
ज्ञानवर्धक बाल कहानियाँ-पेटू सेठ जी
चिंटू नामक चींटा हमेशा मस्ती में रहता। जिस धर्मशाला में वह रहता था, उसमें यात्रियों का आना-जाना लगा रहता था। चिंटू को उनसे तरह-तरह की चीजें खाने को मिल जातीं। वह उन्हें खाता और बिल में घुस कर सो जाता।
लेकिन लगातार वर्षा के कारण कुछ दिनों से धर्मशाला में लोग आ नहीं रहे थे। इसलिए चिंटू का पेट खाली था। भूख के मारे उसका बुरा हाल था। एकाएक एक सेठ जी उसे धर्मशाला की ओर आते हुए दिखाई दिए। चिंटू खुश हो गया। उसे लगा कि अब वह अपनी भूख मिटा कर आराम से सोएगा।
सेठजी धर्मशाला में पड़ी खाट को बिछा कर लेट गए। अपनी पोटली उन्होंने पास रख ली। चिंटू ने पोटली का जायजा लिया। उसमें से आती खुशबू ने उसकी भूख को और बढ़ा दिया था। वह सेठजी के पैरों पर जा बैठा यह सोचते हुए कि जो नीचे गिरेगा, उसे वह झटपट चट कर जाएगा। लेकिन सेठ जी पेटू थे। उन्होंने एक दाना भी नीचे गिरने नहीं दिया। खा-पीकर वह खाट पर लेटे और सो गए।
इधर भूख के मारे चिंटू की हालत बद से बदतर होती जा रही थी। एक तो सेठजी के खर्राटे, दूसरे पेट को सिकोड़ती जबर्दस्त भूख-चिंटू को रातभर नींद न आई। चिंटू को उम्मीद थी कि सुबह जलपान के समय शायद सेठजी उसके लिए कुछ नीचे गिरा दें। लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ। सेठजी ने जमकर खाया-पीया और जो बचा उसे संभाल कर पोटली में बांधा तथा आगे की यात्रा पर निकल पड़े। भूख का क्या, वह रास्ते में कहीं भी सता सकती है।
चिंटू को पता नहीं चला कि कब वह अपने होश खो बैठा। आंखें खुलीं, तो देखा कि धर्मशाला में रहने वाले उसके साथियों ने उसे घेरा हुआ था। उसने नजरें घुमाई तो आसपास खाने-पीने को बहुत सा सामान रखा था। उसे आवाज आई, “उठो, पहले कुछ खा लो, फिर बात करेंगे।”
चिंटू ने पेट भर खाया। लेकिन वह सोच रहा था, ‘इतना खाना इनके पास कहां से आया। ये भी तो मेरी तरह इस धर्मशाला में रहते हैं।’ उसने जब यह बात मोनू से पूछी, तो उसने कहा, “खा-पीकर मौजमस्ती करना और भविष्य के बारे में न सोचना समझदारी नहीं है। हम भी खाते-पीते हैं, मौजमस्ती करते हैं, लेकिन साथ ही बरसात के मौसम के लिए इकट्ठा करके भी रख लेते हैं । तुम्हें भी ऐसा कुछ करना चाहिए। वर्तमान का आनंद लो और भविष्य का निर्माण करो, इसी में समझदारी है।
चिंटू ने सोचा, ‘बात तो सही है। जो आगे की नहीं सोचते, वह मेरी तरह भूखे रहने को विवश हो जाते हैं। अब चिंटू भी बिल में खाने-पीने का पूरा इंतजाम रखता है।’
ज्ञानवर्धक कहानियां- कभी दुख-कभी सुख
रेगिस्तान में ऊंटों का एक कबीला था। एक बार बाहर से कोई ऊंट घूमता-फिरता आया और उस कबीले का हिस्सा हो गया। उस पर किसी का कोई बंधन नहीं था। जहां मन करता वहां घूमता-फिरता। रेगिस्तान के बदलते मौसम की उसे आदत नहीं थी। एक दिन तेज गर्म हवाओं का तूफान वहां आया। किसी तरह दिन खत्म हुआ। उसका शरीर रेत से गंदा हो गया था। उसका मुंह लटक गया। वह सोच रहा था, कहां फंस गया। मगर यह क्या, रात होते ही तूफान रुक गया। ठंडी-ठंडी हवा चलने लगी। वह रेत जो दिन में धूप की तपिश से आग की तरह जल रही थी, बर्फ के समान ठंडी लगने लगी। ऊंट बड़ा खुश था। खुशी से गुनगुनाता वह घर से निकला और लगा अपने साथियों को पुकारने, “आ जाओ मेरे दोस्तो, जोह रहा हूं तुम्हारी बाट। ऐ मेरे दोस्तो, देखो, देर न करो। चंदा ने बिखेरी है चांदनी चारों तरफ-तारों ने छेड़ा है राग, मेरी तरफ।”,
