
विलहम कॉनरैड रॉटजन की जीवनी |Biography of Wilhelm Conrad Rontgen in Hindi
ऐक्स किरणों के आविष्कारक विल्हेम कॉनरैड रोटंजन का जन्म 22 मार्च, सन् 1845 लेनेप (जर्मनी) में कृषक परिवार में हुआ था। उनकी माता डच महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हॉलैंड में हुई तथा स्विटजरलैंड ज्यूरिख विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा ग्रहण की और इसी विश्वविद्यालय से सन् 1869 ई० में पी०एच०डी० की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने आजीविका के लिए अध्यापन कार्य को चुना।
सन् 1885 ई०, में वे बुर्जबर्ग विश्व विद्यालय में भौतिकी के प्रोफेसर पद पर कार्य करने लग गए। यहीं पर उन्होंने पचास वर्ष की आयु में सन् 1895 ई०, में एक्स किरणों (अज्ञात किरणों) का महत्त्वपूर्ण आविष्कार किया। इस आविष्कार की कहानी अत्यन्त रुचिकर हैं।
एक दिन वह अपनी प्रयोगशाला में एक विद्युत विसर्जन नलिका पर कुछ प्रयोग कर रहे थे, उन्होंने पर्दो के माध्यम से प्रयोगशाला में अँधेरा किया हुआ था व विसर्जन नलिका को काले गत्ते से ढककर रखा था। उन्होंने देखा कि विसर्जन नलिका के निकट ही रखे कुछ बैरियम प्लेटीनों साइनाइड के टुकड़ों से एक तरह की प्रकाशीय चमक निकल रही है। तब उन्होंने अपने चारों ओर देखा तो पाया कि वह मेज से कुछ दूरी पर एक प्रतिदीप्तिशील पर्दा भी चमक रहा है। यह देखकर वे आश्चर्यचकित रह गए कि विसर्जक नालिका तो काले गत्ते से ढकी हुई है तथा विसर्जन किरणों के बाहर निकालने की कोई राह नहीं है।
तब उनको यकीन हो गया कि निश्चय ही विसर्जन नालिका से कुछ अज्ञात किरणें निकल रही हैं, जो मोटे गत्ते से भी पार हो सकती हैं। उन्होंने इन विशेष गुणों का पता लगाया। वह इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि ये किरणें कागज, रबर व धातुओं की पतलीचादर के आर-पार निकल जाती हैं। ये किरणें ‘रोटंजन रेज’ नाम से भी जानी गयीं।
इस आविष्कार के पश्चात् उन्होंने विचार किया कि जैसे साधारण प्रकाश से फोटो फिल्म प्रभावित हो जाती है, शायद इन रहस्यमयी किरणों का भी फोटो फिल्म पर कुछ प्रभाव पड़े। इसकी जांच करने के लिए उन्होंने एक फोटो प्लेट ली और उस पर अपनी पत्नी का हाथ रखकर एक्स किरणें डालीं। जब उस फोटो प्लेट को डेवलप किया, तब उन दोनों ने देखा कि प्लेट पर हाथ की हड्डियां साफ दिखाई दे रही हैं तथा उनके चहुं ओर का माँस धुंधला-सा अक्श दिखाई पड़ रहा है। उनकी पत्नी ने अंगूठी पहन रखी थी। वह भी साफ दिखाई दे रही थी। यह पहला मौका था जब जीवित मानव के ढांचे का चित्र खींचा गया था। इस आविष्कार की सफलता में उनके दोसाथियों का भी पूरा योगदान रहा था।
ये किरणें जीवनदायी होते हुए भी मानव देह पर बड़ा घातक प्रभाव छोड़ती हैं। इन किरणों के आविष्कारकों की दयनीय मृत्यु का कारण भी ये किरणें ही थीं। उनकी आविष्कृत एक्स किरणों का उपयोग केवल मानवदेह की अस्थियों को ही चित्रित करने के लिए नहीं किया जाता बल्कि इन्हें कैंसर जैसे भयानक रोग के उपचार के लिए भी प्रयोग में लिया जाता है। इनसे त्वचा रोगों का भी उपचार किया जाता है। इन किरणों के माध्यम से देह में घुसी गोली, गुर्दो की पथरी व फेफड़ों के विकारों का भी पता लगाया जाता है। ये किरणें अपराधियों की देह के अंग में छिपाए हीरे, मोती, सोना जैसी कीमती वस्तुओं का भी पता लगाने में सहायक हैं।
ये किरणें वास्तविक एवं कृत्रिम हीरों में भी भेद बता देती हैं। अनुसंधान प्रयोगशालाओं में इनके माध्यम से मणिओं की संरचना का पता लगाया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व इन किरणों को प्रयोग में लाकर ‘कैट स्कैनर’ नामक यंत्र का निर्माण किया गया था, जिससे शरीर को आन्तरिक बीमारियों का पता क्षण भर में लगाया जा सकता है। सन् 1901 ई० में भौतिकी के प्रथम नोबेल पुरस्कार से विलियम कॉनराड को सम्मानित किया गया।
उन्होंने इन एक्स किरणों के साथ भी कई अनुसधान किए थे, जिनमें घूर्णन करते हुए विशिष्ट पदार्थों पर चुम्बकीय प्रभावों से संबधित प्रयोग उल्लेखनीय हैं। उन्नीसवीं शताब्दी के अंत में वह बुजबर्ग से म्यूनिख आ गए और यहीं पर 78 वर्ष की उम्र में 10 फरवरी, सन् 1923 ई० में उनकी मृत्यु हो गयी।