमें कोई दो राय नहीं है कि तकनीकी उन्नति अपने साथ न सिर्फ बदलाव की बयार लाती है, बल्कि मानव के जीवन स्तर में सुधार के साथ आर्थिक प्रगति का पथ भी प्रशस्त करती है। भाप के इंजन से लेकर इंटरनेट तक का अब तक का तकनीक का सफर इसका साक्षी है। लेकिन तकनीक की प्रगति के साथ यह तथ्य हमेशा जुड़ा रहा कि यह वरदान भी है और अभिशाप भी है। तकनीक का विकास यदि सहूलियतें बढ़ाता है, तो साथ-साथ दुश्वारियां भी बढ़ाता है। यह बात स्वचालन पर भी लागू होती है।
यह सच है कि स्वाचालन को उत्पादकता में वृद्धि एवं सक्षमता के पर्याय के रूप में देखा जा रहा है। चूंकि स्वचालन से संसाधनों एवं समय की बचत होती है, अतएव इसे किफायती भी माना जा रहा है। इन बातों से इतर यदि इंसानी पहलू से देखें, तो स्वचालन मानव श्रम के लिए एक बड़ा खतरा भी है। इसने मानव श्रम को निगलना शुरू कर दिया है। उन लोगों के लिए तो यह और बड़ा खतरा बन कर सामने आया है, जो अकुशल (Unskilled) व पर्याप्त रूप से शिक्षित नहीं हैं। तकनीक के इस नए युग में स्वचालन जनित बेरोजगारी को लेकर चिंताएं बढ़नी स्वाभाविक हैं। भारत की इससे अछूता नहीं है। भारत में भी स्वचालन का चलन धीर-धीरे बढ़ रहा है और उसी के अनुरूप नियुक्तियों में कटौती की प्रवृत्ति भी बढ़ रही है। कंपनियां स्वचालन का लाभ तो उठाना ही चाहती हैं, इसकी आड़ में वेतन वृद्धि के दबाव को भी कम करना चाह रही हैं। देश की पांच अग्रणी कंपनियां- टीसीएस, इन्फोसिस, विप्रो, एचसीएल टेक्रोलॉजीज एवं कॉग्निजेंट स्वचालन के जरिए सतत वृद्धि की ओर जहां तेजी से कदम बढ़ा रही हैं, वहीं नई भर्तियों में जबरदस्त कटौती भी कर रही हैं। कुछ समय पूर्व इन अग्रणी कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण करने वाली ‘ब्रोकरेज फर्म सेंट्रम ब्रोकिंग’ द्वारा यह तथ्य उद्घाटित किया जा चुका है कि इन कंपनियों द्वारा वर्ष 2015 में की गई भर्तियों में लगभग एक चौथाई कटौती की गई। वर्ष 2015 में सबसे कम नौकरियां देने के मामले में कॉग्निजेंट और एचसीएल टेक्नोलॉजीज सबसे आगे रहीं, जबकि बढ़ते स्वचालन की वजह से संसाधनों को कम करने के लिहाज से इन्फोसिस और विप्रो ने सर्वाधिक प्रयास किए।
उद्योग जगत में जैसे-जैसे स्वचालन परिपक्व स्तर को प्राप्त कर रहा है, वैसे-वैसे जहां नौकरियों पर गाज गिर रही है, वहीं नई भर्तियों में कटौती की दर बढ़ रही है। भारतीय आईटी सेवा प्रदाता कंपनियां अपने कारोबारी मॉडल में बदलाव लाकर स्वचालन पर जोर देकर संसाधनों की बचत कर रही हैं तथा कम संख्या में कर्मचारियों की भर्ती पर जोर दे रही हैं।
स्वचालन की वजह से कंपनियों के कारोबारी मॉडल में इस कदर बदलाव आ रहा है कि मानव श्रम की जगह रोबोट ने कमान संभालनी शुरू कर दी है। भारत में रोबोट का इस्तेमाल अभी वाहन निर्माता कंपनियों में ज्यादा हो रहा है। आधुनिक वाहन संयंत्रों में कामकाज का एक अहम हिस्सा अब रोबोट के हवाले होता जा रहा है। भारत में कई वाहन कलपूर्जा निर्माता कंपनियों ने भी रोबोट को काम पर रखना शुरू कर दिया है।