अभी वह अपना गीत पूरा भी न कर पाया था कि इतने में एक उल्लू ने उसके कान में कहा, “तुम भी बड़े अजीब हो, मौसम की तरह बदलते रहते हो।” उल्लू के इस ताने को सुनकर ऊंट गुस्से में बोला, “तुम कौन होते हो मुझे ताना देने वाले ?” उल्लू बोला, “मैंने क्या गलत कहा, अभी कुछ देर पहले, जब यहां तूफान आया था, तब तुम कितना झुंझला रहे थे और अब खुशी-खुशी सबको बुला रहे हो। शायद तुम भूल जाते हो कि दुनिया परिवर्तन का दूसरा नाम है। बुद्धिमान इससे घबराते नहीं है। वे जानते हैं कि सुख-दुख तो बैलगाड़ी के पहिए के बीच में लगे आर की तरह हैं। कभी सुख मिलता है, तो कभी दुख।
ज्ञानवर्धक बाल कहानियां-सुंदरवन में हलचल
सर्दी का मौसम आते ही सुंदरवन के जंगल में हलचल मच गई। मन्नू चूहा बोला, “मैं तो गरमा गरम चाय की दुकान खोलूंगा।” चुनिया बया बोली, “मैं मूंगफली बेचूंगी।” मटकू हाथी बोला, “मैं कंबल की दुकान लगाऊंगा।” इस तरह सभी जानवरों ने अपनी-अपनी पसंद की चीजें बेचने की ठान ली। किट्टी गिलहरी ने इस बारे में जब कुछ नहीं कहा तो मन्नू चूहे ने पूछा, “किट्टी, तुमने नहीं बताया कि तुम क्या करोगी?” किट्टी बोली, “चुप धीरे बोल, कहीं अंकू भालू ने सुन लिया तो…
वैसे भी उससे मेरी पुरानी दुश्मनी है।”
खैर, अगले दिन सबने सुंदरवन में अपनी-अपनी दुकानें सजा लीं। उधर किट्टी गिलहरी ने रंग बिरंगे ऊन की दुकान सजाई। उसको ऊन बेचता देखकर नैना कोयल बोली, “सबसे समझदारी का काम तुमने किया है। मैं इस दफा अपने चुन्नू-टुन्नू के लिए तुमसे ऊन खरीदकर उनके लिए स्वेटर बुनूंगी।”
कुछ ही घंटों में किट्टी की दुकान पर भीड़ लग गई। जिसे देखो, वही ऊन खरीदने चला आ रहा था। अंकू भालू ने जब यह देखा तो वह जल कर राख हो गया। उसका दिमाग अपनी हरकत में आ गया। उसने रात में किट्टी की दुकान से ऊन चुरा ली। उसे घर ले जाकर उसने अपनी पत्नी से कहा, “जल्दी से इसका बिछौना बना डालो-खूब आराम की नींद आएगी इस ऊन के बिस्तर पर।” अंकू की पत्नी ने वैसा ही किया। सुबह हुई, किट्टी ने देखा, उसकी दुकान से ऊन गायब है, तो वह परेशान हो गई। सबने उसे समझाया, “सब्र करने वालों के साथ ईश्वर होता है।” किट्टी ने सब्र कर लिया। लेकिन उसे पता चल गया था कि चोरी किसने की थी। उसके बाद अंकू किट्टी के सामने नहीं आया। इससे किट्टी को पूरा विश्वास हो गया।
एक दिन अंकू के घर आग लग गई। घर के दीए की चिंगारी से आग लगी थी। उसका रो-रो कर बुरा हाल था। सारे जानवर डर के मारे अपने-अपने घरों में छिप गए, मगर किट्टी गिलहरी ने ऐसा नहीं किया। वह अपने दोस्त मटकू हाथी को बुलाकर लाई। मटकू ने अपनी सूंड में पानी भरकर अंकू के घर की आग बुझाई। किट्टी को मदद करते देखकर अंकू उसके सामने हाथ जोड़कर बोला, “किट्टी, मुझे माफ कर दो, मैं तुम्हारा यह एहसान कभी नहीं भूलूंगा। आज मैं सच कहता हूं, मैंने ही तुम्हारी दुकान से चोरी की थी। फिर भी तुमने मेरा घर बचाया।” यह कहकर वह जोर-जोर से रोने लगा। अंकू की बात सुनकर किट्टी मुस्कुराकर बोली, “मैं यह जानती थी। लेकिन मेरे बाबा की नसीहत थी, कि कोई यदि तुम्हारे साथ बुरा करे, तो तुम उसके साथ अच्छा ही करो। नहीं तो उसमें और तुममें क्या फर्क होगा।” इसके बाद अंकू प्रत्येक रक्षाबंधन पर किट्टी से अपनी कलाई पर राखी बंधवाता है।
ज्ञानवर्धक प्रेरक कहानियां- दो भाई
