
Birbal ki chaturai ki kahani-आम के बाग की सैर
एक शाम, अकबर और बीरबल आम के बाग में टहलने निकले। वे हमेशा की तरह अलग-अलग विषयों पर चर्चा कर रहे थे। अचानक ही एक तीर जहांपनाह के सिर के ऊपर से होते हुए निकल गया। यह देख कर उन्हें बहुत गुस्सा आया। पहले उन्हें लगा कि किसी ने उन्हें मारने की साजिश रची है। उन्होंने झट से अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि तीर चलाने वाले को पकड़ कर, मौत के घाट उतार दिया जाए। कुछ ही देर में, पहरेदार एक लड़के को घसीटते हुए ले आए, जो बहुत ही डरा हुआ दिखाई दे रहा था। एक सिपाही ने कहा, “जहांपनाह! इसी लड़के ने आप पर तीर चलाया है।”
अकबर बोले, “लड़के! तुमने …. हिंदुस्तान के जहांपनाह पर । तीर चलाया है, तुम्हें माफ नहीं किया जाएगा।” “नहीं-नहीं! मैंने ऐसा कुछ नहीं किया।” लड़का रोते-रोते बोला। अकबर ने अपने सिपाहियों से कहा, “इसे उसी तरह मार दो, जिस तरह इसने मुझे मारना चाहा। इसे पकड़ो और इस पर तीर चलाओ। अगर ये नहीं मारा गया तो याद रखना, तुम सबको मौत के घाट उतार दिया जाएगा।” अकबर वाकई बहुत गुस्से में थे।
वह लड़का जोर-जोर से रोने लगा। उसने कहा, “जहांपनाह! मैं आपसे माफी चाहता हूं। मेरा विश्वास करें, मैं आपको मारने की साजिश नहीं कर रहा था। मैं तो आम के बगीचे में आम तोड़ने के लिए तीर चला रहा था। वह तीर गलती से आपकी तरफ आ गया। मेहरबानी करके मुझे छोड़ दें। फिर कभी ऐसी भूल नहीं होगी। मैं शाही बाग की ओर कदम तक नहीं रखूगा।” पर अकबर कुछ भी सुनने को तैयार नहीं थे। उन्होंने निर्दोष बालक की फरियाद को अनुसना कर, उसे मारने का आदेश दे दिया। बीरबल जानते थे कि उसमें उस लड़के की कोई गलती नहीं थी और अकबर उसे मारने का हुक्म सुना कर उचित नहीं कर रहे हैं। उन्होंने तय किया कि वे उस लड़के की जान बचाने के लिए कोई उपाय करेंगे। वे किसी के भी प्रति अन्याय नहीं सह सकते थे। तभी सिपाहियों ने लड़के को आम के पेड़ से बांध दिया। ज्यों ही एक सिपाही तीर चलाने लगा तो बीरबल ने उसे रोक दिया। यह देख कर अकबर को बहुत बुरा लगा और वे बोले, “बीरबल! तुम्हारी इतनी मजाल कि तुम मेरे दिये हुए आदेश को काट रहे हो? इस लड़के ने हिंदुस्तान के बादशाह पर वार किया है। इसे तो इसका अंजाम भुगतना ही होगा।”
बीरबल ने अपने हाथ जोड़े और अकबर से बोले, “जहांपनाह! आपसे माफी चाहूंगा परंतु यह तो अन्याय है। आपने कहा कि इसे वैसे ही मारा जाना चाहिए, जैसे इसने आपको मारने की कोशिश की। फिर तो सिपाही को आम के पेड़ पर निशाना लगाना चाहिए ताकि वह निशाना चूके और इस लड़के को तीर आ कर लगे। तभी तो आपका आदेश पूरा होगा।” बीरबल के इन शब्दों को सुन कर अकबर को एहसास हो गया कि वे गुस्से में आ कर एक मासूम की जान लेने जा रहे थे। उन्होंने उस लड़के की जान बख्श दी और उसे आमों के टोकरे के साथ विदा दी। उस दिन शाम को अकबर ने बीरबल से अकेले में बात करते हुए धन्यवाद दिया और बोले, “बीरबल! तुम उन चापलूसों में से नहीं जो मेरी हां में हां मिलाते हैं। आज तुम्हारी वजह से उस लड़के की जान बच गई। वरना मेरे हाथों एक बेगुनाह का खून हो जाता।” बीरबल यह सुन कर मुस्कुराने लगे।