उद्योग जगत स्वचालन के जरिए काम में गति एवं संपूर्णता की दलील तो देता है, किंतु उसका ध्यान देश के उन 1.3 करोड़ लोगो की तरफ नहीं जा रहा है, जो प्रतिवर्ष देश की श्रम शक्ति में शामिल होने की मंशा रखते हैं। जाहिर है कि यदि स्वचालन का चलन इसी तरह से बढ़ता गया, तो बड़े पैमाने पर लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा। उन लोगों के लिए तो स्थिति कुछ ज्यादा ही विकट होगी, जिनके पास अच्छे कौशल की कमी है।
उद्योग जगत जिस तरह से स्वचालन की तरफ उन्मुख है, उसे देखते हए यह नहीं लगता है कि बेरोजगारी की समस्या को ध्यान में रखकर इस सिलसिले को रोका जाएगा। उद्योग जगत स्वचालन की क्षमता को विस्तारित करने में लगा हुआ है। उद्योग जगत के लिए मनाफा सर्वोपरि होता है और स्वचालन इस मुनाफे की राह को आसान बना रहा है। एक तरफ नई भर्तियों में कटौतियां हो रही हैं, तो दूसरी तरफ कर्मचारियों को कार्य-मुक्त भी किया जा रहा है। मुनाफे की इस होड़ में शामिल हर बड़ी कंपनी स्वचालन पर जोर दे रही है। यह अकारण नहीं है कि स्वचालन पर जोर देने वाली देश की शीर्ष आईटी कंपनियों ने वित्त वर्ष 2018-19 और उसके आगे भी कम नियुक्तियां करने के संकेत दिए हैं। भारत की सबसे बड़ी आईटी सेवा प्रदाता और उद्योग में सबसे ज्यादा नियुक्तियां करने वाली टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) भी यह स्पष्ट कर चुकी है कि आगामी वर्षों में जहां धीरे-धीरे कैंपस नियुक्तियों में कमी लाई जाएगी, वहीं अनुभवी कर्मचारियों की नियुक्तियों में भी कटौती की जाएगी। रोजगार प्रदाता प्रमुख कंपनियों के शीर्ष पदों पर बैठे लोगों का यह मानना है कि स्वचालन की वजह से निचले स्तर पर काम करने के लिए लोगों की जरूरत वाली मुश्किल अब गायब हो गई है। सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग की प्रतिनिधि संस्था नैसकॉम का भी यह आकलन है कि स्वचालन का क्रमिक विकास शुरू हो चुका है, जिसकी वजह से आईटी उद्योग में कम भर्तियों का चलन देखने को मिलेगा।
“स्वचालन मानव श्रम के लिए एक बड़ा खतरा भी है। इसने मानव श्रम को निगलना शुरू कर दिया है। उन लोगों के लिए तो यह और बड़ा खतरा बन कर सामने आया है, जो अकुशल (Un skilled) व पर्याप्त रूप से शिक्षित नहीं हैं।”
उद्योग जगत को स्वचालन में फायदे-ही-फायदे नजर आ रहे हैं। वेतन वृद्धि के दबाव को कम करने के उद्देश्य से भी स्वचालन की ओर कदम बढ़ाए जा रहे हैं। सेंट्रम की एक रिपोर्ट के अनुसार भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी उद्योग ऊंची वेतन वृद्धि एवं कर्मियों को बरकरार रखने के ऊंचे खर्च के विकल्प के रूप में स्वचालन को तरजीह दे रहा है। वह यह समझ चुका है कि स्वचालन से सक्षमता और उत्पादकता में तो वृद्धि होगी ही, मानव संसाधन में कमी लाकर खर्च में कटौती भी की जा सकेगी। यहां बैंक आफ अमेरिका मेरिल लिंच के उस आकलन को देना जरूरी है, जिसमें कहा गया है कि कई जगहों पर रोबोट को काम पर लगाना किसी इंसानी कर्मचारी की तुलना में 15 फीसदी तक सस्ता हो सकता है। स्वचालन में उद्योग जगत को दोहरा लाभ दिख रहा है। ऐसे में उद्योग जगत से यह उम्मीद रखना बेमानी होगा कि वह रोजगार के इंसानी पहलू को ध्यान में रखकर स्वचालन से विमुख होगा।