एक जंगल में दो बंदर रहते थे। दोनों सगे भाई थे। फिर भी दोनों में बहुत झगड़ा होता था। असल में बड़ा भाई झगड़ालू था। एक दिन बड़े भाई ने छोटे भाई को घर से निकाल दिया और खुद बड़े मजे से दिन गुजारने लगा। अब तो सब कुछ उसी का था।
छोटे भाई ने मकड़ी से कहा, “बहन, मेरा कुछ सामान घर में रह गया है, क्या तुम उसे ला सकती हो? मैं जाऊंगा, तो झगड़ा होगा और मेरा सामान भी मुझे नहीं मिलेगा।”
मकड़ी बोली, “न बाबा न, मुझे तो बड़ा डर लगता है तुम्हारे भाई से।”
खैर, छोटा भाई घर गया। बड़े भाई ने उसे डांटकर भगा दिया और यह चेतावनी भी दी कि आगे से वह वहां न आए। छोटा बेचारा क्या करता। वह जंगल में वापस चला आया।
सबने बड़े भाई को बहुत समझाया। लेकिन उसने किसी की एक न मानी।
एक दिन बड़े भाई के घर पर बंदरों के दूसरे समूह ने आक्रमण कर दिया। उसका घर हथिया लिया। बड़ा भाई बेघर हो गया। छोटे को जब इस बात का पता चला, तो वह अपने भाई को अपने घर ले आया। छोटे ने हिम्मत बंधाई, “कोई बात नहीं, हम मिलकर नया घर बनाएंगे।” बड़े की आंखें नम हो गईं। उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। वह समझ गया कि आखिर भाई भाई ही होता है।
ज्ञानवर्धक कथा– बॉबी की सजा
पिंकी के घर में आज बहुत चहल-पहल थी। सारा सामान तरकीब से लगाया गया था। पिंकी की मम्मी ने कहा था कि वह आज कहीं बाहर न जाए।
“क्यों?” यह सवाल जब पिंकी ने किया, तो मम्मी की आंखों में पानी भर आया। “लाडो, जिन्होंने तेरा रिश्ता मांगा है, वो आज तुझे देखने आ रहे हैं। उनका अपना घर है। क्या है जो उनके घर में नहीं है। मैं और तेरे पापा वह घर भी देख आए हैं, जहां तुझे जाना है। लड़के ने हमारी बेटी को देखा और उसने उससे शादी करने की ठान ली,” मम्मी खुशी में बोले जा रही थी। पिंकी जानती थी कि उसके मम्मी-पापा को उसकी शादी की कितनी चिंता है।
हुआ यह था कि एक दिन पिंकी समुद्र के किनारे भेलपूरी खाने गई तो अचानक बॉबी की नजर उस पर पड़ी। उसे पिंकी बड़ी प्यारी लगी, उसने घर जाकर, अपनी मां से कहा, “मैं पिंकी से शादी करूंगा।” उसकी मां मान गई। उसी ने पिंकी के माता-पिता से अपने बेटे के लिए उसका रिश्ता मांगा था। दोनों की शादी तय हई।
बॉबी ने नई शेरवानी सिलवाई और बारात लेकर पिंकी के घर पहुंच गया। पिंकी की सहेलियों ने कहा, “चलो, दूल्हा देख लो।” दुल्हन बनी पिंकी बॉलकनी से बॉबी को देखने आई, तभी अचानक वह चीख पड़ी और बोली, “नहीं मैं इससे हर्गिज शादी नहीं करूंगी।” पिंकी की मां ने पूछा, “क्यों?” तो पिंकी बोली, “मां आप मेरी इस जेबकतरे से शादी करा रही हैं। आप नहीं जानती, समुद्र किनारे यह लोगों की जेब काटता है। कई बार पकड़ा गया है।”
पिंकी की बात सुनकर, उसकी मां ने बड़ी हैरानी से कहा, “यह सब तुम्हें कैसे पता?” तब पिंकी ने सारा किस्सा अपनी मां को बताया, “एक दिन मैंने और निकी ने समुद्र किनारे भेलपुरी खायी। निकी के मम्मी-पापा भी साथ में थे। उन्होंने जब पैसे देने के लिए पर्स निकालना चाहा, तो जेब से वह गायब था। यही बॉबी पर्स लेकर वहां से निकलने की कोशिश कर रहा था। तब भेलपूरी वाले ने बताया कि यह मशहूर जेबकतरा है।”
बारात लौट गई। घर लौटकर बॉबी की मां उससे बोली, “बेटा आज एक घर से तुम्हारी बारात लौटी है। अगर अब भी तुमने खुद को न बदला, तो बार-बार ऐसा ही होगा। पाप छिपाए नहीं छिपता। वह सिर चढ़कर बोलता है।”