
अकबर का कला प्रेम-2
संगीत प्रतियोगिता में जीत हासिल करने के बाद अकबर ने बीरबल को चित्रकला के लिए एक चुनौती दी। बादशाह अकबर को चित्रकला का बहुत शौक था। उनके महल में एक से एक दामी चित्रों का संग्रह था। वे हर स्थान से सुंदर चित्र खरीदते और इस कला को बढ़ावा देते। उन्हें संगीत और चित्रकला में बेहद आनंद आता था। एक दिन उन्होंने बीरबल से कहा, “बीरबल! मेरे पास तुम्हारे लिए एक काम है। तुमने संगीत प्रतियोगिता जीत कर, मेरा सिर गर्व से ऊंचा कर दिया। मैं बहुत प्रसन्न हूं। तुम्हारे सामने जो भी चुनौती रखी जाती है। तुम उसे बहुत अच्छी तरह पूरा करते हो। मैं चाहता हूं कि तुम मेरे लिए एक चित्र बनाओ।”
यह सुन कर बीरबल थोड़ा परेशान हो गए और बोले, “जहांपनाह!
आपसे क्षमा चाहूंगा पर मुझे नहीं लगता कि मैं आपकी इस चुनौती को पूरा कर सकूँगा। मैं तो चित्र बनाने के लिए ब्रश तक हाथ में नहीं पकड़ सकता। मेरे लिए इस चुनौती को पूरा करना मुश्किल है। मुझे चित्र बनाना नहीं आता।” बीरबल का यह जवाब सुन कर अकबर को बहुत गुस्सा आया और वे बोले, “बीरबल, मुझे तुमसे ऐसा जवाब मिलने की उम्मीद बिल्कुल नहीं थी। तुमने मेरा सिर नीचा कर दिया। मैं तुम पर कितना गर्व करता हूं। तुमने कोशिश करने से पहले ही हार मान ली, मुझे तुमसे यह उम्मीद न थी।”
बीरबल ने कुछ कहना चाहा पर अकबर बोले, “मुझे इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि तुम चित्र बनाना जानते हो या नहीं। मैंने तुम्हें एक हुक्म दिया है, अपनी कल्पना से एक सुंदर चित्र बना कर लाओ।”
यह सुन कर बीरबल समझ गए कि अब उनके पास महाराज की बात मानने के अलावा कोई दूसरा उपाय न था। उन्हें यह चुनौती स्वीकार करनी ही पड़ी। उन्होंने बादशाह से कहा, “जहांपनाह! आपसे माफी चाहता हूं कि मैंने आपकी बात काटी। मैं अपनी भूल सुधारना चाहता हूं। मुझे आपकी चुनौती मंजूर है। मुझे इस कला की बहुत जानकारी नहीं है इसलिए चित्र बनाने के लिए थोड़ा समय चाहता हूं।” अकबर ने हामी भर दी और बीरबल अपने घर चले गए।
वे अपने घर जा कर सोचते रहे कि क्या चित्र बनाएं पर उन्हें कुछ समझ ही नहीं आ रहा था। इसी तरह पूरा एक सप्ताह बीत गया। एक सप्ताह के बाद अकबर ने बीरबल को दरबार में बुलवाया। “बीरबल! मैं यह देखने को उत्सुक हूं कि तुमने कैसा चित्र बनाया है।”
“जी जहांपनाह! आशा करता हूं कि आपको इसे देख कर प्रसन्नता होगी।” बीरबल बोले।
फिर बीरबल ने एक सहायक को संकेत किया कि वह चित्र को दरबार में लाए। सहायक के हाथों में चित्र था। जिसे सफेद कपड़े से ढका गया था। अकबर की उत्सुकता और बढ़ गई। जब कपड़ा हटा तो पूरे चित्र में अकबर को सफेद और भूरे रंग के धब्बों के सिवा कुछ दिखाई नहीं दिया। उन्होंने गुस्से से पूछा, “बीरबल! यह कैसा चित्र है?” बीरबल बोले “जहांपनाह! यह घास खाती हुई गाय का चित्र है।” अकबर बोले “इस चित्र में गाय कहां है?”
“वह तो चली गई।” “घास कहां है?” “उसे तो गाय ने खा लिया।” बीरबल ने सफाई दी।
यह सुन कर अकबर अपनी हंसी नहीं रोक सके और जान गए कि बीरबल से जीतना वाकई कठिन है।