उद्योग जगत में जिस तरह से स्वचालन के चलन ने जोर पकड़ रखा है और इसके जो फायदे दिख रहे हैं, उसे देखते हए यही लग रहा है कि स्वचालन की यह आंधी थमने से रही। वैसे भी मुनाफे की होड में शामिल रहने वाले उद्योग जगत को कभी यह फुरसत नहार है कि वह रोजगार जैसे इंसानी पहल पर ध्यान दे। स्पष्ट है कि हर गुजरते साल के साथ देश में बेरोजगारों की फौज बढ़ेगी। जहां प्रतिवर्ष । देश की श्रम शक्ति में शामिल होने की मंशा रखने वाले 1.3 करोड़ लोगों को हताशा एवं निराशा का सामना करना पड़ेगा, वहीं स्वचालन के कारण कार्य मुक्त किए जाने वाले श्रमिकों व कर्मचारियों के बेरोजगार होने से स्थिति और बिगड़ेगी। यहां यह रेखांकित करना समीचीन रहेगा कि भारत में बेरोजगारी की स्थिति पहले से ही काफी भयावह है। अकुशल श्रमिकों की तो बात छोड़िए बड़ी संख्या में काबिल इंजीनियर तक बेकार हैं। राष्ट्रीय दृष्टि से देश में शिक्षित बेरोजगारी सबसे विकट समस्या है।
देश में व्याप्त बेरोजगारी की समस्या पर अंकुश के लिए | रोजगार के अधिकाधिक अवसरों के सृजन की आवश्यकता है, किंतु | स्वचालन जैसी तकनीक के बढ़ते प्रभाव के कारण यह संभव नहीं | दिख रहा है। ऐसे में हमें कोई तो रास्ता निकालना ही होगा। यह बहुत ही विरोधाभासी रुझान है कि एक तरफ श्रम शक्ति में इजाफा हो रहा | है, तो दूसरी तरफ स्वचालन जैसी तकनीकों के कारण अवसर घटते जा रहे हैं। फलतः एक बड़ा असंतुलन आकार ले रहा है, जो अनेक प्रकार की समस्याओं को जन्म दे सकता है।
स्वचालन के कारण बेरोजगारी का जो संकट मंडरा रहा है, उससे बचने के लिए कुछ पहले आवश्यक हैं। पहली पहल तो यह होनी चाहिए कि हम देश के युवकों में स्वरोजगार की ललक पैदा करें। यानी देश का युवा नौकरियों के तलाश में भटकने के बजाय, अपना रोजगार शुरू करे। अपना रोजगार शुरू करने के लिए पूंजी का आवश्यकता होती है। यह पंजी महैया करवाने के लिए जहां सरकारों की पहल करनी होगी, वहीं लोगों को अपने स्तर से पूजी जुटाने के लिए बचत की आदत डालनी होगी। स्वनियोजन को इस समस्या के सटीक समाधान के रूप में देखना चाहिए। इसके लिए यह भी आवश्यक है कि उद्यमी युवकों को रोजगारपरक प्रशिक्षण दिया जाए, उन्हें वित्तीय सहायता उपलब्ध करवाने के साथ-साथ कच्चे माल एवं विपणन आदि की सुविधाएं भी दी जाएं। इस समस्या से उबरने के लिए शिक्षा प्रणाली में भी बदलाव की आवश्यकता है। हमें उस शिक्षा प्रणाली को अपनाना होगा जो कौशल विकास पर केन्द्रित हो तथा जिसका स्वरूप व्यवसायोन्मुखी हो।
रोजगार पर तकनीक के हमले नए नहीं हैं। जब-जब तकनीक का कोई नया स्वरूप सामने आता है, तब-तब मानव श्रम पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हालांकि तकनीक के पक्ष में दलीलें दी जाती हैं कि नई तकनीक रोजगार के नए अवसरों का सृजन करती है, किंतु वास्तविकता यह है कि यह जितने अवसरों का सृजन करती है, उससे कहीं अधिक अवसरों को समाप्त भी करती है। फिर स्वचालन तो तकनीक का वह उन्नत स्वरूप है, जिसमें अवसरों के सृजन की गुंजाइश बहुत कम है। ऐसे में स्वचालन जनित बेरोजगारी के प्रति अभी से सजग एवं सावधान रहने की जरूरत है। हमें ऐसे उपाय करने होंगे जो स्वचालन जनित बेरोजगारी को प्रभावहीन कर सकें। इन उपायों के तहत हमें स्वरोजगार, स्वनियोजन एवं कौशल विकास पर तो ध्यान केन्द्रित करना ही होगा, शिक्षा प्रणाली को भी व्यवसायोन्मुखी बनाना होगा।