
विद्वता की परख
प्रतापी राजा भोज का नाम तो आपने सुना ही होगा। बात उस समय का है जब धारा नगरी में राजा भोज का शासन था। उनके दो राजकुमार थे। राजा ने अपने दोनों । राजकुमारों की शिक्षा-दीक्षा के लिए एक अच्छे विद्वान पंडित को रखा था।
पांडित्य में बेजोड होने के साथ ही साथ वह अत्यन्त स्वाभिमानी भी था। वह निर्भीक व स्वतंत्र विचारों का व्यक्ति था। वह किसी से डरता नहीं था।
एक दिन पंडित ने राजकुमारों से मधुर वाणी में कहा, ‘राजकुमारो, पढ़ाई और ज्ञानार्जन के लिए मन की एकाग्रता तथा तन्मयता की अति आवश्यकता होती है। यह एक साधना है। तपस्या है। तुम मन लगाकर पढ़ाई करो। तुम्हारा सारा वैभव और राज्य नष्ट हो सकता है, किन्तु अर्जित की हुई विद्या कभी भी नष्ट नहीं होगी। न तो उसे कोई चोर चुरा सकता है, और न ही उसे कोई कम कर सकता है। राजा का आदर केवल उसके राज्य में होता है, परन्तु ती) विद्वानों और ज्ञानियों का आदर दूर-दूर तक होता है। विद्वान सब जगह पूजे जाते हैं।’ ये सारी बातें राजा भोज छिपकर सुन रहे थे। उनको पंडित का यह कथन बहुत बुरा लगा। – यह बात बार-बार उन्हें कचोटती रही। भोज
सारी रात सो न सके। रातभर पंडित का कथन उनके हृदय और मस्तिष्क में गहराता रहा। दिन निकलने पर राजा ने पंडित के सत्यापन के लिये राजदरबार में उसे बुलवाया। भोज ने पंडित से कहा कि आपने कैसे कहा कि विद्वानों का आदर दूर-दूर तक होता है और राजा का आदर सिर्फ उसके राज्य में होता है?
पंडित ने कहा, ‘राजन मेरा कथन अक्षरशः सत्य है। आप चाहे तो मेरे कथन की जब चाहे परीक्षा कर सकते हैं।’
राजा ने उसी समय पंडित के हाथ और पैरों में बेड़ियां डलवाकर एक सुनसान निर्जन वन में उसे छुड़वा दिया। इसी समय राजा के दरबार में दो व्यक्ति आए। उनके चहरे पर चमक थी। उन्हे देख कर सारे दरबारी चकित रह गए। इन दिव्य पुरुषों में से एक के हाथ में पारिजात पुष्प की सुन्दर मालाएं तथा दूसरे के हाथ में चमचमाता फरसा था।
दोनों की सम्मिलित आवाज दरबार में गूंज गई- ‘हम देवदूत हैं? हमारे एक प्रश्न का उत्तर दीजिये।’
राजा भोज ने विनम्रता से प्रश्न बतलाने के लिए कहा। एक देवदूत ने कहा, ‘राजन आप विद्वान और शानवान हैं। बताइये पौष के माह में जाड़ा अत्यधिक पड़ता है अथवा माघ के माह में? यदि आप ने इस प्रश्न का उत्तर दे दिया तो इन पारिजात के पुष्प की सुन्दर मालाओं से आपका अभिनन्दन करेंगे तथा आपके इस राज्य में सोने की वृष्टि होगी। इसके विपरीत यदि आप उत्तर देने में असमर्थ रहे तो आपको इस गद्दी से अलग कर दिया जाएगा।’
प्रश्न सुन कर राजा भोज के चहरे पर उदासी छा गयी। लाख प्रयास करने के बाद भी वे सही उत्तर देने में असमर्थ रहे। कोई युक्ति नहीं सूझ रही थी। तभी एकाएक संकट के समय उन्हें उस विद्वान पंडित का स्मरण हो आया, जिसे उन्होंने बेड़ियां डलवाकर घने जंगल में छुड़वा दिया था। राजा भोज शीघ्रता से अपने कुछ लोगों को लेकर उसी पंडित के पास पहुंचे और देवदूत द्वारा कही गयी सारी जीवन-मरण की बातें बताईं।
पंडित ने कहा, ‘महाराज आप निश्चिंत रहिये। किसी बात की चिंता या फिक्र नहीं करें। यह तो साधारण-सा सवाल है, इसका समाधान हो जाएगा। आप पास ही झाड़ियों में झुरमुट में छुप जावें, क्योंकि देवदूत आपका पीछा करते हुए इधर ही आ रहे होंगे।’
राजा लाचार था। मरता क्या न करता। वह पंडित के कहे अनुसार छुप गया। थोड़ी देर में दोनों देवदूत राजा भोज को खोजते हुए अपने प्रश्न का उत्तर पाने के लिए वहां उपस्थित हुए। उन्होंने पंडित से भी वही प्रश्न किया कि पौष में जाड़ा अधिक पड़ता है या माघ में? पंडित ने जवाब दिया, ‘देवदूतो, आपका प्रश्न अत्यन्त ही साधारण है। वास्तव में न तो पौष में जाड़ा अधिक पडता है और न माघ के महीने में। अपितु जिस माह में अधिक हवा बहती है उस माह में विशेष जाड़ा पड़ता है। यह तो साधारण ज्ञान रखने वाला कोई भी व्यक्ति बता सकता था।’
पंडित का उत्तर सुनकर दोनों देवदूत प्रसन्न हुए। उन्होंने पारिजात पुष्प की माला से पंडित का अभिनंदन किया और उसे गद्दी पर बिठाने के लिए ससम्मान नगर की ओर चल दिये। परन्तु उस विद्वान पंडित ने पुनः कहा, ‘राजा का सम्मान केवल राज्य तक सीमित रहता है, परन्तु विद्वान की विद्वता का प्रकाश दूर-दूर तक रोशनी फैलाता है। अत: मैं राजगद्दी पर नहीं बैलूंगा। यदि आप मेरा सम्मान रखना चाहते हो तो मेरी एक बात मान लो।’
दोनों व्यक्तियों ने कहा, ‘बोलो।’
पंडित ने कहा, ‘गद्दी पर तो राजा भोज को ही रहने दो।’
दोनों देवदूत तथास्तु कहकर अदृश्य हो गये। राजा भोज वहीं झुरमुट से यह सब नजारा देख और सुन रहा था। उसके अचरज का ठिकाना नहीं रहा। उसने मन में पंडित की व्यवहार-विद्वता की अपार सराहना की। राजा ने अपने व्यवहार के प्रति ग्लानि प्रकट की, क्योंकि पंडित का कथन राजा के सामने सच्चाई बनकर आ चुका था।